आरक्षण की राजनीति और राजभवन की प्रतिष्ठा और गरिमा को खंडित करते मंत्री एवं राजनीतिक दल

Clash between Raj Bhavan and government over reservation in Chhattisgarh

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  • Publish Date - December 26, 2022 / 12:43 AM IST,
    Updated On - December 26, 2022 / 12:47 AM IST

– देवेन्द्र वर्मा
पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा

reservation in Chhattisgarh छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 20 सितंबर 2022 को अपने न्याय निर्णय से रमन सरकार के 2012 के 58% आरक्षण के कानून को रद्द किया, तब बजाय इसके की छात्रों का शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और बेरोजगारों को रोजगार दिए जाने की उत्पन्न स्थिति का सर्वमान्य हल चर्चा और विचार विमर्श के माध्यम से खोजा जाए,राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में सक्रिय हो गए, उद्देश्य केवल यह बताने का प्रयास कि कौन उनका सच्चा हितैषी है?

reservation in Chhattisgarh इस बीच प्रदेश की जनता आंदोलित होकर राज्य सरकार और राजनीतिक दलों से उनके हितों की रक्षा के लिए आन्दोलित होकर समुचित कार्यवाही शीघ्र करने का अनुरोध करती रही। इसी क्रम में जनता ने राज्य के संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल से भी गुहार लगाई राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को समस्या का शीघ्र निराकरण करने के लिए समुचित कार्यवाही के निर्देश दिए, फलस्वरूप विशेष सत्र आहूत कर शासकीय सेवाओं में तथा शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए कुल 76% आरक्षण (32%अजजा13%अजा24%अपिवऔर4%आर्थिक कमजोर) के प्रस्ताव वाले विधेयक सर्वसम्मति से पारित किए गए।

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राज्य शासन और राजनीतिक दलों को यह संज्ञान में था कि इंदिरा साहनी विरुद्ध भारत सरकार के मामले में 9 सदस्यीय संवैधानिक पीठ के द्वारा 50% आरक्षण की अधिकतम सीमा निर्धारित करने के फलस्वरूप, राज्यपाल विधेयकों को अनुमति दे भी देती हैं, न्यायिक संविक्षा में,अधिकतम सीमा 50%निर्धारित होने के कारण इनको विधी के स्वरूप में प्रभाव शील करना संभव नहीं होगा।

उक्त परिपेक्ष्य में विधेयक पारित करने के साथ-साथ 76%आरक्षण के प्रस्ताव की इन विधियों को न्यायिक संविक्षा से विरत करने हेतु संविधान की नौवीं अनुसूची में सम्मिलित करने का शासकीय संकल्प भी सर्वसम्मति से स्वीकृत कर केंद्र शासन को प्रेषित किया गया। उपरोक्त से स्पष्ट हो गया था कि राज्य शासन को विधेयकों के पारित करने के साथ ही इनके कानून के रूप में प्रभावशील बनने में संदेह था। ऐसा प्रतीत होता है कि इन विधेयकों को पारित करने का उद्देश्य केवल यह था कि राज्यपाल इन विधेयकों पर हस्ताक्षर कर दें, और फिलहाल वर्तमान स्थिति को कुछ समय के लिए टाला जा सके।

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यहां यह महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में नवीं अनुसूची की संवैधानिकता का मामला उच्चतम न्यायालय की 7 सदस्यीय बेंच के समक्ष विचाराधीन है, इसके साथ ही छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना सहित कुछ राज्यों की 50% से अधिक आरक्षण दिए जाने संबंधी याचिकाएं भी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन लंबित हैं। भारत सरकार ने भी संसद में एक प्रश्न के उत्तर में यह बताया है कि जब तक इस विषय से संबंधित मामले उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं अग्रिम कार्यवाही नहीं की जा सकती। उपरोक्त समस्त वैधानिक स्थिति राज्य शासन के संज्ञान में है तथा राज्य शासन द्वारा दायर याचिका के संबंध में तो राज्य शासन ने उत्तर प्रस्तुत करने हेतु आगामी तिथि निर्धारित करने का अनुरोध भी किया है।

उपरोक्त समस्त स्थिति स्पष्ट एवं संज्ञान में होते हुए भी, मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सदस्य जिन्हें राज्य के संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल ने संविधान की शपथ दिलाई है निरंतर राज्यपाल और राजभवन पर हस्ताक्षर हेतु दबाव बनाने के लिए समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से अपमानजनक आक्षेपो का प्रचार प्रसार कर राज्यपाल एवं राजभवन की मर्यादा एवं गरिमा को तार-तार कर रहे हैं।”कुछ उदाहरण निम्नांकित है:-
राजभवन राजनीति का अड्डा बन गया है,
बीजेपी के मकड़जाल में फंस गई है,
भारतीय जनता पार्टी के दबाव में हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं,
पद का दुरुपयोग कर रही है,
उसके पेट में दर्द हो रहा था,
राज्यपाल भारतीय जनता पार्टी से आई हैं,
संघ के इशारे पर कार्य कर रहीं हैं।”

वर्तमान सरकार राज्यपाल की सरकार है और राज्यपाल द्वारा नियुक्त मंत्रिमंडल के सदस्यों को अपने वक्तव्य देने में सावधानी बरतना चाहिए। राज्यपाल के विरुद्ध अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग और जानबूझकर राज्यपाल एवं राज भवन की गरिमा को धूमिल करने संबंधी कोई भी कार्य से जिम्मेदार व्यक्तियों को बचना चाहिए।

 

 लेखकः देवेन्द्र वर्मा