‘तीस मार खां’ कौन था? जिसका नाम ही बन गया जुमला; पढ़ें 140 साल पुराना इतिहास

'Tees Maar Khan history: आपको बता दें कि कोई व्यक्ति जब बहुत ज्यादा बहादुरी दिखाता है या फिर असामान्य परिस्थिति का मुकाबला करता है तो अक्सर ऐसा ही कहा जाता है। जाहिर है कि 'तीस मार खां' होना बहादुरी का पर्याय है।

‘तीस मार खां’ कौन था? जिसका नाम ही बन गया जुमला; पढ़ें 140 साल पुराना इतिहास
Modified Date: February 15, 2024 / 05:35 pm IST
Published Date: February 15, 2024 5:28 pm IST

‘Tees Maar Khan history: नई दिल्ली। आपने भी यह कहावत जरूर कभी न कभी सुनी होगी। यह कहावत बहुत मशहूर है। तीस मार खां के बारे में जानने के लिए आपको 140 साल पीछे जाना पड़ेगा। दरअसल तीस मार खां नाम हैदराबाद के छठे निजाम मीर महबूब अली खां को उपाधि के तौर पर मिला था। क्योंकि उसने 30 टाइगरों का शिकार किया था।

आपने अक्सर लोगों के मुंह से यह सुनते होंगे कि ज्यादा तीस मार खां न बनो! या फिर वह अपने आपको बहुत तीस मार खां समझता है आदि। आपको बता दें कि कोई व्यक्ति जब बहुत ज्यादा बहादुरी दिखाता है या फिर असामान्य परिस्थिति का मुकाबला करता है तो अक्सर ऐसा ही कहा जाता है। जाहिर है कि ‘तीस मार खां’ होना बहादुरी का पर्याय है।

दरअसल तीस मार खां का इतिहास 140 साल पुराना है। दरअसल तीस मार खां नाम हैदराबाद के छठे निजाम मीर महबूब अली खां को उपाधि के तौर पर मिला था, जिन्होंने 30 टाइगरों का शिकार किया था। 1880 से 1890 तक उन्होंने जंगलों में कैंप किया था और इस दौरान तीस टाइगरों को मार डाला था। इसके चलते मीर महबूब अली को यह नाम मिला था और लोग उन्हें ‘तीस मार खां’ के नाम से जानने लगे थे।

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बीते कुछ साल पहले इसी नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। हालांकि तीस मार खां इस इलाके में अकेले शिकारी नहीं थे। उनके जैसे कई लोग थे, जिन्होंने उस इलाके के जंगलों में हजारों की संख्या में टाइगर, तेंदुआ और अन्य जानवरों का शिकार किया था। धीरे-धीरे कुछ ही दशकों में ऐसी स्थिति बन गई कि टाइगर लुप्त ही हो गए। यही नहीं ‘तीस मार खां’ के ही पोते आजम जाह उनसे भी आगे निकल गए और 1935 में महज 33 दिनों में ही 35 चीतों को मार डाला था। यही नहीं महबूब अली खान से पहले हैदराबाद के 5वें निजाम अफजल-उद-दौला और ब्रिटिश सैन्य अधिकारी कर्नल जेफरी नाइटेंगल ने करीब 300 टाइगरों को मार डाला था।

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फिलहार देश में हालात ऐसे बन गए हैं कि भारत को प्रोजेक्ट टाइगर चलाना पड़ा और हाल ही में अफ्रीका से भी कुछ टाइगर लाए गए थे। बता दें कि तीस मार खां के नाम को लेकर अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन हैदराबाद के निजाम मीर महबूब अली खां से जुड़े जो तथ्य मिलते हैं, उससे यही बात सही मालूम पड़ती है। हालांकि निजाम तीस मार खां सिर्फ शिकारी ही नहीं था बल्कि कविताएं भी वह लिखते थे। फारसी भाषा, तेलुगु और उर्दू में उन्होंने काफी कविताएं लिखीं।


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com