Permanent Member Countries Of UNSC
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद् में अपनी मेंबरशिप के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है लेकिन चीन की चालबाजी के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है। (Permanent Member Countries Of UNSC) चीन अपने स्वार्थ के साथ ही पकिस्तान के हितो को भी साध रहा है जिस वजह से भारत को यूएनएससी की स्थाई सदस्यता अब तक नहीं मिल सकी है। बावजूद इसके कि अमेरिका और रूस जैसे प्रमुख देश इस मेंबरशिप के लिए खुलकर अलग-अलग मंचो पर भारत का समर्थन कर चुके है।
लेकिन क्या सिर्फ भारत ही है जो अपनि मौजूदा छवि और ताकत के बल पर इस संघ में अपनी सदस्य्ता सुनिश्चित करना चाहता है? शायद नहीं। इस कतार में एक और बड़ा देश शामिल है जो कि यूएनएससी का स्थाई भागीदार बनने के लिए बेकरार है लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल सकी है। इस देश का नाम है जर्मनी। इस पूरे मसले पर देश के मशहूर अख़बार डॉयचे एन्ड वेले ने विस्तार से खबर प्रकाशित की है। डीडब्लू ने यह भी बताया है कि किन वजहों से जर्मनी अब भी इस रेस में पीछे है और उसे स्थाई सदस्यता नहीं मिल पा रही है।
बताया गया है कि जर्मनी 1973 में संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ। हालांकि, सवाल यह है कि इतनी देर क्यों हुई? जबकि, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में हुई थी और इसके ठीक चार साल बाद ही पश्चिमी जर्मनी एक देश के तौर पर अस्तित्व में आ गया था। इसकी वजह है कि जर्मनी दो हिस्सों में बंटा हुआ था। पश्चिमी जर्मनी यानी फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी और जर्मन डेमोक्रैटिक रिपब्लिक (GDR), जिसे साम्यवादी पूर्वी जर्मनी के रूप में जाना जाता था।
दशकों पुराना गतिरोध फिर से पैदा हो गया था, क्योंकि फेडरल रिपब्लिक की सरकार यह दावा करती थी कि वह जर्मनी की एकमात्र प्रतिनिधि है। वह खुद को जर्मन लोगों का एकमात्र वैध प्रतिनिधि मानती थी, क्योंकि सिर्फ उसके पास लोकतांत्रिक वैधता थी। मौजूदा जर्मन सरकार का किसी भी गठबंधन समझौते में बहुपक्षवाद (तीन या उससे ज्यादा देशों को शामिल किए जाने का सिद्धांत) को लेकर अपना विचार है। इसमें संयुक्त राष्ट्र के संदर्भ में कहा गया है, “हम संयुक्त राष्ट्र (UN) को राजनीतिक, आर्थिक और कर्मचारियों के मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सबसे महत्वपूर्ण संस्था के रूप में मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार हमारा लक्ष्य है, ताकि दुनिया के सभी हिस्सों का उचित प्रतिनिधित्व हो।”
जर्मनी वर्तमान में नामीबिया के साथ मिलकर तथाकथित संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन की तैयारी कर रहा है, जो अगले साल होने वाला है। हॉफ ने कहा, “मुद्दा यह है कि संयुक्त राष्ट्र में उन शक्तियों को फिर से लाने की कोशिश की जाए, जो सुधार चाहते हैं और यह कोई छोटी संख्या नहीं है। इसे इस तरह से करना है कि जर्मनी जैसे यूरोपीय देश और नामीबिया जैसे पूर्व-औपनिवेशिक देश एक साथ आएं। साथ ही, इस सुधार एजेंडे को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और इसे आगे बढ़ाने का प्रयास करें।” हालांकि, हॉफ को ‘थोड़ा संदेह’ है कि ऐसा होगा।