बेरूत, 30 नवंबर (एपी) कैथोलिक ईसाई धर्म के सर्वोच्च नेता पोप लियो 14वें दो दिवसीय यात्रा के अंतिम पड़ाव में रविवार को लेबनान पहुंचे। इस यात्रा का उद्देश्य वहां के लंबे समय से पीड़ित लोगों के लिए आशा का संदेश लाना तथा पश्चिम एशिया में महत्वपूर्ण ईसाई समुदाय को मजबूत करना है।
पोप लियो, पोप फ्रांसिस के एक वादे को पूरा कर रहे हैं, जो वर्षों से लेबनान आना चाहते थे, लेकिन अपनी बिगड़ती सेहत के कारण ऐसा नहीं कर पाए थे।
पोप फ्रांसिस अक्सर सेंट जॉन पॉल द्वितीय को उद्धृत करते थे, जिन्होंने 1989 में कहा था कि लेबनान महज एक देश से कहीं अधिक है।
लेबनान से पहले पोप ने तुर्किये की यात्रा की थी। उनकी यात्रा ऐसे समय में हुई जब 8.5 करोड़ से अधिक की आबादी वाला यह सुन्नी मुस्लिम बहुल देश यूक्रेन और गाजा पट्टी में संघर्ष को समाप्त करने के लिए वार्ता में एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में अपनी स्थिति बना रहा है।
पोप लेबनान पहुंचने से पहले इस्तांबुल में दो अहम कार्यक्रमों में शामिल हुए। उन्होंने यहां अर्मीनियाई अपोस्टोलिक कैथेड्रल में प्रार्थना की और विश्व के रूढ़िवादी ईसाइयों के आध्यात्मिक नेता, इक्यूमेनिकल पैट्रिआर्क बार्थोलोम्यू के साथ एक दिव्य अनुष्ठान किया। बार्थोलोम्यू ने ही एक महत्वपूर्ण ईसाई वर्षगांठ मनाने के लिए पोप को आमंत्रित किया था।
पोप पुरुष गायक मंडली के भजनों और सुगंधित धुएं के बीच ऐतिहासिक अर्मीनियाई गिरजाघर में दाखिल हुए। उन्होंने ‘‘इतिहास में अर्मीनियाई लोगों की मुश्किल समय में भी ईसाई धर्म पर अडिग रहने और दुखद परिस्थितियों का सामना करने के लिए’’ प्रशंसा की। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमन साम्राज्य में तुर्कों द्वारा अर्मीनियाई लोगों का नरसंहार किए जाने के संदर्भ में यह बात कही।
पोप फ्रांसिस ने अर्मीनियाई ईसाइयों की हत्या को ‘‘नरसंहार’ करार दिया था, जिससे तुर्किये नाराज हो गया था क्योंकि वह नरसंहार से इनकार करता रहा है। लियो ने तुर्किये की धरती पर अपने शब्दों में ज्यादा कूटनीतिक रुख अपनाया।
पोप अपनी यात्रा के दूसरे चरण में लेबनान पहुंचे हैं। उनकी लेबनान यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब यह छोटा भूमध्यसागरीय देश एक अनिश्चित दौर से गुजर रहा है।
यहां वह भाईचारे और सह-अस्तित्व का ‘संदेश’ देंगे। लेबनान की सत्ता-साझेदारी व्यवस्था के तहत, देश का राष्ट्रपति हमेशा एक मारोनाइट ईसाई, प्रधानमंत्री एक सुन्नी मुसलमान और संसद का अध्यक्ष एक शिया होता है।
लेबनान, एक मुस्लिम बहुल देश हैं, जहां की करीब एक तिहाई आबादी ईसाई है।यह वेटिकन के लिए प्राथमिकता रहा है, जो पूरे क्षेत्र में ईसाइयों का एक गढ़ है। हालांकि, वर्षों के संघर्ष के कारण क्षेत्र में ईसाई समुदाय की आबादी घटती जा रही है।
पोप लियो से यह अपेक्षा की जाती है कि वे उन लेबनानी लोगों को प्रोत्साहित करेंगे जो मानते हैं कि उनके नेताओं ने उन्हें निराश किया है, तथा लेबनानी ईसाइयों को यहीं रहने या जो देश छोड़ चुके हैं, उन्हें वापस आने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
एपी धीरज नरेश
नरेश