थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संघर्ष को क्यों जटिल बना रही घरेलू राजनीति?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संघर्ष को क्यों जटिल बना रही घरेलू राजनीति?
(पेट्रा एल्डरमैन, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स)
लंदन, 13 दिसंबर (द कन्वरसेशन) थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद सात दिसंबर को फिर से शुरू हो गया। तब से इस संघर्ष में 20 से अधिक लोग कथित तौर पर अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें थाईलैंड के चार और कंबोडिया के 11 नागरिक शामिल हैं।
इससे पहले जुलाई में सीमा विवाद भड़क गया था।
दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों से लगभग पांच लाख लोगों को निकाला जा चुका है।
थाईलैंड के प्रधानमंत्री अनुतिन चर्नविराकुल और कंबोडिया के उनके समकक्ष हुन मानेत द्वारा मलेशिया में दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) की बैठक के दौरान शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के दो महीने से भी कम समय में सीमा विवाद एक बार फिर भड़क गया।
संघर्ष को समाप्त कराने में मध्यस्थता करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते को ‘ऐतिहासिक’ बताया था।
लेकिन एक बार फिर, दोनों देश दोबारा क्यों लड़ रहे हैं?
अनुतिन के लिए शांति समझौता एक स्पष्ट घरेलू चुनौती बन गया क्योंकि सीमा विवाद के कारण अति-राष्ट्रवादी भावनाएं उमड़ पड़ीं।
अनुतिन ने हाल ही में पैतोंगटार्न शिनावात्रा की जगह ली थी। शिनावात्रा को कंबोडिया के प्रति अत्यधिक सुलहवादी रुख अपनाने के कारण प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया था।
अनुतिन, सितंबर की शुरुआत में प्रगतिशील ‘पीपुल्स पार्टी’ के समर्थन से सत्ता में आए। उन्होंने अल्पमत सरकार का नेतृत्व करने और पदभार ग्रहण करने के चार महीने के भीतर ही चुनाव कराने पर सहमति जताई। तब से, उन्होंने शक्तिशाली सेना और थाईलैंड के मतदाताओं के अधिक रूढ़िवादी वर्गों को लुभाकर अपनी पार्टी की चुनावी संभावनाओं को बढ़ाने का प्रयास किया।
चूंकि ये दोनों समूह संघर्ष के पक्ष में थे इसलिए अनुतिन कमजोर दिखने का जोखिम नहीं उठा सकते थे। उन्हें नवंबर में इस बात का एहसास हुआ, जब उन्हें सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करने के लिए माफी मांगनी पड़ी कि थाईलैंड ने भी कंबोडिया की तरह अपने पड़ोसी देश की सीमा पर अतिक्रमण किया है।
अनुतिन ने सत्ता संभालने के कुछ ही हफ्तों के भीतर राष्ट्रवादी रुख को और मजबूत करते हुए 2000 के दशक की शुरुआत के सीमा विवाद पर दो द्विपक्षीय समझौता ज्ञापनों को जनमत संग्रह के लिए रखने की घोषणा की। इन समझौता ज्ञापनों में दोनों देशों को अपनी विवादित भूमि और समुद्री सीमाओं के सीमांकन पर मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई गई है।
जनमत सर्वेक्षणों से पता चला कि थाईलैंड के कई नागरिक इन समझौता ज्ञापनों को निलंबित करने के लिए जनमत संग्रह का समर्थन करेंगे।
अनुतिन ने फिर 10 नवंबर को शांति समझौते के कार्यान्वयन को निलंबित कर राष्ट्रवादी भावनाओं को और भड़का दिया।
उन्होंने कंबोडिया पर विवादित सीमा क्षेत्र में नई बारूदी सुरंग बिछाने का आरोप लगाया क्योंकि थाईलैंड के कई सैनिक नियमित गश्त के दौरान इस सुरंग की चपेट में आने से घायल हो गए थे।
मानवीय क्षति और कुछ ठोस सबूतों के बावजूद यह अनुतिन के लिए अपनी राष्ट्रवादी छवि को मजबूत करने और सेना का समर्थन हासिल करने का एक सुनहरा अवसर था।
उन्होंने घायल सैनिकों से मुलाकात की, अस्पताल में बिस्तरों पर पड़े सैनिकों के आंसू पोंछे और थाईलैंड की संप्रभुता की रक्षा के लिए सेना को अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया।
