बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी-24
100 days of Rahul Gandhi BHARAT JODO YATRA: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को आज पूरे 100 दिन हो चुके हैं। कन्याकुमारी से शुरू इस यात्रा का 100वें दिन राजस्थान में पड़ाव है। भारत में राजनीतिक यात्राओं के नतीजे हमेशा ही राजनीतिक रूप से अच्छे आए हैं। इस उम्मीद से भले ही यह यात्रा शुरू की गई है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि ऐसी यात्राएं राजनेता में विश्वास बढ़ाती हैं। नेता अपने जीवन काल में फिर चाहे वह चुनाव हारे या जीते, लेकिन उसकी आत्मशक्ति में अद्भुत निखार होता है। भारत में राजनीतिक लोगों की यात्राएं एक तो भारत की असली समझ को विकसित करने में सहायक होती हैं दूसरी ये यात्राएं समाज, देश, दुनिया के बीच बनी नेता की छवि का भी रियल टेस्ट हो जाती हैं। अब तक की यात्राएं देखें तो समझ सकते हैं कि नेताओं ने इनके जरिए पॉलिटिकली हाईजंप तो लिया है।
आज जब 100 दिन हो गए हैं तो यह जानना जरूरी है कि राहुल ने इस यात्रा से क्या खोया और क्या पाया और क्या वे पा सकते हैं। राहुल गांधी भारत के बड़े नेता हैं। उनकी स्वीकार्यता को लेकर भले ही प्रश्न होते रहे हैं, लेकिन बड़ी पार्टी के बड़े नेता को लेकर कोई संशय नहीं है। राहुल गांधी ने इस यात्रा में 10 चीजें हासिल की हैं, जिनका काट किसी के पास फिलहाल नहीं है।
राहुल पर यह इल्जाम लगता रहा है कि वे ठहरते नहीं। चुनावों के तुरंत बाद छुट्टियां मनाने चले जाते हैं। इस यात्रा ने उनकी यह छवि तोड़ी है।
उनकी छवि अपरिपक्व की भी बनी हुई है। जिसे तोड़ने में वे कामयाब नजर आ रहे हैं। वे इस दौरान निर्मल नेता के रूप में उभर रहे हैं।
समाज के हर वर्ग से मिलने के कारण उनकी छवि इस यात्रा में समाज की अच्छी समझ रखने वाले नेता की भी बन रही है।
सबको साथ लेकर चलने की कोशिश के मूलमंत्र के साथ राहुल की इस यात्रा से यह छवि प्रमाणित हो रही है।
राहुल ने मौजूदा हिमाचल, गुजरात जैसे अहम चुनावों के दौरान भी अपनी यात्रा को जारी रखा। इससे उनकी छवि चुनावी नेता से ज्यादा पूर्णकालिक नेता की बनी।
राहुल गांधी की छवि पर लगी अपरिपक्वता की मुहर को वे साफ करते हुए शारीरिक रूप से भी बलिष्ठ नौजवान नेता की बनाने में कामयाब हैं। वे युवा हैं यह उनकी थकानमुक्त यात्रा सिद्ध कर रही है।
उनकी यात्रा में आरबीआई गवर्नर का साक्षात्कार दिखाता है कि वे बिजनेस, बाजार को भी अच्छी तरह से समझते हैं। विशेषज्ञों को मोबलाइज कर सकते हैं।
भारत में प्रेसप्रिय नेताओं में इस वक्त सबसे ऊपर मोदी हैं। विवादों से तो बहुत से नेता प्रेसप्रिय रहे हैं, लेकिन राहुल मोदी के बाद दूसरे ऐसे नेता हैं, जो निर्विवाद रूप से प्रेस के प्रिय नेता बनकर उभर रहे हैं। इंदौर की प्रेस कॉन्फ्रेंस और सधी हुई बातें इसका प्रमाण हैं।
राहुल ने अपनी मां की राजनीति से इतर अपने आपको अलग गढ़ने की कोशिश की है। वे वंशवादी नहीं बल्कि समन्वयवादी नेता के रूप में उभर रहे हैं। भाजपा नेता जब छत से मोदी-मोदी के नारे लगा रहे थे तो राहुल उन्हें फूल दे रहे थे। यह नाटकीय होकर भी संदेशपूर्ण है।
वे अपनी यात्राओं में कांग्रेस के ही नेताओं को डांट, डपट भी कर रहे हैं। जहां वे असहमत हैं वहां वे साफ कह रहे हैं। इससे सिद्ध हो रहा है कि वे एक अच्छे प्रशासक भी हैं।
नए भारत में जोड़-तोड़ की सरकारों के लिए स्थान कम हो रहा है। ऐसे में जो आएगा बहुमत से ही आएगा। क्योंकि लोग करीब से बहुमत की सरकार की ताकत और काम देख रहे हैं। ऐसे में राहुल की यह यात्रा कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध होगी। 2024 में वे भले न जीतें, लेकिन देश में एक मजबूत विकल्प बनकर तो उभर रहे हैं। यह ऐसा विकल्प भी ऐसा विकल्प नहीं जो विकल्पहीनता में चुना जाए, बल्कि स्वमेव, स्वस्फूर्त चुना जा सकने वाला विकल्प। हल्के-फुल्के अंदाज में कहें तो वे कुंवारे हैं और दाढ़ी भी बढ़ा रखी है। पैदल चल ही रहे हैं। सकारात्मकता से सबसे मिल ही रहे हैं और देश को अपना एक विजन भी बता ही रहे हैं। ऐसे में वे मोदी के विकल्प बनने की ओर से बढ़ चुके हैं।