नाटो के हवाई क्षेत्र में रूस की दखल : यूक्रेन के सहयोगियों को तत्परता दिखानी होगी
नाटो के हवाई क्षेत्र में रूस की दखल : यूक्रेन के सहयोगियों को तत्परता दिखानी होगी
( स्टीफन वोल्फ, बर्मिंघम विश्वविद्यालय )
बर्मिंघम, 25 सितंबर (द कन्वरसेशन) यूक्रेन में जारी जमीनी और हवाई युद्ध के बीच रूस ने कीव के सहयोगी पश्चिमी देशों पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। 10 सितंबर को पोलैंड में रूसी ड्रोन की घुसपैठ और उसके कुछ दिन बाद रोमानिया में हुई ऐसी ही घटनाओं के बाद, 19 सितंबर को तीन रूसी लड़ाकू विमानों ने एस्टोनिया की हवाई सीमा का उल्लंघन किया।
रातों-रात कोपेनहेगन और ओस्लो हवाई अड्डों को बंद करने पर मजबूर करने वाले ड्रोन हमलों के पीछे भी क्रेमलिन की भूमिका होने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
इसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की रणनीतिक उकसावेबाज़ी माना जा सकता है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह रूसी ‘अवश्यंभावी जीत’ की कमजोर होती कहानी को छिपाने का प्रयास भी हो सकता है।
रूस का ग्रीष्मकालीन हमला नाकाम रहा है और इसमें भारी संख्या में सैनिक हताहत हुए हैं। अनुमान है कि रूसी सैन्य हताहतों की संख्या अब 2.2 लाख के करीब पहुंच गई है, लेकिन इसके बावजूद क्षेत्रीय लाभ नगण्य रहे हैं।
फरवरी 2022 में पूर्ण पैमाने पर युद्ध की शुरुआत से अब तक रूस ने करीब 70,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्ज़ा किया है। लेकिन हालिया गर्मी के अभियान में यह बढ़त केवल 2,000 वर्ग किलोमीटर से भी कम रही। एक सितंबर 2022 को रूस यूक्रेन के लगभग 20 फीसदी क्षेत्र पर नियंत्रण कर चुका था, जो अब 2025 में घटकर 19 फीसदी रह गया है।
डोनबास क्षेत्र के पास पोकरोवस्क में रूस की कथित सफलता को भी यूक्रेनी जवाबी कार्रवाई के चलते कोई ठोस लाभ में नहीं बदला जा सका।
रूस की स्थिति भले ही बेहतर नहीं है, लेकिन यूक्रेन के लिए भी यह राहत की बात नहीं है। मास्को अब भी लगातार रातों को हमले करने की क्षमता रखता है, जिससे यूक्रेन की वायु रक्षा प्रणाली की कमियां उजागर होती हैं और महत्वपूर्ण ढांचे को नुकसान होता है।
नाटो की प्रतिक्रिया अब तक धीमी रही है। पोलैंड में ड्रोन घुसपैठ के बाद शुरू किए गए ‘ईस्टर्न सेंट्री’ ऑपरेशन का प्रभाव सीमित रहा, क्योंकि इसके बाद एस्टोनिया में फिर से रूसी घुसपैठ हुई और पोलैंड व जर्मनी के पास तटस्थ हवाई क्षेत्र में बिना घोषणा उड़ानें दर्ज की गईं।
पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने चेतावनी दी कि, “हम अपनी सीमा का उल्लंघन करने वाले किसी भी उड़ने वाली वस्तु को मार गिराने के लिए तैयार हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि “ऐसे कदम उठाने से पहले दो बार सोचने की आवश्यकता है जो संघर्ष को और अधिक तीव्र कर सकते हैं।”
दूसरी ओर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस विषय में सीमित प्रतिक्रिया दी है। पोलैंड में ड्रोन घुसपैठ को उन्होंने संभावित ‘ग़लती’ करार देते हुए नाटो सहयोगियों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता दोहराई, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुख रूसी उकसावे के सामने स्पष्ट संदेश नहीं देता।
इस बीच, ट्रंप प्रशासन की रूस पर प्रस्तावित ‘दूसरे चरण की प्रतिबंध नीति’ अब नाटो और जी7 देशों की समान पहल के अधीन कर दी गई है। वहीं, अमेरिका द्वारा यूरोपीय देशों को भेजे जाने वाले हथियारों की आपूर्ति को भी घटाकर अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति पर केंद्रित किया गया है।
बाल्टिक देशों के लिए अमेरिका का दीर्घकालिक सुरक्षा सहयोग कार्यक्रम ‘बाल्टिक सिक्योरिटी इनिशिएटिव’ भी बजट कटौती की संभावना के चलते संकट में है।
यूरोप की सुरक्षा पर अमेरिका की प्राथमिकता कम होती दिख रही है, लेकिन यूरोपीय देशों की प्रतिक्रिया भी काफी धीमी रही है। फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, इटली और नीदरलैंड के संयुक्त रक्षा बजट अब भी अमेरिका के वार्षिक रक्षा खर्च का केवल एक चौथाई हैं।
इसके अलावा, यूरोपीय रक्षा-उद्योग आधार भी कमजोर है। ‘सिक्योरिटी एक्शन फॉर यूरोप’ कार्यक्रम में ब्रिटेन और कनाडा जैसे गैर-ईयू देशों की भागीदारी को लेकर असहमति बनी हुई है।
फ्रांस और जर्मनी के बीच मतभेदों के चलते ‘फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम’ जैसी प्रमुख रक्षा परियोजनाएं भी प्रभावित हुई हैं।
अब तक यूक्रेन ने सीमित संसाधनों और पश्चिमी सहयोग के साथ रूस का मुकाबला किया है, लेकिन भविष्य में बढ़ती रूसी आक्रामकता के लिए केवल इच्छाशक्ति काफी नहीं होगी। पश्चिमी देशों को अपनी तैयारियों में तत्काल सुधार करना होगा।
(द कन्वरसेशन) मनीषा पवनेश
पवनेश

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