Heavy floods and landslides in many countries including India scared

शुरू हो चुका है जलवायु परिवर्तन, भारत समेत कई देशों में सामने आए भीषण बाढ़ और भूस्खलन ने डराया

Climate change has started : जल चक्र में तीव्र बदलाव, अधिक शक्तिशाली तूफान और भीषण बाढ़ के पीछे है जलवायु परिवर्तन

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:19 PM IST, Published Date : July 30, 2022/2:11 pm IST

मैसाचुसेट्स। पूरे अमेरिका में जुलाई के उत्तरार्ध में शक्तिशाली तूफान प्रणाली की वजह से अचानक बाढ़ आने की घटनाएं हुईं। इसके चलते रिकॉर्ड बारिश से लेंट लुइस के आसपास के इलाके डूब गए और पूर्वी केंटुकी में जगह जगह भूस्खलन हुआ। इस बाढ़ में कम से कम 16 लोगों की मौत हो गई। एक अन्य आपदा में नेवादा की लॉस वेगास इलाका भी बाढ़ में जलमग्न हो गया।

जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह की जलीय आपदा की घटनाएं अब लगातार सामने आ रही हैं। अमेरिका में शक्तिशाली तूफान के बाद इस गर्मी के मौसम में भारत और ऑस्ट्रेलिया में भीषण बाढ़ आई जबकि पिछले साल यह स्थिति पश्चिम यूरोप में थी। दुनियाभर के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आया है कि जल चक्र प्रचंड रूप धारण कर रहा है और ग्रह के गर्म होने के साथ इसकी प्रचंडता और बढ़ेगी।

जलवायु परिवर्तन पर गठित अंतर सरकारी समिति के लिए वर्ष 2021 में तैयार अंतरराष्ट्रीय जलवायु आकलन रिपोर्ट का मैं सहलेखक था,जो विस्तृत तौर पर इस विषय की जानकारी देती है।

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इसमें दोनों कठोर मौसम का दस्तावेजीकरण किया गया है जिनमें अधिकतर इलाकों में घनघोर बारिश और भीषण सूखे से ग्रस्त इलाकों जैसे भूमध्य सागरीय क्षेत्र, दक्षिण पश्चिम ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी पश्चिम, दक्षिणी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका शामिल है। रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि वैश्विक तापमान बढ़ने के साथ-साथ बारिश और सूखे की प्रचंडता भी बढ़ेगी।

जल चक्र वायुमंडल, सागर, भूमि, जलाशय और जमी हुई बर्फ के बीच पानी के संचरण से बनता है। यह बारिश या बर्फबारी के तौर पर वायुमंडल से धरती पर गिर सकता है, भूमि द्वारा सोखा जा सकता है और नदियों-जलाशयों में बह सकता है, समुद्र में मिल सकता है, जम सकता है और वाष्पीकरण के जरिये दोबारा वायुमंडल में पहुंच सकता है। पेड़-पौधे भी पानी, भूमि से सोखते हैं और पत्तियों द्वारा इसे पसीने की तरह बाहर निकालते हैं। हाल के दशकों में कुल मिलाकर संघनन और वाष्पीकरण दोनों की दर बढ़ी है।

जल च्रक के प्रचंड रूप धारण करने के कई कारण हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तापमान का बढ़ना है, जिससे हवा में नमी की मात्रा की ऊपरी सीमा बढ़ जाती है।इससे और बारिश होने की क्षमता में भी वृद्धि होती है। जलवायु परिवर्तन के इस पहलू की पुष्टि आईपीसीसी रिपोर्ट में चर्चा किए किए हमारी सभी पंक्तियों में इंगित होती है। भौतिक के मूल सिद्धांत, कंप्यूटर मॉडल के पूर्वानुमान में ऐसे ही नतीजे की उम्मीद है। निगरानी आकंड़े भी पहले ही दिखा रहे हैं कि तापमान में वृद्धि के साथ बारिश की प्रचंडता बढ़ रही है।

जलच्रक के इस और अन्य बदलावों को समझना आपदा से बचने की तैयारी करने से ज्यादा अहम है। जल सभी पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज के लिए अहम संसाधन है, खासतौर पर कृषि के लिए। जल च्रक के प्रचंड होने का अभिप्राय है कि भीषण बाढ़ और सूखा व जलच्रक में समान अंतर की दर में वृद्धि। हालांकि, यह पूरी दुनिया में एक समान नहीं होगी।

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भीषण बारिश की स्थिति अधिकतर इलाकों में बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन भूमध्य सागरीय क्षेत्र, दक्षिणी पश्चिम, दक्षिण अमेरिका और पश्चिमी उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्से के भीषण सूखे की चपेट में आने की आशंका हैं। वैश्विक स्तर पर दुनिया में प्रत्येक एक डि्ग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से दैनिक प्रचंड संघनन की दर में सात प्रतिशत वृद्धि होने की आशंका है।

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्चिक तापमान में वृद्धि के साथ जलचक्र के अन्य पहलुओं में बदलाव होगा, जिनमें पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियर में कमी, ऋतु के अनुसार इलाकों के बर्फ से ढके रहने की अवधि में कमी, जल्द बर्फ का पिघलना, विभिन्न क्षेत्रों में मानसून में विरोधाभासी बदलाव शामिल हैं, जिससे करोड़ों लोगों के जल संसाधन पर असर पड़ेगा। जल चक्र के इन पहलुओं के लिए एक समान ‘थीम’ है कि जितना ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होगा, उसका उतना ही ज्यादा असर होगा। आईपीसीसी नीतिगत अनुशंसा नहीं करती है। इसके बजाय यह वैज्ञानिक सूचना देती है, जिसका नीति बनाने के लिए सतर्कता के साथ मूल्यांकन करने की जरूरत है।

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रिपोर्ट में शामिल एक वैज्ञानिक सबूत, स्पष्ट तौर पर विश्व नेताओं को कहता है कि वैश्चिक तापमान वृद्धि को पेरिस समझौते के तहत 1.5 डिग्री पर तत्काल सीमित करने, त्वरित और बड़े पैमाने पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सजर्न को कम करने की जरूरत है। किसी खास लक्ष्य से परे यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर असर सीधे तौर पर ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन से जुड़े हैं। उत्सर्जन में कमी से असर (नकारात्मक) घटेगा। प्रत्येक डिग्री का एक छोटा सा हिस्सा भी मायने रखता है।

(मैथ्यू बार्लो, उमास लोवेल में जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर)

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