पटना, 29 दिसंबर (भाषा) नीतीश कुमार सरकार ने बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) से ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी की सहायक प्राध्यापक के तौर पर नियुक्ति रोके जाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
राज्य के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक पद पर ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी की नियुक्ति रोके जाने के मामले का जिक्र कर रहे थे।
मंत्री की नियुक्ति उनके नाम में कथित विसंगतियों के कारण रोकी गई है। शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में वह ‘अशोक कुमार’ नाम का उपयोग करते हैं, जबकि चुनावी हलफनामे में उनका नाम ‘अशोक चौधरी’ दर्ज है।
शिक्षा मंत्री ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, “हमने मामले को आयोग के पास उनकी राय के लिए वापस भेजा है। हमने इसकी समीक्षा की और कुछ बिंदुओं पर अतिरिक्त टिप्पणियां मांगी हैं।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि नियुक्ति करने की जिम्मेदारी आयोग की है, न कि शिक्षा विभाग की।
मंत्री ने कहा, “मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार स्कूल शिक्षा पर केंद्रित है, क्योंकि यही बच्चों की आगे की प्रगति की नींव है।”
गरीब छात्रों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के सवाल पर मंत्री ने कहा, “यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत अनिवार्य है और हम इसे इस सत्र से सख्ती से लागू करेंगे। इस संबंध में मैंने निजी स्कूल संघों के साथ बैठक का भी अनुरोध किया है।”
उन्होंने बताया कि दोहराव रोकने के लिए आधार सीडिंग की जा रही है और सरकारी स्कूलों में 85-90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है, जबकि निजी स्कूलों में भी यह प्रक्रिया की जाएगी।
कुमार ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न संगठनों के साथ एक दर्जन से अधिक समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
उन्होंने कहा, “उदाहरण के तौर पर, ‘ फिजिक्स वल्लाह ’ के साथ समझौता किया गया है, जिसके तहत 300 से अधिक कस्तूरबा गांधी विद्यालयों की छात्राओं को मुफ्त ऑनलाइन कोचिंग दी जा रही है।”
छात्राओं की शिक्षा पर सरकार के फोकस को रेखांकित करते हुए मंत्री ने कहा कि कई कस्तूरबा गांधी विद्यालय स्थापित किए गए हैं, जहां हजारों लड़कियां छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही हैं।
मंत्री ने कहा, “उन्हें और बेहतर प्रदर्शन में मदद के लिए वर्दी, किताबें और भोजन सहित सभी व्यवस्थाएं की गई हैं।”
मंत्री ने दावा किया कि बिहार में स्कूल बीच में छोड़ने की दर एक प्रतिशत से नीचे आ गई है जो पहले अधिक थी।
उनके मुताबिक, ‘तालिमी मरकज’ और ‘टोला सेवक’ कर्मियों ने इसमें बहुत अच्छी भूमिका निभाई है तथा उनके मानदेय को भी दोगुना किया गया है।
हालांकि, विभाग की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि बिहार में बच्चों के स्कूल बीच में छोड़ने का प्रतिशत 2005 में 12.5 प्रतिशत से घटकर 2025 में एक प्रतिशत रह गया है।
वहीं, यूडीआईएसई के आंकड़ों के अनुसार बिहार में स्कूल बीच में छोड़ने की दर प्राथमिक स्तर पर 8.9 प्रतिशत, उच्च प्राथमिक स्तर पर 25.9 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर पर 25.6 प्रतिशत है।
भाषा कैलाश नोमान
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