थाईलैंड की सेना कभी भी पूरी तरह से नागरिक नियंत्रण में नहीं रही है। हालांकि, अनुतिन की सीमा विवाद से निपटने के लिए सशस्त्र बलों को छूट देने की इच्छा, बिना किसी और राजनयिक विकल्प पर विचार किए, देश के लोगों की उस पुरानी धारणा को बल देती है, जिसमें सेना को राष्ट्र के निस्वार्थ संरक्षक के रूप में चित्रित किया जाता है।
इससे अनुतिन को सेना की बढ़ती घरेलू लोकप्रियता का लाभ उठाने का मौका मिला।
हाल ही में दक्षिणी प्रांत ‘हट याई’ में आई बाढ़ से निपटने में अनुतिन की नाकामी और बेंजामिन माउरबर्गर नामक कथित अंतरराष्ट्रीय घोटालेबाज से जुड़े उनके और अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के नए विवाद ने घरेलू स्तर पर इन समीकरणों को और जटिल बना दिया।
बाढ़ से निपटने में नाकामी के कारण अनुतिन की लोकप्रियता में गिरावट आई, वहीं माउरबर्गर से उनके कथित संबंधों ने उन्हें कड़ी आलोचना को झेलने के लिए मजबूर किया और भ्रष्टाचार विरोधी उनके बयान को कमजोर कर दिया। सीमा पर बढ़ते तनाव ने घरेलू स्तर पर कुछ समय के लिए ध्यान भटकाने का काम किया। लेकिन नए सिरे से शुरू हुए सीमा विवाद के महज पांच दिन बाद अनुतिन ने 11 दिसंबर को संसद भंग कर दी।
संसद भंग होने की उम्मीद जनवरी के अंत तक नहीं थी लेकिन अनुतिन को थाईलैंड के 2017 के सैन्य-निर्मित संविधान में संशोधन के तरीके पर पीपुल्स पार्टी की असहमति के कारण अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ता। अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे अनुतिन के लिए अविश्वास प्रस्ताव में टिक पाना मुश्किल था इसलिए उन्होंने एहतियात के तौर पर संसद भंग कर दी।
कंबोडिया की ध्यान भटकाने की रणनीति
कंबोडिया की बात करें तो हुन मानेत भी घरेलू दबावों से अछूते नहीं हैं। उन्हें धीमी आर्थिक वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके विकासवादी एजेंडे के विपरीत है।
सीमा विवाद ने इसमें योगदान दिया लेकिन अमेरिकी शुल्क, कंबोडिया के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार और विदेशी निवेशक चीन से घटते निवेश का भी इसमें योगदान है। फिलहाल, हुन मानेत सीमा विवाद के दौरान उत्पन्न हुए एकजुटता के प्रभाव का लाभ उठाकर लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटा सकते हैं।
कंबोडिया में लगातार फैल रहे घोटालेबाजी नेटवर्क के कारण देश की वैश्विक प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा है।
सत्तारूढ़ कंबोडियन पीपुल्स पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से करीबी संबंध रखने वाले घोटालेबाजी उद्योग के एक प्रमुख व्यक्ति चेन झी के खिलाफ हाल ही में अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने सरकार की छवि को और भी खराब कर दिया है तथा देश की आर्थिक समस्याओं को बढ़ा दिया है।
इससे हुन मानेत के घरेलू भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान को भी खतरा पैदा हो गया है।
इस पृष्ठभूमि में, हुन मानेत इस नए संघर्ष का लाभ उठाकर कुछ हद तक नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर सकते हैं।
कंबोडिया को पहले भी संघर्ष के अंतरराष्ट्रीयकरण से फायदा हुआ है।
एक छोटे और सैन्य रूप से कमजोर देश होने के नाते कंबोडिया ने हमेशा थाईलैंड के साथ अपने सीमा विवादों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का समर्थन किया है।
यह रणनीति अक्सर कारगर साबित हुई है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के विभिन्न निर्णयों ने प्राचीन प्रेह विहार मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्रों पर कंबोडिया के स्वामित्व की पुष्टि की है, जो थाईलैंड के साथ लगातार सीमा संघर्ष का स्थल रहा है।
द कन्वरसेशन जितेंद्र प्रशांत
प्रशांत

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