आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरीजी महाराज इस भाग में कह रहे हैं कि किसी नदी का जल उसक प्रवाह के लिए तटों का अनुशासन है। एक सलिला का सच है कि वो सागर बन जाए। निर्झर झ्ररने प्रपात का रुप लेकर पर्वत की चोटी से रिस कर सागर तक पहुंचे कैसे, किनारों का अवलंब न हो, तटों को अनुशासन न हो, गति-स्फूर्ति, प्रवाहमनता अर्थहीन हो जाएगी।
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वेब डेस्क, IBC24