कनाडाई मीडिया के निहित पूर्वाग्रह अक्सर श्वेत आरोपियों के लिए मददगार होते हैं

कनाडाई मीडिया के निहित पूर्वाग्रह अक्सर श्वेत आरोपियों के लिए मददगार होते हैं

कनाडाई मीडिया के निहित पूर्वाग्रह अक्सर श्वेत आरोपियों के लिए मददगार होते हैं
Modified Date: November 29, 2022 / 08:29 pm IST
Published Date: July 7, 2021 11:16 am IST

शिला खयंबशी, पीएचडी अभ्यर्थी, संचार और संस्कृति, यॉर्क विश्वविद्यालय, कनाडा

टोरंटो, सात जुलाई (द कन्वरसेशन) कनाडा एक बहुसांस्कृतिक और समावेशी राष्ट्र होने का दम भरता है, लेकिन जब मीडिया प्रतिनिधित्व की बात आती है, तो मुसलमानों और गोरे लोगों को अलग अलग तरह से पेश करने में निहित पूर्वाग्रह और नस्लवाद की संस्कृति साफ नजर आती है।

उदाहरण के लिए, दो हाई प्रोफाइल अपराधों को लें जिनमें वाहन की टक्कर से कुछ लोगों की मौत हो गई थी।

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31 दिसंबर, 2020 को कैलगरी में एक ट्रैफिक स्टॉप से ​​​​भागने की कोशिश कर रहे वाहन की चपेट में आने से एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई। 6 जून को, एक मुस्लिम-कनाडाई परिवार के चार सदस्य उस समय मारे गए जब वे लंदन, ओन्ट्स में शाम की सैर के लिए निकले थे।

कैलगरी की घटना में, जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन पर प्रथम श्रेणी की हत्या का आरोप लगाया गया, वे दो मुस्लिम किशोर थे। लंदन हमले का संदिग्ध एक 20 वर्षीय श्वेत व्यक्ति है।

कनाडाई समाचार माध्यमों ने इन दोनों अपराधों को बहुत अलग तरीके से पेश किया।

मुस्लिम परिवार के सदस्यों की हत्या की घटना में, कुछ समाचार माध्यमों ने जो खबर तैयार की उसमें आरोपी की एक ऐसी तस्वीर लगाई, जो उसकी हाल की मछली पकड़ने की यात्रा की थी।

क्राउन हत्या के आरोपों के अलावा आतंकवाद का आरोप जोड़ सकता था, इसलिए समाचार माध्यम आरोपी के परिवार और दोस्तों के लिए उसके बारे में अपने सकारात्मक विचार भेजने, उसकी प्रशंसा करने और उसके इस्लामोफोबिया और नस्लवाद से इनकार करने का जरिया बन गए।

दोस्तों ने हाल ही में मछली पकड़ने की यात्रा के बारे में बताया और कैसे आरोपी ‘‘हमेशा की तरह खुश’’ था, कैसे उसे ‘‘अपने ट्रक के स्टीयरिंग में परेशानी’’ हुई और परिवार में एक मौत से व्याकुल था।

अंत में, समाचार माध्यमों ने आरोपी की मानसिक बीमारी, क्रोध प्रबंधन और माता-पिता के अलगाव का हवाला दिया।

दूसरी तरफ कैलगरी की घटना में, मीडिया द्वारा आरोपी के किसी मित्र या परिवार को उद्धृत नहीं किया गया। किसी ने भी उनके चरित्र के बारे में बात नहीं की या उनके बारे में कोई अन्य व्यक्तिगत जानकारी नहीं दी। मीडिया की कहानियों में इस्तेमाल की गई तस्वीरें पुलिस द्वारा ली गई

जिम्मेदारी सौंपना

शोध से पता चला है कि सामूहिक हत्याओं के मामलों में जहां आरोपी गोरे हैं, मीडिया अक्सर अपराध के संभावित स्पष्टीकरण के रूप में मानसिक बीमारियों का हवाला देता है।

मानसिक बीमारी के लिए अपराध की जिम्मेदारी का मीडिया का वर्णन नैतिक आतंक को कम करता है। यह उन पाठकों को मन की शांति प्रदान करता है, जो यह मानते हैं कि ‘‘सामान्य’’ गोरे लोग ऐसे अपराध नहीं करेंगे।

साथ ही, मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति की सहानुभूतिपूर्ण छवि मुकदमे और सजा के दौरान बचाव के लिए एक ढाल बन जाती है।

मिनेसोटा में सेंट कैथरीन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र और नस्ल एवं जातीयता के महत्वपूर्ण अध्ययन के प्रोफेसर नैन्सी हेइटजेग ने नोट किया कि जब सफेद लोगों बनाम अश्वेत लोगों की बात आती है तो उनके द्वारा एक ही अपराध करने पर उनके प्रति ‘‘दोहरे मानक’’ होते हैं।

वह बताती हैं कि जब एक श्वेत व्यक्ति अपराध करता है तो उसके बारे में हमेशा एक कहानी बताई जाती है, जिसमें उसकी विशेषताओं का वर्णन किया जाता है, हालांकि, जब एक अल्पसंख्यक व्यक्ति अपराध करता है, तो कोई पृष्ठभूमि नहीं होती, कोई बहाना नहीं होता और कोई साइड स्टोरी नहीं होती।

खबर बनाते समय पत्रकार जाति की अपनी धारणाओं से प्रभावित होते हैं। वे उन समाजों में अंतर्निहित हैं जो नस्लीय तनाव और गलत धारणाओं से प्रभावित हैं। यह उन कहानियों में तब्दील हो सकता है जो रूढ़िवादिता को सुदृढ़ करती हैं।

समाचार माध्यम हालांकि सूचना का एक तटस्थ स्रोत होना चाहिए, अनुसंधान ने संकेत दिया है कि कनाडाई मीडिया निहित पूर्वाग्रह और नस्लवाद दिखाता है। विशेष रूप से, सफेद पीड़ितों के खिलाफ अपराधों का वर्णन करने वाले लेखों में काफी अधिक डरावनी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।

मीडिया में संरचनात्मक नस्लवाद गहराई से अंतर्निहित है, और इसे दूर करने के लिए स्पष्ट चर्चा, विविध कार्यबल और नस्लवाद की जड़ों को काटने की आवश्यकता होगी।

द कन्वरसेशन एकता

एकता


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