‘मैंने कुश्ती से निकाह कर लिया’ सपनों पर ‘बुर्का’ डालने की बजाय कठिन डगर पर चल पड़ी पहलवान ताहिरा

सपनों पर ‘बुर्का’ डालने की बजाय कठिन डगर पर चल पड़ी पहलवान ताहिरा! wrestler Tahira on a tough path instead of putting a 'burqa' on her dreams

‘मैंने कुश्ती से निकाह कर लिया’ सपनों पर ‘बुर्का’ डालने की बजाय कठिन डगर पर चल पड़ी पहलवान ताहिरा
Modified Date: November 29, 2022 / 08:38 pm IST
Published Date: November 22, 2021 5:03 pm IST

नयी दिल्ली: wrestler Tahira on a tough path instead of putting a ‘burqa’ जब उसने कुश्ती के अखाड़े में कदम रखा तो उसे बुर्का पहनकर घर में रहने के लिये कहा गया और सहयोग में परिवार के अलावा कोई हाथ नहीं बढे लेकिन ओडिशा की ताहिरा खातून भी धुन की पक्की थी और अपने ‘धर्म’ का पालन करते हुए भी उसने अपने जुनून को भी जिंदा रखा । ओडिशा में कुश्ती लोकप्रिय खेल नहीं है और मुस्लिम परिवार की ताहिरा को पता था कि उसका रास्ता चुनौतियों से भरा होगा लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी । अपने प्रदेश में अब तक अपराजेय रही ताहिरा राष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी हासिल नहीं कर सकी । उसे कटक में अपने क्लब में अभ्यास के लिये मजबूत जोड़ीदार नहीं मिले और ना ही अच्छी खुराक । राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में नाकामी के बावजूद वह दुखी नहीं है बल्कि मैट पर उतरना ही उसकी आंखों में चमक ला देता है ।

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wrestler Tahira on a tough path instead of putting a ‘burqa’ उसने पीटीआई से कहा ,‘‘ मैने कुश्ती से निकाह कर लिया है । अगर मैने निकाह किया तो मुझे कुश्ती छोड़ने के लिये कहा जायेगा और इसीलिये मैं निकाह नहीं करना चाहती ।’’ उसने कहा ,‘‘ मेरी तीन साथी पहलवानों की शादी हो गई और अब परिवार के दबाव के कारण वे खेलती नहीं हैं ।मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ ऐसा हो । मैने शुरू ही से काफी कठिनाइयां झेली है ।रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने हमेशा मुझे हतोत्साहित किया । वे चाहते थे कि मैं घर में रहूं लेकिन मेरी मां सोहरा बीबी ने मेरा साथ दिया।’’ ताहिरा जब 10 साल की थी तो उसके पिता का निधन हो गया था । उसके भाइयों ( एक आटो ड्राइवर और एक पेंटर) के अलावा कोच राजकिशोर साहू ने उसकी मदद की । उसने कहा ,‘‘ कुश्ती से मुझे खुशी मिलती है । राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में अच्छा नहीं खेल सकी तो क्या हुआ । खेलने का मौका तो मिला । मैट पर कदम रखकर ही मुझे खुशी मिल जाती है ।’’

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ताहिरा गोंडा में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में 65 किलोवर्ग के पहले दौर में बाहर हो गई। पिता की मौत के बाद अवसाद से उबरने के लिये टेनिस खेलने वाली ताहिरा को कुश्ती कोच रिहाना ने इस खेल में उतरने के लिये कहा । एक महीने के अभ्यास के बाद उसने जिला चैम्पियनशिप जीती और फिर मुड़कर नहीं देखा । ताहिरा खेल के साथ ही अपने लोगों को भी खुश रखना चाहती है ।उसने कहा ,‘‘ कटक जाने पर मैं बुर्का पहनती हूं । मुझे कैरियर के साथ अपने मजहब को भी बचाना है ।खेलने उतरती हूं तो वह पहनती हूं जो जरूरी है लेकिन मैं अपने बड़ों का अपमान नहीं करती । धर्म भी चाहिये और कर्म भी ।’

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उसने कहा ,‘‘ मैं चाहती हूं कि एक नौकरी मिल जाये । गार्ड की ही सही । मैं योग सिखाकर अपना खर्च चलाती हूं और फिजियोथेरेपी के लिये भी लोगों की मदद करती हूं । मैने खुद से यह सीखा है ।लेकिन कब तक मेरे भाई मेरा खर्च चलायेंगे ।मुझे एक नौकरी की सख्त जरूरत है ।’’ उसे प्रोटीन वाला भोजन या सूखे मेवे भी मयस्सर नहीं है । सब्जी और भात पर गुजारा होता है जिससे शरीर में कैल्शियम और हीमोग्लोबिन की कमी हो गई है। अपने जुनून के दम पर वह ताकत के इस खेल में बनी हुई है ।

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