जनता मांगे हिसाब: बरघाट और गरोठ की जनता ने मांगा हिसाब | IBC24 Special:

जनता मांगे हिसाब: बरघाट और गरोठ की जनता ने मांगा हिसाब

जनता मांगे हिसाब: बरघाट और गरोठ की जनता ने मांगा हिसाब

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:56 PM IST, Published Date : April 24, 2018/11:27 am IST

 

बरघाट की भौगोलिक स्थिति

और अब बात मध्यप्रदेश की बरघाट विधानसभा विधानसभा की.. बरघाट को मध्यप्रदेश का धान का कटोरा भी कहा जाता है…परिसीमन के बाद ट्राइबल क्षेत्र कुरई और खवासा को इस विधान सभा में शामिल किए जाने के बाद यहां आदिवासियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है और अब पवारों के साथ-साथ आदिवासी मतदाता भी हर चुनाव में पार्टियों की हार और जीत तय करते हैं। सबसे पहले बरघाट की भौगोलिक स्थिति पर नजर डालते हैं।

सिवनी जिले में आती है बरघाट विधानसभा

ST वर्ग के लिए आरक्षित क्षेत्र

सबसे बड़े मवेशी बाजार के लिए प्रसिद्ध

प्रदेश की सबसे अच्छी क्वालिटी के धान का उत्पादक क्षेत्र

कुल मतदाता- 1 लाख 76 हजार 369

पुरुष मतदाता- 90 हजार 852

महिला मतदाता- 85 हजार 517

परिसीमन के बाद आदिवासी क्षेत्र कुरई और खवासा शामिल

चुनाव नतीजों को प्रभावित करता है जाति समीकरण 

पवार मतदाता- करीब 55 हजार 

आदिवासी मतदाता- 75 हजार 

मरार मतदाता- 18 हजार

मुस्लिम मतदाता- 11 हजार 

यादव- 10 हजार 

अन्य मतदाता- 25 हजार 

फिलहाल सीट पर भाजपा का कब्जा

भाजपा के कमल मर्सकोले हैं वर्तमान विधायक 

बरघाट की सियासत

बरघाट के सियासी इतिहास की बात करें तो.. इस विधानसभा सीट पर लम्बे समय से भाजपा का एकाधिकार रहा है.. 1951 से अस्तित्व में आई इस विधान सभा सीट पर 1951 से 1985 तक कांग्रेस का कब्ज़ा रहा..लेकिन 1985 के बाद इस सीट पर बरघाट भाजपा का गढ़ बन चुका है…हालांकि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा को खासी मसक्कत करनी पड़ी.. जाहिर है आने वाले चुनाव में भी यहाँ भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सियासी घमासान होगा।  भाजपा के सामने जहाँ चुनौती होगी की वो अपने गढ़ में कांग्रेस को सेंध लगाने से रोके तो वहीँ कांग्रेस भरसक कोशिश करेगी की वो अपना जीत का रिकॉर्ड सुधारे।

 सिवनी जिले में आने वाली बरघाट विधानसभा सीट आदिवासी और पवार बाहुल्य क्षेत्र रहा है..यही वजह है कि यहां की सियासत भी इन्हीं दोनों समुदाय के लोगों को ध्यान में रखकर होती आई है। एसटी वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीज ही मुख्य मुकाबला रहा है…नतीजों पर गौर करे तो यहां वही पार्टी कामयाब होती है जो आदिवासियों को साधने में सफल होती है।

बरघाट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो… 1951 से अस्तित्व में आयी इस सीट पर 1951 से 1985 तक कांग्रेस का कब्ज़ा रहा।  1985 में कांग्रेस से प्रभा भार्गव ने इस सीट पर आखिरी बार कांग्रेस को जीत दिलायी थी।  लेकिन 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के डॉक्टर ढालसिंह बिसेन ने कांग्रेस के पंडित महेश प्रसाद मिश्रा को हराकर सीट भाजपा की झोली में डाल दी। इसके बाद 1990 से 2003 तक डॉक्टर ढालसिंह बिसेन यहां से चुनाव जीते.. फिर 2008 और 2013 में कमल मर्सकोले इस विधानसभा सीट पर भाजपा से विधायक चुने गए।  हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा को खासी मसक्कत करनी पड़ी और बमुश्किल 269 वोटों से भाजपा प्रत्याशी कमल मर्सकोले कांग्रेस के अर्जुन काकोड़िया से चुनाव जीत पाए। 

