फ्रांस में राजनीतिक संकट जारी, पेंशन सुधार पर प्रधानमंत्री कर रहे अविश्वास प्रस्ताव के संकट का सामना

फ्रांस में राजनीतिक संकट जारी, पेंशन सुधार पर प्रधानमंत्री कर रहे अविश्वास प्रस्ताव के संकट का सामना

  •  
  • Publish Date - October 14, 2025 / 05:34 PM IST,
    Updated On - October 14, 2025 / 05:34 PM IST

पेरिस, 14 अक्टूबर (एपी) फ्रांस के नवनियुक्त प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु को अपनी सरकार के संकट में फंसने के कारण इस सप्ताह के अंत में अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए अपने राजनीतिक विरोधियों को रियायतें देनी होंगी, क्योंकि देश लंबे समय से जारी राजनीतिक संकट को समाप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है।

प्रधानमंत्री लेकोर्नु ने मंगलवार को अपने मंत्रिमंडल के साथ 2026 के बजट के मसौदे पर चर्चा की, जिस पर सांसद अगले 70 दिन में विचार-विमर्श करेंगे। लेकोर्नु आज दिन में बाद में नेशनल असेंबली में एक नीतिगत भाषण देंगे, जिसमें नई सरकार की प्राथमिकताओं का ज़िक्र होगा।

धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन की पार्टी ‘नेशनल रैली’ और धुर वामपंथी दल ‘फ्रांस अनबोड’ ने लेकोर्नु के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश करने में कोई देरी नहीं की, जिस पर बृहस्पतिवार को चर्चा होगी।

राजनीति के दोनों धरों ने फ्रांस के पूर्व रक्षा मंत्री एवं बमुश्किल एक साल में चौथे प्रधानमंत्री लेकोर्नु को फिर से नियुक्त करने के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के फैसले की कड़ी आलोचना की है। अगले राष्ट्रपति चुनाव में दो साल से भी कम समय बचा है, ऐसे में ‘नेशनल रैली’ मैक्रों से एक और संसदीय चुनाव जल्द कराने का आग्रह कर रही है, जबकि ‘फ्रांस अनबोड’ पार्टी मैक्रों से पद छोड़ने की मांग कर रही है।

दोनों दलों के पास इतनी सीट नहीं हैं कि वे अकेले ही लेकोर्नु की सरकार गिरा सकें, लेकिन यदि सोशलिस्ट पार्टी और ग्रीन पार्टी के सांसद उनके साथ आ जाएं तो प्रधानमंत्री को जल्दी ही सत्ता से हटाया जा सकता है।

सेंसरशिप से बचने और यूरोपीय संघ (ईयू) की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए समयसीमा से पहले बजट पेश करने के वास्ते लेकोर्नु को एक अलोकप्रिय पेंशन सुधार को त्यागने को मजबूर होना पड़ सकता है, जो मैक्रों के दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल में उनकी प्रमुख नीतियों में से एक था।

लेकोर्नु की पुनर्नियुक्ति को मैक्रों के लिए अपने दूसरे कार्यकाल को फिर से मजबूत करने का आखिरी मौका माना जा रहा है। उनके मध्यमार्गी खेमे के पास ‘नेशनल असेंबली’ में बहुमत नहीं है, और उन्हें अपने ही खेमे के भीतर बढ़ती आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

पिछले वर्ष मैक्रों द्वारा नेशनल असेंबली को भंग करने के आश्चर्यजनक निर्णय के परिणामस्वरूप संसद में अनिश्चितता और राजनीतिक गतिरोध उत्पन्न हो गया।

पिछले एक साल में, मैक्रों की लगातार अल्पमत सरकारें जल्दी-जल्दी गिर गईं, जिससे फ्रांस गतिरोध में फंस गया और इसे बढ़ती गरीबी दर एवं बढ़ते ऋण संकट का सामना करना पड़ा, जिसने बाजारों और यूरोपीय संघ के भागीदारों को चिंतित कर दिया है।

एपी नेत्रपाल सुरेश

सुरेश