बिहार में राजग के सबसे छोटे सहयोगी राष्ट्रीय लोक मोर्चा में मिल रहे अंतर्कलह के संकेत

बिहार में राजग के सबसे छोटे सहयोगी राष्ट्रीय लोक मोर्चा में मिल रहे अंतर्कलह के संकेत

बिहार में राजग के सबसे छोटे सहयोगी राष्ट्रीय लोक मोर्चा में मिल रहे अंतर्कलह के संकेत
Modified Date: December 26, 2025 / 09:33 pm IST
Published Date: December 26, 2025 9:33 pm IST

पटना, 26 दिसंबर (भाषा) बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सबसे छोटे घटक राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) में अंतर्कलह के संकेत मिल रहे हैं। अटकलें लगाई जा रही हैं कि चार विधायकों में से एक को छोड़कर शेष सभी ने पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से दूरी बना ली है।

पार्टी के एक नेता ने बताया कि दल में असंतोष इस सप्ताह की शुरुआत में उस समय खुलकर सामने आया, जब कुशवाहा द्वारा आयोजित ‘लिट्टी पार्टी’ में उनकी पत्नी और सासाराम से विधायक स्नेहलता को छोड़कर कोई भी विधायक शामिल नहीं हुआ।

इसी दिन रालोमो के विधायक माधव आनंद, आलोक कुमार सिंह और रामेश्वर महतो ने शहर के दौरे पर आए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नवीन से ‘शिष्टाचार मुलाकात’ की।

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इस मुलाकात के बाद मीडिया के एक वर्ग में यह अटकलें तेज हो गई हैं कि कुशवाहा की पार्टी में विद्रोह हो सकता है। उल्लेखनीय है कि राज्य विधानमंडल का सदस्य न होने के बावजूद कुशवाहा के पुत्र दीपक प्रकाश को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है।

जब पत्रकारों ने हालिया घटनाक्रम को लेकर कुशवाहा से सवाल किए तो उन्होंने झुंझलाते हुए कहा, “लगता है आपके पास पूछने के लिए कोई ढंग का सवाल नहीं है।”

रालोमो के विधानसभा में नेता तथा पार्टी के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव माधव आनंद ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “फिलहाल हम पूरी तरह पार्टी में हैं। कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझा लिया जाएगा।”

हालांकि, कुशवाहा के एक करीबी सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमारे नेता को यह समझना चाहिए कि उन्होंने अपने बेटे को मंत्रिमंडल में भेजकर बड़ी भूल की है, जो अभी राजनीति में नौसिखिया है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया है और भाजपा तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जदयू) जैसे सहयोगियों के बीच भी गलत संदेश गया है।”

उन्होंने कहा, “हर बार संकट से बच निकलने वाले कुशवाहा एक के बाद एक आत्मघाती फैसले लेने के बावजूद राजनीतिक रूप से जीवित रहे हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने अविश्वसनीय होने की छवि बना ली है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि हकीकत स्वीकार करने के बजाय वह खुद को पीड़ित के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।”

यह टिप्पणी रालोमो प्रमुख के सोशल मीडिया पोस्ट और मीडिया बयानों की ओर इशारा करती है, जिनमें उन्होंने अपने बेटे को समर्थन देने के फैसले का बचाव करते हुए कहा था, “अतीत में मैंने जिन लोगों को सांसद और विधायक बनाने में मदद की, उन्हीं ने मुझे धोखा दिया। पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए मुझे जो जरूरी लगा, वह करना पड़ा।”

वहीं, रालोमो प्रमुख के एक अन्य सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कुशवाहा जी को लगता है कि वह अपने लोगों को जब तक चाहें, अपने साथ चला सकते हैं। वह पार्टी टूटने से रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर रहे हैं और अपना सारा समय व ऊर्जा इस बात में लगा रहे हैं कि उनका बेटा छह महीने में विधान परिषद का सदस्य बन जाए, अन्यथा उसे मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ सकता है।”

उन्होंने कहा, “कुशवाहा जी की एक और चिंता राज्यसभा में एक और कार्यकाल को लेकर है, क्योंकि उनका मौजूदा कार्यकाल कुछ महीनों में समाप्त हो रहा है। न तो वह खुद और न ही उनका बेटा बड़े सहयोगियों के समर्थन के बिना निर्वाचित हो सकते हैं। यदि यह साफ हो जाए कि उन्हें अपने ही विधायकों का भरोसा हासिल नहीं है, तो भाजपा और जदयू उनका समर्थन क्यों करेंगी?”

उल्लेखनीय है कि कुशवाहा पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से राजग उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वह भाजपा के समर्थन से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे।

भाजपा उन्हें एक बड़े अन्य पिछड़ा वर्ग समूह कोइरी समुदाय में समर्थन बढ़ाने के उद्देश्य से आगे बढ़ाती रही है।

भाषा कैलाश जोहेब

जोहेब


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