 आने वाले विधान सभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा में टिकट की दावेदारी को लेकर नेता सक्रिय नज़र आने लगे हैं। वर्तमान विधायक कमल मर्सकोले के प्रति क्षेत्र की जनता में खासा आक्रोश देखा जा रहा है.. जिसे देखते हुए कई भाजपा नेता यहां से टिकट की दावेदारी कर रहे है। हालांकि कमल मर्सकोले को टिकट मिलना तय माना जा रहा है..इनके अलावा अशोक तेकाम और महिला नेत्री सुमन धुर्वे भी बीजेपी से टिकट दावेदारों की लिस्ट में शामिल है… कांग्रेस की बात की जाए तो मात्र 269 वोटो से पिछला विधान सभा चुनाव हारे अर्जुन सिंह काकोड़िया को टिकट मिलना तय माना जा रहा है इसके अलावा युवा कांग्रेस नेता अनिल मर्सकोले की दावेदारी को भी मजबूत माना जा रहा है। तीसरे मोर्चे के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ कई निर्दलीय प्रत्यासी भी चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है जो आगामी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं ।

बरघाट के मुद्दे

बरघाट विधान सभा की समस्याएं और मुद्दों की बात करें तो किसानों की आत्महत्या की घटनाएं का मुद्दा आगामी चुनाव में खूब गूंजेगा…वहीं  बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती जा रही है.. हमेशा की तरह आने वाले चुनाव में भी यहां बेरोजगारी का मुद्दा जमकर गूंजने वाला है …न जाने क्यों इस मुद्दे पर सियासी दल और उनके नेता सिर्फ बातें ही करते नजर आते हैं

बरघाट विधानसभा क्षेत्र में विकास तो दूर की बात..आज भी ये इलाका मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है..क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति कुछ ज्यादा ही चिंताजनक है..यातायात के लिए ग्रामीण इलाकों में सड़के तक नहीं है..वहीं ग्रामीण गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो बेहतर इलाज के लिए लोगों को जबलपुर और नागपुर का रूख करना पड़ता है..यहां प्राथमिक और सामुदायिक केंद्र तो बना दिया गये हैं लेकिन बेहतर मेडिकल सुविधा का आज भी इंतजार है..स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा सभी का भी बुरा हाल है..शिक्षण संस्थानों की कमी के चलते छात्रों को बाहर जाना पड़ता है। मजदूरी और कृषि उपज पर पूरी तरह से आश्रित इस विधानसभा क्षेत्र में खेती के संसाधनों की कमी है जिससे किसान आत्महत्या करने को तक मजबूर हैं..। 

अवैध शराब बिक्री भी बरघाट विधानसभा का बड़ा मुद्दा है जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित युवा वर्ग है…इसकी वजह है कि यहां अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है…विधायक को लेकर क्षेत्रवासियों में काफी आक्रोश देखने को मिलता है…जनता का आरोप है कि विधायक कभी उनसे मिलने तक नहीं आते है… कुल मिलाकर बरघाट विधान सभा क्षेत्र ऐसे इलाके के तौर पर सामने आता है जहां सुविधाएं बेहद कम हैं और संघर्ष ज्यादा।

गरोठ की भौगोलिक स्थिति

अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की गरोठ विधानसभा की…हर बार चुनाव में किए गए वादों से ठगी गई गरोठ की जनता इस बार आर-पार के मूड में हे। गरोठ को जिला बनाने के अहम मुद्दे के साथ क्षेत्र में होने वाली मसाला और संतरा जैसी खेती के लिए सरकार के नाकाफी कदम से किसान नाराज है..और कौन से मसले हैं जो आगामी चुनाव में मुद्दे बनकर गूंजेंगे..लेकिन पहले इसके भौगोलिक स्थिति पर एक नजर..

मंदसौर जिले में आती है गरोठ विधानसभा

राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है विस क्षेत्र

एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील गांधीसागर के लिए प्रसिद्ध

कुल मतदाता- 2 लाख 20 हजार 405

पुरुष मतदाता- 1 लाख 13 हजार 601 

महिला मतदाता- 1 लाख 6 हजार 804 

सोंधिया राजपूत और बंजारा जाति बाहुल्य क्षेत्र

 ब्राह्मण,पाटीदार,जैन और पोरवाल समाज का भी दबदबा

फिलहाल सीट पर भाजपा का कब्जा

भाजपा के चन्दर सिंह सिसौदिया हैं विधायक  

गरोठ विधानसभा की सियासत

गरोठ विधानसभा में फिलहाल भाजपा का कब्जा है.. 2015 में हुए उपचुनाव मे चंदर सिंह सिसोदिया को यहां की जनता ने मौका दिया..लेकिन गरोठ को जिला बनाने के मांग और मसाला और संतरा की खेती के लिए सरकार के नाकाफी कदम से किसान वर्तमान विधायक से खासे नाराज हैं.. ऐसे में कांग्रेस भी भाजपा विधायक के खिलाफ इन मुद्दों को हथियार बनाकर चुनावी मैदान में है..हालांकि टिकट के लिए पार्टी में अंदरूनी खींचतान कांग्रेस के लिए भी चुनावी जंग इतना आसान नहीं रहने वाला।

