रायपुर। 25 मई की उस काली शाम को बस्तर की जीरम घाटी में जो हुआ, जैसे हुआ, उसे देखकर ही नहीं सुनकर भी लोग सिहर उठते हैं। कुछ जख़्म कभी नहीं भरते, कुछ यादें कभी नहीं मिटतीं, 25 मई की वो शाम छत्तीसगढ़ को कुछ ऐसी ही यादें दे गईं, जो मिटाए नहीं मिटेंगी। जीरम घाटी के इस नरसंहार ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के एक युग का अंत कर दिया था। 25 मई 2013 के दिन शायद किसी को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि ये दिन छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिए एक काला दिन बनकर समाप्त होगा।
25 मई को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा अपने लाव-लश्कर के साथ सुकमा से वापस लौट रही थी। काफ़िले में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ तमाम आला नेता भी शामिल थे। सब कुछ ठीक चल रहा था, गाड़ियां पूरी रफ़्तार से अपनी मंजिल की तरफ़ दौड़ रही थीं कि जीरम घाटी के पास अचानक सड़क पर एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ। और एक गाड़ी उसकी चपेट में आकर कई फीट उछलकर सड़क से नीचे गिर गई। विस्फोट से सड़क पर 6 फीट गहरा और 12 फीट चौड़ा गड्ढा बन गया, जिसके चलते सारी गाड़िया झटके से वहां रुक गईं। वहां मौजूद लोगों को एक बड़ी अनहोनी का अंदेशा हो गया था, लेकिन स्थिति आगे कुआँ पीछे खाई जैसी बन गई थी।
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कोई कुछ समझ पाता, इससे पहले ही चारों तरफ़ से ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगती है। कांग्रेस का ये काफिला नक्सलियों के ख़तरनाक एंबुश में फंस चुका था। अब तक जिन लोगों ने नक्सली हमले की केवल ख़बरें ही पढ़ी थीं, वो अब इसका सीधा सामना करने के लिए मजबूर थे।
कांग्रेस के काफिले में तकरीबन 20 गाड़ियां और सवा सौ से भी ज्यादा लोग मौजूद थे। काफिला जगदलपुर के लिए सुकमा से ठीक 3 बजे रवाना हुआ और छिंदगढ़ से कुकानार होते हुए तोंगपाल पहुंचा। इसके बाद ठीक तीन बजकर 45 मिनट पर जीरम घाटी में दरभा मंदिर के पास काफिले पर नक्सलियों ने हमला बोला। इस जबरदस्त हमले में पूर्व मंत्री महेंद्र कर्मा, राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार और बस्तर कांग्रेस के व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष गोपी वाधवानी समेत दो दर्जन लोगों की मौत हो गई, जबकि तीन दर्जन के करीब लोग बुरी तरह से घायल हो गए।
इसी बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे को नक्सली अपने साथ पहाड़ी की तरफ़ ले गए। वहां मौजूद लोगों को लगा कि उनको अगवा कर लिया गया है लेकिन उसी वक्त उन्हें भी नक्सलियों ने मार दिया। हालांकि उनकी लाश दूसरे दिन सर्चिंग के दौरान बरामद हुईं।
हमले में कोंटा विधायक कवासी लखमा, केसकाल से पूर्व विधायक फूलो देवी नेताम, धमतरी के पूर्व विधायक हर्षद मेहता समेत और कई नेता भी घायल हुए। नक्सलियों ने सोची-समझी रणनीति के तहत काफिले पर हमला बोला था। जिस जगह पर हमला हुआ, वो उड़ीसा की सीमा के बेहद क़रीब है। जानकारी के अनुसार इस बड़े हमले को अंजाम देने के लिए 200 से 500 के बीच नक्सली वहां जमा हुए थे। देश में अब तक कहीं किसी सियासी काफ़िले को ऐसा और इतना बड़ा हमला झेलना नहीं पड़ा था।
