पर्माक्राइसिस: इसका क्या अर्थ है और यह 2022 के लिए वर्ष का शब्द क्यों है

पर्माक्राइसिस: इसका क्या अर्थ है और यह 2022 के लिए वर्ष का शब्द क्यों है

पर्माक्राइसिस: इसका क्या अर्थ है और यह 2022 के लिए वर्ष का शब्द क्यों है
Modified Date: November 29, 2022 / 08:27 pm IST
Published Date: November 13, 2022 3:28 pm IST

(नील टर्नबुल, विभागाध्यक्ष: अंग्रेजी, भाषाविज्ञान और दर्शनशास्त्र, नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी)

नॉटिंघम (ब्रिटेन), 13 नवंबर (द कन्वरसेशन) अंग्रेजी के कॉलिन्स शब्दकोश का 2022 के लिए वर्ष का शब्द ‘‘पर्माक्राइसिस’’ है।

कॉलिन्स लर्निंग के प्रबंध निदेशक एलेक्स बीक्रॉफ्ट ने कहा है कि यह शब्द ‘‘काफी संक्षेप में बताता है कि इतने सारे लोगों के लिए 2022 वास्तव में कितना भयावह रहा है’’।

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शब्द का अर्थ व्यापक तौर पर ‘‘स्थायी’’ और ‘‘संकट’’ के मिश्रित शब्द के रूप में समझा जाता है, जो कुछ समय से उपयोग में है। अप्रैल 2021 में यूरोप में नीति विश्लेषकों ने इसे वर्तमान युग को परिभाषित करने वाले शब्द के रूप में देखा।

ब्रिटेन में कुछ लोग इस तरह की परिस्थिति की उत्पत्ति के लिए ब्रेक्जिट (यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने) को जिम्मेदार ठहराते हैं। अन्य लोग कोविड-19 महामारी की ओर इशारा करते हैं। वहीं, अन्य अब भी इसके लिए यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को जिम्मदार ठहराते हैं और इन्हीं कारणों ने इस शब्द को अपरिहार्य बना दिया।

लेखक डेविड शरियतमदारी कहते हैं: ‘‘पर्माक्राइसिस’’ एक ऐसा शब्द है जो पूरी तरह से एक अभूतपूर्व घटना से दूसरे तक पहुंचने की भावना का प्रतीक है। यह अब तक संकट की धारणा को परिभाषित करने के तरीके से एक बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि, शब्द की दार्शनिक जड़ों में जाने से पता चलता है कि संकट पूरी तरह भयावह नहीं है, लेकिन लंबे समय में एक आवश्यक और लाभकारी सुधारात्मक साबित हो सकता है।

प्रगति के लिए आवश्यक है संकट:

दार्शनिकों ने लंबे समय से संकट को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया है जो किसी व्यक्ति या समूह को सोचने के लिए मजबूर करता है। एक ऐसा बिंदु, जहां चिंता के किसी मुद्दे के संबंध में एक नया मार्ग तैयार किया जाता है।

हालांकि, जैसा कि इतिहास के दार्शनिक रेनहार्ट कोसेलेक ने आधुनिक दर्शन में दिखाया है कि संकट की प्राचीन यूनानी धारणा एक अर्थपूर्ण बदलाव से गुजरती है।

इसे दार्शनिक कार्ल मार्क्स के पूंजीवाद के संकटग्रस्त आर्थिक व्यवस्था के वर्णन के रूप में देखा जा सकता है।

‘‘संकट’’ को इसी तरह अमेरिकी दार्शनिक थॉमस कुह्न के विज्ञान के इतिहास के दृष्टिकोण में परिभाषित किया गया है। कुह्न आधुनिक अनुसंधान में प्रगति को मौजूदा वैज्ञानिक प्रतिमानों के भीतर संकट से प्रेरित मानते हैं।

एक नया यथार्थवाद:

‘‘पर्माक्राइसिस’’ की अवधारणा की जड़ें समकालीन प्रणाली सिद्धांत पर टिकी हैं, जो दावा करती है कि एक संकट इतना जटिल हो सकता है कि हम इसके परिणाम की भविष्यवाणी नहीं कर सकते। इस संबंध में अपनी 2008 की पुस्तक ‘ऑन कॉम्प्लेक्सिटी’ में फ्रांसीसी दार्शनिक एडगर मोरिन का तर्क है कि मानवता अब ‘इंटरलॉकिंग सिस्टम’ के नेटवर्क के भीतर रहती है।

हमारे संकट इतने जटिल और गहरे हो गए हैं कि वे उन्हें समझने की हमारी क्षमता से आगे निकल सकते हैं। उनसे निपटने के किसी भी निर्णय से स्थिति के और खराब होने का जोखिम भी रहता है। हमारा संकट कोई समस्या नहीं, बल्कि एक तथ्य है।

द कन्वरसेशन

सुरभि सुभाष

सुभाष


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