श्रीलंका के प्रधानमंत्री अगले सप्ताह मंत्रिमंडल के समक्ष 21वां संशोधन पेश करेंगे : रिपोर्ट

श्रीलंका के प्रधानमंत्री अगले सप्ताह मंत्रिमंडल के समक्ष 21वां संशोधन पेश करेंगे : रिपोर्ट

  •  
  • Publish Date - May 19, 2022 / 04:45 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:15 PM IST

कोलंबो, 19 मई (भाषा) श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अटॉर्नी जनरल और शीर्ष सांसदों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करने के बाद, अगले सप्ताह मंत्रिमंडल के समक्ष संविधान में महत्वपूर्ण 21वां संशोधन पेश करने की योजना बनाई है। मीडिया में आई एक खबर में यह जानकारी दी गई।

संविधान के 21वें संशोधन से 20ए रद्द होने की संभावना है जो 19वें संशोधन के निरस्त होने के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को असीमित शक्तियां देता है। 19वें संशोधन में संसद को राष्ट्रपति से अधिक शक्तियां दी गई थीं।

ऑनलाइन समाचार पोर्टल डेली मिरर की खबर के अनुसार सांसद विजयदास राजपक्षे और सुशील प्रेमजयंता 21वें संशोधन की धाराओं की जांच करेंगे, और अगले सप्ताह मंत्रिमंडल में पेश करने से पहले 19वें संशोधन के एक अद्यतन संस्करण को अंतिम रूप देंगे।

डेली मिरर के मुताबिक, इस बीच विक्रमसिंघे ने श्रीलंका फ्रीडम पार्टी और श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना के सदस्यों के अलावा मुख्य विपक्षी दल समागी जन बलवेगया (एसजेबी) के कुछ सांसदों के साथ बंद कमरे में बैठक की।

एसजेबी ने सोमवार को कहा था कि वह देश को मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक संकट से बचाने के लिये विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली अंतरिम सर्वदलीय सरकार को सशर्त समर्थन की पेशकश करेगी।

यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता विक्रमसिंघे को बृहस्पतिवार को देश का 26वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। इससे पहले अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले के बाद भड़की हिंसा के मद्देनजर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और तभी से देश में कोई सरकार नहीं थी। महिंदा राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई हैं।

शक्तिशाली राजपक्षे परिवार ने अगस्त 2020 में आम चुनावों में भारी जीत के बाद सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। उन्होंने राष्ट्रपति की शक्तियों को बहाल करने तथा अहम पदों पर परिवार के करीबी सदस्यों को नियुक्त करने के लिए संविधान में संशोधन किया था।

गोटबाया राजपक्षे ने 2019 में राष्ट्रपति पद के चुनावों में आसानी से जीत हासिल की थी और जिसके दौरान उन्होंने संसद पर राष्ट्रपति की पूर्ण शक्ति मांगी।

गौरतलब है कि श्रीलंका 1948 में आजादी के बाद से अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है।

भाषा

प्रशांत माधव

माधव