जीरम कांड इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए एक ऐसे हमले के तौर पर दर्ज हो गया है, जिसने इंसानियत को तार-तार करते हुए लाल आतंक के सबसे ख़तरनाक चेहरे को उजागर किया, लाल ख़तरे की दरिंदगी और दम दोनों से वाकिफ़ हो चुका है देश। लेकिन नक्सली दलों और उनकी रणनीति को अब भी बहुत कम जानते हैं हम। लाल लड़ाके हर बार नए पैंतरों के साथ आते हैं, सुरक्षा बलों से दो कदम आगे रहने की रणनीति के साथ जब वो साजिश रचते हैं, तो उनकी तैयारी भी नायाब होती है। इसी तैयारी की बानगी पेश करती हैं, जीरम कांड की तस्वीरें।
जीरम हमले के दौरान विद्याचरण को तीन गोलियां लगी थीं। हमले के बाद IBC24 के रिपोर्टर घटनास्थल पर पहुंचे. और विद्याचरण शुक्ल को वहां मौजूद कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मदद से उठाया। 5 घंटे से वो लहूलुहान हालत में वहां पड़े रहे लेकिन होश नहीं खोया। सबसे पहले उन्हें जगदलपुर के महारानी अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने वहां पर उनका प्राथमिक उपचार किया लेकिन स्थिति में कोई सुधार न होता देख उन्हें रात में ही वायुसेना के हेलीकॉप्टर से रायपुर शिफ्ट किया गया। रायपुर के रामकृष्ण केयर अस्पताल में उनका इलाज शुरू हुआ लेकिन डॉक्टरों की टीम ने उनकी नाजुक स्थिति को देखते हुए उन्हें गुड़गांव के मेदांता अस्पताल रेफर किया। 26 मई को उन्हें एयर एंबुलेंस के ज़रिए रायपुर से गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में ले जाया गया। मेदांता में उनका तीन बार ऑपरेशन हुआ और हमले में लगी गोलियां निकाल ली गईं। लेकिन इसी बीच गोली लगने से उनकी बड़ी आंत में इंफेक्शन फैल गया। उन्हें लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर रखना पड़ा। 11 जून को सत्रह दिनों के संघर्ष के बाद विद्याचरण ने आखिरी सांस ली। इसी के साथ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के एक युग का अंत हो गया।
जीरम हमले की जांच अभी जारी है, एनआईए के साथ ही न्यायिक जांच भी की जा रही है। बस्तर में हुए अब तक के सबसे बड़े हमले की गुत्थी अब तक सुलझी नहीं है। पूरे देश को झकझोर देने वाले इस मामले की जांच का जिम्मा NIA को तुरंत ही सौंप दिया गया था। लगभग 20 माह के लंबे अंतराल के बाद NIA ने अपनी जांच रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट का सबसे हाईलाइटिंग निष्कर्ष ये है कि नक्सलियों ने किसी साजिश के तहत इस हमले को अंजाम नहीं दिया.बल्कि इतनी हत्याएं उन्होंने केवल दहशत फैलाने के लिए की। हमले की साजिश नक्सलियों की साउथ रीजनल यूनिफाइड कमांड ने रची थी ।
रिपोर्ट के अनुसार हमले का ब्लूप्रिंट तैयार करने के लिए 16 से 25 फरवरी, 2013 के बीच बीजापुर के पिड़िया गांव में बैठक हुई थी। साजिश में नक्सलियों के दरभा डिविजन का सचिव सुरेंद्र, प्रभारी देवा और सदस्य विनोद और कमांडर जयलाल के अलावा दरभा डिविजन कमेटी प्रभारी पावनंदा रेड् डी उर्फ श्याम भी शामिल था। हमले का जिम्मा वरसे सुक्का उर्फ देवा और सोनाधार को सौंपा गया।
हमले के जख्म अभी हरे हैं। जब-जब जीरम का जिक्र होगा. तब-तब दरभा की धरती पर बहा लहू लाल आंतक की इस कायरना करतूत का हिसाब मांगेगी।
वेब डेस्क, IBC24