दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी खराब गुणवत्ता वाली हवा में सांस लेती है: डब्ल्यूएचओ |

दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी खराब गुणवत्ता वाली हवा में सांस लेती है: डब्ल्यूएचओ

दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी खराब गुणवत्ता वाली हवा में सांस लेती है: डब्ल्यूएचओ

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:57 PM IST, Published Date : April 4, 2022/8:46 pm IST

जिनेवा, चार अप्रैल (एपी) संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि दुनिया में लगभग हर व्यक्ति ऐसी हवा में सांस लेता है, जो वायु गुणवत्ता के उसके मानकों पर खरी नहीं उतरती।

डब्ल्यूएचओ ने श्वास एवं रक्त प्रवाह संबंधी समस्याएं पैदा करने वाले और हर साल लाखों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार प्रदूषक उत्पन्न करने वाले जीवाश्म-ईंधन के उपयोग को कम करने के लिए और कदम उठाने की अपील की।

वायु गुणवत्ता पर अपने दिशा-निर्देश कड़े करने के करीब छह महीने बाद डब्ल्यूएचओ ने सोमवार को वायु गुणवत्ता संबंधी अपने डेटाबेस पर यह जानकारी जारी की जो दुनियाभर में बढ़ते शहरों, कस्बों एवं गांवों की बढ़ती संख्या से मिली सूचना पर आधारित है।

डब्ल्यूएचओ ने कहा कि दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी उसकी वायु गुणवत्ता सीमाओं से बाहर मापी जाने वाली हवा में सांस लेती है। इस हवा में अकसर ऐसे कण होते हैं, जो फेफड़ों में भीतर तक जा सकते हैं, नसों और धमनियों में प्रवेश कर सकते हैं और बीमारी का कारण बन सकते हैं।

उसने बताया कि वायु गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ के पूर्वी भूमध्यसागरीय और दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रों में सबसे खराब है और इसके बाद अफ्रीका का स्थान है।

डब्ल्यूएचओ के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख डॉ मारिया नीरा ने कहा, ‘‘महामारी से बचने के बाद भी, वायु प्रदूषण के कारण 70 लाख ऐसी मौतें होना, जिन्हें रोका जा सकता था और अच्छे स्वास्थ्य के अनगिनत वर्ष नष्ट हो जाना अस्वीकार्य है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसके बावजूद स्वच्छ एवं स्वस्थ हवा के बजाय प्रदूषित वातावरण में कई निवेश डुबोए जा रहे हैं।’’

इस डेटाबेस के तहत परंपरागत रूप से पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10 को देखा जाता था, लेकिन अब पहली बार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के जमीनी माप को इसमें शामिल किया है। डेटाबेस का अंतिम संस्करण 2018 में जारी किया गया था।

नयी दिल्ली स्थित ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ में वायु प्रदूषण विशेषज्ञ अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा कि ये निष्कर्ष वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आवश्यक बदलावों पर व्यापक पैमाने पर प्रकाश डालते हैं।

नयी दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर’ ने एक अध्ययन में पाया कि भारत में 60 प्रतिशत से अधिक पीएम2.5 घरों और उद्योगों से पैदा होते हैं।

इस थिंक टैंक के वायु गुणवत्ता कार्यक्रम की प्रमुख तनुश्री गांगुली ने उद्योगों, ऑटोमोबाइल, जैव ईंधन जलाने और घरेलू ऊर्जा से होने वाले उत्सर्जन को कम करने की दिशा में कदम उठाने का आह्वान किया।

एपी सिम्मी उमा

उमा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)