धरती ने वर्ष 1700 के बाद से करीब 21 फीसदी आर्द्रभूमि गंवाई

धरती ने वर्ष 1700 के बाद से करीब 21 फीसदी आर्द्रभूमि गंवाई

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  • Publish Date - February 10, 2023 / 06:15 PM IST,
    Updated On - February 10, 2023 / 06:15 PM IST

क्रिश्चियन डन, वरिष्ठ व्याख्याता (प्राकृतिक विज्ञान), बांगोर विश्वविद्यालय

बांगोर (वेल्स), 10 फरवरी (द कन्वरसेशन) ग्रह (पृथ्वी) के बहुत से प्राकृतिक वासों की तरह पिछले 300 से अधिक वर्षों के दौरान आर्द्रभूमि भी क्रमिक रूप से नष्ट हुई है। ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 1700 के बाद से करीब 21 फीसदी आर्द्रभूमि समाप्त हुई है।

हालात यह हैं कि अब कई तरह के दलदली क्षेत्र नक्शे के साथ-साथ हमारी यादों से भी ओझल हो गये हैं। इन क्षेत्रों को सुखाकर खेती की जमीन में परिवर्तित कर दिया गया या फिर इन पर निर्माण कर लिया गया।

पानी के भरोसेमंद स्रोत के नजदीक होने और अमूमन समतल होने के नाते शहर बसाने और खेत बनाने के लिहाज से आर्द्रभूमि हमेशा से प्रमुख निशाना रही है। दलदली भूमि से पानी हटा देने से बहुत उपजाऊ भूमि की प्राप्ति होती है।

लेकिन आर्द्रभूमि आधुनिक संकटों का कुछ बेहतरीन प्राकृतिक समाधान प्रदान करती है। आर्द्रभूमि प्रदूषकों को दूर कर या उन्हें छानकर पानी को साफ करती, बाढ़ के पानी को हटाती है, वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करती, हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को सुधारती है और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन का भंडारण करती है।

पीटलैंड (एक खास तरह की आर्द्रभूमि) पूरी दुनिया के जंगलों का कम से कम दोगुना कार्बन का भंडारण करते हैं। इसके बावजूद आर्द्रभूमि का क्षय हुआ, लेकिन पूरी दुनिया में यह क्षय एक समान नहीं है।

सन 1700 से धरती के अनमोल आर्द्रभूमि खत्म हुई है, इसकी जानकारी ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में मिली है। पहले अनुमान था कि हमारी आर्द्रभूमि का 50 फीसदी तक खत्म हो गई है, लेकिन ताजा शोध से पता चला है कि यह आंकड़ा 21 फीसदी के करीब हो सकता है-जो भारत के आकार के बराबर क्षेत्र है।

कुछ देशों में यह नुकसान सर्वाधिक हुआ है मसलन आयरलैंड में 90 फीसदी से अधिक आर्द्रभूमि समाप्त हुई है। वैश्विक स्तर पर आर्द्रभूमि के खत्म होने का प्रमुख कारण कृषि के लिए दलदली भूमि से जल की निकासी है।

इसी तरह, यूरोप की करीब 50 फीसदी तो ब्रिटेन की करीब 75 फीसदी आर्द्रभूमि समाप्त हुई है। अमेरिका, मध्य एशिया, भारत, चीन, जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया में भी मूल आर्द्रभूमि के सापेक्ष 50 फीसदी समाप्त हो चुकी है।

लेकिन साइबेरिया और कनाडा के उत्तरी पीटलैंड्स में अब भी प्रचुर मात्रा में आर्द्रभूमि है जिसका क्षय नहीं हुआ और यही हमारे के लिए राहत की बात है।

पारिस्थितिकी तंत्र की ‘टॉनिक’

आर्द्रभूमि भूमि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में टॉनिक की तरह काम करती है। आर्द्रभूमि में कुछ एकड़ के नुकसान से वैश्विक या राष्ट्रीय स्तर पर भले ही बहुत फर्क नहीं पड़ता हो, लेकिन नजदीकी शहरों पर इसका घातक असर पड़ता है खासकर बरसात में बाढ़ के समय। इसके अलावा कई प्रजाति के पौधों और जीव जन्तुओं के लिए भी इस तरह का नुकसान आपदाकारी है।

सौभाग्य से देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने स्थानीय और वैश्विक स्तर पर आर्द्रभूमि की महत्ता को समझना शुरू कर दिया है। कुछ देशों ने ‘कोई सकल नुकसान नहीं’ की नीति को अपनाया है, जिसके तहत विकासकर्ताओं के लिए यह बाध्यकारी है कि वे जिस भी प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुंचाते हैं, वे उनका पुनर्विकास भी करें।

ब्रिटेन ने वादा किया है कि पीट आधारित कंपोस्ट की बिक्री पर वर्ष 2024 तक पाबंदी लगाएगा। अब दुनियाभर में भारी भरकम खर्च करके आर्द्रभूमि का संरक्षण किया जा रहा है। उदाहरण के लिए अमेरिका में ‘फ्लोरिडा एवरग्लेड्स’ (एक आर्द्रभूमि) के संरक्षण के लिए 35 वर्षीय योजना के तहत 10 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किये गये।

आर्द्रभूमि का 20 फीसदी क्षय हुआ है या 50 फीसदी, यह नहीं मायने रखता। मायने यह रखता है कि लोग अब आर्द्रभूमि को बेकार भूमि समझना छोड़ दें।

संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि धरती की करीब 40 फीसदी प्रजातियों का जीवन और प्रजनन आर्द्रभूमि पर निर्भर करता है और एक अरब लोग अपनी आजीविका के लिए इन पर निर्भर हैं।

(कन्वरसेशन)

संतोष पवनेश दिलीप

दिलीप