पटना-अररिया, चार मार्च (भाषा) साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की जन्मशती के अवसर पर उनके गृह जिला अररिया सहित प्रदेश की राजधानी पटना में कई कार्यक्रमों का आयोजन हुआ।
रेणु का जन्म आज ही के दिन 1921 को अररिया जिले के एक गाँव में हुआ था जो उस समय पूर्णिया जिले का एक हिस्सा था। हिंदी साहित्य से नावाकिफ लोग भी रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ को राज कपूर और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म ‘तीसरी कसम’ के जरिए बहुत अच्छी तरह जानते हैं। रेणु की कहानी पर आधारित यह फिल्म हिन्दी सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है।
पटना के एक आणे मार्ग स्थित लोक संवाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेणु के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें शत-शत नमन किया औरश्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुमार कुशवाहा, पूर्व विधान पार्षद संजय कुमार सिंह उर्फ गांधी जी भी उपस्थित थे।
रेणु की जन्मशती पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने उन्हें नमन करते हुए कहा, ‘‘रेणु जनकवि एवं लोक कथाकार थे। मैला आंचल, परती परिकथा जैसे विश्व स्तरीय उपन्यासों सहित उनकी कई रचनाएं अनमोल कृति हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘रेणु जमीन से जुड़े कथाकार थे। उनकी रचनाओं में ग्रामीण परिवेश की नफासत साफ दिखती है। हम उनकी जन्मशती पर उन्हें नमन करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।’’
उपमुख्यमंत्री रेणु देवी ने पटना शहर के कदमकुआं स्थित बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित रेणु की जन्म शताब्दी समारोह में शामिल होकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया।
उन्होंने कहा कि रेणु एक महान स्वतंत्रता सेनानी और कई कालजयी रचनाओं के रचनाकार थे। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। एक कथाकार के रूप में उनकी रचनाओं में आंचलिकता और शोषण के खिलाफ एक संदेश होता था। उनकी कालजयी रचना मैला आँचल आज भी सर्व प्रशंसित है। युवा पीढ़ी को उनकी रचनाओं को जरूर पढ़ना चाहिए।
इस अवसर पर पूर्व उपमुख्यमंत्री व सांसद सुशील कुमार मोदी ने पटना के कंकड़बाग मुहल्ला स्थित उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित किया।
रेणु के जन्म शताब्दी वर्ष के शुभारंभ पर दिल्ली के हंसराज कॉलेज की ओर से आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए सुशील ने बिहार सरकार से भी इस साल बड़े आयोजन करने की अपील की।
सुशील ने कहा कि रेणु ने अपने समय के समाज का यर्थाथ चित्रण कर अपनी रचनाओं को अमरता प्रदान किया है। यही वजह है कि अपनी रचनाओं के माध्यम से वह आज भी केवल कोसी के अंचल में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय ग्रामीण समाज के प्रतिनिधि रचनाकार के रूप में स्थापित हैं।
उन्होंने कहा कि साहित्य, समाज और राजनीतिक में उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता है। 1972 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा पर हार गए। बाद के दिनों में भाजपा ने उनके पुत्र को फरबिसगंज से टिकट दिया और वे विधायक बने।
रेणु के गृह जिला अररिया में भी उनकी स्मृति में थाना चौक पर एक समारोह का आयोजन किया गया। वरिष्ठ पत्रकार सूदन सहाय बताते हैं कि उस जमाने में यहां टी-स्टॉल हुआ करता था जो आज रेणु कुंज के नाम से जाना जाता है। थाना चौक की यही वह जगह है जहां आपातकाल के दौरान रेणु ने अपना पद्मश्री लौटाया था और गिरफ्तारी दी थी।
साहित्यकार और पत्रकार परवेज आलम कहते हैं कि सिर्फ यह कह देने से काम नहीं चलेगा कि हम रेणु की धरती से हैं। हमें रेणु साहित्य को पढ़ना चाहिए और इसकी जरूरत भी है। हिंदी साहित्य में प्रेमचंद के बाद सबसे बड़े साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु ही हैं। मुंशी प्रेमचंद की रचना गोदान के बाद रेणु का मैला आँचल इसका उदाहरण है।
भाषा अनवर अर्पणा
अर्पणा