छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध, मामा भांजा मंदिर
छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध, मामा भांजा मंदिर
छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में से एक मामा भांजा मंदिर इन दिनों पर्यटकों के लिए कौतुहल का विषय बना हुआ है। मामा-भांजा मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दन्तेवाड़ा ज़िले में एक छोटे-से ग्राम बरसुर अथवा बारसुर में स्थित है। यह छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर काफ़ी ऊँचा है। मंदिर अब जर्जर अवस्था में है और ‘भारतीय पुरातत्त्व विभाग’ इसे सुधारने के कार्य में लगा हुआ है।
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वैसे तो ये मंदिर शिव को समर्पित है, लेकिन इसका नाम ‘मामा-भांजा मंदिर’ है।इसके पीछे भी एक किवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि ‘मामा’ और ‘भांजा’ दो शिल्पकार थे, जिन्हें ये मंदिर सिर्फ एक दिन में ही पूरा करने का काम मिला था। उन दोनों ने मंदिर एक दिन में बना दिया था।मंदिर ‘भारतीय पुरातत्त्व विभाग’ की देखरेख में है, लेकिन यहाँ कोई बोर्ड आदि नहीं लगा है, जिससे कोई भी दिशा-निर्देश और मंदिर कब बना, क्यूँ बना, कैसे बना आदि का पता नहीं लग पाता। यह जगदलपुर दन्तेवाड़ा मार्ग में गीदम से 23 किमी. दूर है। यहां पहुंचने के लिए आप राजधानी रायपुर से बस ,प्राइवेट कार ,पर्यटन विभाग की बस या फिर जगदलपुर तक की हवाई यात्रा करके आगे प्राइवेट वाहन से जा सकते हैं।
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‘मामा-भांजा मंदिर’ काफ़ी ऊँचा है और इसमें ऊपर दो तरफ़ मामा और भांजा की भी पत्थर की मूर्तियां बनायीं गयी हैं।एक अन्य जनश्रुति के अनुसार, बारसूर में गंगवंशीय राजा का साम्राज्य था। राजा का भान्जा कला प्रेमी था। इसने अपने मामा राजा को बिना बताए उत्कल देश से एक शिल्पकार को बुलाकर एक भव्य मंदिर बनवाने लगा। राजा को जब इसकी जानकारी मिली तो उसे बड़ी ईर्ष्या हुई उसने अपने भांजे को बुलवाकर प्रताडि़त किया। भांजा ने आवेश में आकर अपने मामा की हत्या कर दी। बाद में उसे काफी पछतावा हुआ। पश्चाताप के लिए उसने एक इस मंदिर में उसी की मूर्ति उसके सिर के आकार का बनवाकर स्थापित किया। अत: मामा की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद भांजे की मृत्यु के बाद मंदिर में भी उसकी स्मृति में मूर्ति स्थापित की गयी। इस प्रकार इस दोनों मूर्ति के कारण इसे मामा-भांजा मंदिर कहा जाता है। कुछ विद्धान इसे प्राचीन शिवमंदिर होने की बात कहते हैं।
वेब डेस्क IBC24

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