NindakNiyre: कितना सही है कांग्रेस का जल्दी टिकटों का ऐलान करना | nindakniyre-how is congress josh now after announcing tickets

NindakNiyre: कितना सही है कांग्रेस का जल्दी टिकटों का ऐलान करना

NindakNiyre: कितना सही है कांग्रेस का जल्दी टिकटों का ऐलान करना: nindakniyre-how is congress josh now after announcing tickets

Edited By :   Modified Date:  March 11, 2024 / 02:29 PM IST, Published Date : March 11, 2024/2:29 pm IST

बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक

how is congress josh  मेरी जानकारी में ऐसा कम ही होता आया है जब चुनावी शिड्यूल न बना हो और टिकटें बांट दी जाएं। इसकी शुरुआत भाजपा ने की है। लोकसभा चुनाव का शिड्यूल नहीं आया है, किंतु भाजपा ने छत्तीसगढ़ और एमपी समेत देश के 16 राज्यों के 195 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। जबकि कांग्रेस ने भी बैक टु बैक ऐलान किया है। इनमें छत्तीसगढ़ से भी 6 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में हैं।

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how is congress josh  भाजपा ने अपनी पहली सूची में पार्टी के सबसे बड़े नेता मोदी को बनारस से उतारा तो कांग्रेस ने भी अपने सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को वायनाड से उतारने का ऐलान कर दिया है। यहां कुछ समानताएं दोनों ही दलों की टिकटों में दिखाई देती हैं। जैसे कि सर्वोच्च नेताओं को टिकट जल्दी देना, आदर्श चुनाव आचार संहिता के ऐलान से पूर्व टिकटों का ऐलान, एक साथ बड़ी संख्या में ऐलान और बड़े नेताओं को मैदान में उतारना।

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यहां ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने भाजपा को फॉलो किया है। ठीक है, यह विवाद का विषय हो सकता है। किंतु अगर फॉलो किया है तो यह गलत किया है। कारण बहुत साफ है। भाजपा के पास इन चुनावों में पर्याप्त अवसर था कि वह अर्ली डिक्लेयर करे, क्योंकि उसका अधिकतर जगहों पर सिंगल एनाउंसमेंट है। यानि कम से कम गठबंधन है। जहां कहीं है भी तो बहुत सीमित सीटों पर है। कोई ज्यादा कन्फ्यूजन भी नहीं है। यहां कोई न टिकट मिलने पर दूसरे दल मे नहीं जाता, कोई स्थानीय स्तर पर विरोध या नाखुशी जैसी चीजें मीडिया में नहीं आती, कोई बगावत नहीं होती, सब मानकर चलते हैं ऊपर से फैसला आएगा, जिसका आएगा उसके साथ सारा दल जाएगा। इसके लिए अनुशासन से लेकर भाजपा कार्यकारी स्ट्रक्चर पर भी बहुत काम करने वाली पार्टी है। बड़े नेताओं को देकर भी जीत सकती है। इसीलिए उसका अर्ली ऐलान उसे फायदा ही देगा।

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अब इसके उलट कांग्रेस को देखते हैं। पहली बात तो कांग्रेस अभी बहुत सारे प्रदेशों में गठबंधन को लेकर जूझ रही है। फिर वह उतनी अनुशासित पार्टी नहीं है। ऐन इलेक्शन से पहले कई नाखुश, असहमत, विरोधी, बागी नुकसान पहुंचा सकते हैं। उनके पास नुकसान करने का अवसर पर्याप्त है। बड़े नेता खुद चुनाव लड़ेंगे तो लड़वाएगा कौन। अनुभवियों को मैदान में उतारने से बाकियों के मैदान फंस जाते हैं। जैसा कि छत्तीसगढ़ में अगर भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू जैसे कद्दावर नेता चुनाव खुद लड़ेंगे तो बाकी सीटों पर लड़वाएगा कौन? एक और अहम बात कि अगर ये बड़ी छवियां चुनाव नहीं निकाल पाती तो फिर नई लीडरशिप को कैसे उभारेंगे। कोई ऐसा मुकम्मल प्रयास नजर नहीं आता। ऐसे में कांग्रेस सिर्फ कट, कॉपी और पेस्ट के सहारे आगे नहीं बढ़ सकती।

 

 

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