Mahalaxmi Puja: शरद पूर्णिमा पर भव्य श्री महालक्ष्मी मंगल अनुष्ठान, जगद्गुरु आर्यम महाराज के सानिध्य में वैदिक मंत्रों की गूंज, हजारों श्रद्धालुओं ने किया आह्वान
Mahalaxmi Puja: शरद पूर्णिमा पर भव्य श्री महालक्ष्मी मंगल अनुष्ठान, जगद्गुरु आर्यम महाराज के सानिध्य में वैदिक मंत्रों की गूंज, हजारों श्रद्धालुओं ने किया आह्वान
Mahalaxmi Puja/Image Source: IBC24
- देवी लक्ष्मी की पूजा में वैदिक मंत्रों की शक्ति,
- देहरादून में हुआ भव्य धार्मिक आयोजन,
- आर्यम इंटरनेशनल फाउंडेशन ने किया आयोजित,
देहरादून: Mahalaxmi Puja: देहरादून में अवस्थित अशोका रिसोर्ट में आर्यम इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा रेवती नक्षत्र की पूर्णिमा को श्री महालक्ष्मी मंगल अनुष्ठान संपन्न हुआ। देश के विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु गण इस दिव्य एवं भव्य महापूजा के भागी बनें। समस्त कार्यक्रम परमप्रज्ञ जगद्गुरु प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्यम जी महाराज के सानिध्य में हुआ। गुरुदेव के मुखारविंद से निकले वैदिक मंत्रों की गूँज समस्त देहरादून में विस्तारित हुई।
देवी लक्ष्मी को भारतीय संस्कृति में समृद्धि, सौभाग्य, और शुद्धता की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वे न केवल भौतिक धन की प्रतीक हैं, बल्कि आंतरिक संपन्नता जैसे सदाचार, विनम्रता, संतोष और आत्मबल की भी अधिष्ठात्री हैं। गुरुदेव श्री स्पष्ट करते हैं कि बिना इन गुणों के कोई भी व्यक्ति समृद्धि को भोग नहीं सकता है। ऋणमोचकमंगलस्तोत्रम् के नौवें मन्त्र में आता है :
” अतिवक्रदुराराध्यभोगमुक्तजितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥ ९॥ ”
Mahalaxmi Puja: गुरुदेव ने स्पष्ट किया कि केवल वही व्यक्ति कृपा प्राप्त कर सकता है जो भोगों से मुक्त और अपने इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुका हो। जब देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तो व्यक्ति को साम्राज्य और सफलता प्रदान करती हैं, किंतु जब क्रोधित होती हैं तो क्षणभर में सब कुछ हर लेती हैं। यह श्लोक इस बात की पुष्टि करता है कि बाहरी पूजा भर ही नहीं बल्कि आंतरिक संयम और पवित्रता भी महत्त्व रखती है।अतः लक्ष्मी विस्तार करती है और अलक्ष्मी विनाश।
वेद वाणी से यह स्पष्ट होता है कि, देवी लक्ष्मी का अर्थ केवल “धन” नहीं, बल्कि “लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक शक्ति” भी है। जहाँ लक्ष्मी होती हैं, वहाँ व्यवस्था, सौंदर्य, और सकारात्मक ऊर्जा स्वतः उपस्थित होती है। इसी कारण उन्हें विष्णु जी की अर्धांगिनी कहा गया है क्योंकि पालन और समृद्धि, दोनों साथ-साथ चलते हैं।
आर्यम गुरुदेव के सानिध्य में हुई इस महापूजा में असंख्य पुष्पों से देवी के मंत्रों का पाठ किया गया। पुष्पार्चन की विधि गुरुदेव आर्यम ने ही पुनः जीवित की है।जो कमल का फूल देवी लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करता है उसी से देशभर से पधारे ईश्वर भक्तों ने इस वैदिक प्रार्थना का परायण किया।
Mahalaxmi Puja: ट्रस्ट की अधिशासी प्रवक्ता माँ यामिनी ने बताया कि विश्व भर में जगद्गुरु आर्यम जी महाराज ही हैं जो सनातन की खोई विधियों को सामान्य जनों के बीच ला रहे हैं।वे अकेले ऐसे गुरु हैं जिन्होंने मणिभ विज्ञान को वैदिक प्रार्थनाओं से जोड़ा है. देश-विदेश में उनके असंख्य शिष्य हैं जो इस अद्वितीय विज्ञान से होकर परम ज्ञान को उपलब्ध हो रहे हैं।ज्ञातव्य हो कि गुरुदेव आर्यम की देशनाओं से हज़ारों लाखों का जीवन रूपांतरित हो रहा है, श्रेष्ठ बन रहा है, एवं सत्य सनातन का विस्तार हो रहा है।इसमें सुनील कुमार आर्य, राकेश रघुवंशी , संध्या रघुवंशी,राजेंद्र गोला , श्वेता जायसवाल,शालिनी , गौरव , रोहित वेदवान ,हर्षिता आर्यम आदि का सहयोग रहा ।
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