राजस्थान की सीमा से लगे गरोठ विधानसभा सीट पर होने वाले चुनाव हमेशा से दिलचस्प रहे है…2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेश यादव ने कांग्रेस के सुभाष सोजातिया को 25 हजार से अधिक वोटो से हराकर सीट पर कब्जा किया था.. हालांकि विधायक राजेश यादव के निधन के बाद 2015 में गरोठ में उप चुनाव हुआ..जिसमें भाजपा के चंदरसिंह सिसोदिया ने कांग्रेस के सुभाष सोजातिया को 12945 वोटों से शिकस्त देकर फिर से सीट को भाजपा की झोली में डाल दिया…एक बार फिर जब चुनाव नजदीक है..तो विधायक के टिकट के लिए कई नेता अपने समर्थकों के साथ जमीन तलाशने में जुटे हुए हैं.. कई नेता तो एक आगे कदम बढ़ाते हुए सोशल मीडिया में कैम्पेनिंग कर दावेदारी जता रहे हैं। भाजपा के संभावित उम्मीदवारों की बात करें तो सिटिंग एमएलए चन्दर सिंह सिसोदिया एक बार फिर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि पिछली बार सीएम शिवराज के भरोसे चुनाव जीतने वाले चंदर सिंह अपने इलाके में कोई ख़ास छाप नहीं छोड़ पाए। ऐसे में उनके लिए टिकट की राह आसान नहीं रहने वाली .. भाजपा जिलाध्यक्ष देवीलाल धाकड़ भी गरोठ विधानसभा से दावेदारी कर रहे हैं। वही दिवंगत विधायक राजेश यादव के बेटे विनीत यादव भी गरोठ से तैयारी में जुटे हे।  चुनाव के दौरान सीएम से चर्चा का ऑडियो वायरल करने वाले राजेश चौधरी भी लाइन में है। उधर कांग्रेस में भी संभावित उम्मीदवारों की लंबी कतार है..पिछला चुनाव हारे सुभाष सोजातिया एक बार फिर टिकट के लिए ताल ठोंक रहे हैं। लेकिन दिग्विजय सरकार में केबिनेट मंत्री रहे सोजातिया के गरोठ में निष्क्रियता उनके खिलाफ जा सकता है..इनके अलावा पार्टी में क्षेत्र में सक्रिय होकर कार्य कर रहे कांग्रेस के अनूप व्यास ,किशन सिंह पावटी, तूफ़ान सिंह के साथ त्रिलोक पाटीदार भी टिकट के प्रमुख दावेदार  हैं। 

कुल मिलाकर दोनों पार्टियों में दावेदारों की कोई कमी नहीं है..लेकिन चुनावी जंग में वही बाजी मारेगा..जो गरोठ में जाति समीकरण को साधने में सफल होगा। 

गरोठ के मुद्दे

गरोठ विधानसभा में ..मुद्दों की कोई कमी नहीं है..और आने वाले चुनाव में इन मुद्दों का शोर सुनाई देना तय है…लेकिन हर बार की तरह इस बार भी  गरोठ को जिला बनाने की मांग सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। 

संतरे की बंपर खेती के लिए प्रसिद्ध गरोठ विधानसभा के मुद्दों की बात करें तो पिछले 26 सालों से गरोठ को जिला बनाने की मांग यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है…जिला मुख्यालय मंदसौर यहां से 120 किमी की दूरी पर है जिसकी वजह से लोगों को छोटे-छोटे कामों के लिए मंदसौर तक जाना पड़ता है…गांधीसागर जैसे बड़े जलाशय होने के बाद भी यहां के किसान सिंचाई के लिए दर-दर भटक रहे हैं…किसानों के लिए वॉटर लिंफ्टिंग और नहर निर्माण का सपना अब तक पूरा नहीं हुआ है…फसल खरीदी केंद्र नहीं होने के कारण यहां के किसानों को संतरा बेचने राजस्थान जाना पड़ता है…एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील गांधीसागर में पर्यटन के लिए लिहाज से कोई विकास नहीं हुआ  है..जो क्षेत्र के रोजगार का एक जरिया बन सकता है। शिक्षा की बात करें तो अच्छे स्कूल कॉलेज नहीं होने से युवाओं को बड़े शहरों का रूख करना पड़ता है..वहीं नशीली सामग्रियों की तस्करी भी यहां की एक बड़ी समस्या है..। कुल मिलाकर अपार प्राकृतिक संभावनाओं के बावजूद गरोठ विधानसभा क्षेत्र में दुश्वारियो की कोई कमी नहीं है ..और इन दुश्वारियों को नजरअंदाज करना राजनीति पार्टियों के लिए इस बार इतना आसान नहीं होगा। 

 

वेब डेस्क, IBC24

 
Flowers