बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक, IBC24
हिमाचल की जीत से जिसे जो मिला हो अलहदा बात है, लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को इस जीत ने बहुत कुछ दिया है। कांग्रेस की सियासत में नेतृत्व के इस वैक्यूम काल में बघेल एक आशा की किरण बनकर उभर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश की सारी बनावट और आंतरिक बुनावट का जिम्मा सीधे बघेल के हाथ में रहा। हर बार बदलाव के रिवाज वाले राज्य में भले ही ऐसा लगता हो कि बदलना ही था, लेकिन यह अधूरा सच है। राजनीति में कोई भी रिवाज स्थायी नहीं रहता। बघेल के छत्तीसगढ़िया मॉडल में शुमार स्थानीयता को आगे रखना इसमें सबसे अहम कदम सिद्ध हुआ। हिमाचल में बघेल के बढ़े कद में इन बातों ने अहम भूमिका निभाई।
हिमाचल में भाजपा जहां राष्ट्रीय मसलों पर लड़ रही थी तो वहीं कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को पकड़ा। सरकार के विरुद्ध लोकभावना को बढ़ाया और इसका सीधा फायदा लिया। छत्तीसगढ़ में बघेल ने जिस तरह से छत्तीसगढ़िया लोकजीवन पर अपनी राजनीतिक पकड़ बनाई है वैसा ही कुछ हिमाचल कांग्रेस ने किया।
हिमाचल में एनपीएस से नाराज चल रहे करीब ढाई लाख कर्मचारियों को साधा। इनके मार्फत करीब 10 लाख वोटर्स सधे। यह साधना कारगर रही। यह बघेल का ही आइडिया था कि एनपीएस के स्थान पर पुरानी पेंशन का वादा किया जाए। इसका फायदा मिला। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में हाफ बिजली का कारगर उपाय भी काम आया। हिमाचल में 300 यूनिट तक फ्री बिजली का ऐलान महिला वोटर के लिए सहायक रहा।
इसके इतर इस कॉन्सेप्ट या परसेप्शन को हिमाचल कांग्रेस ने खूब भुनाया और बुलंद रखा कि यहां हर बार सरकार बदल जाती है। भाजपा के अंदर की लड़ाई का पूरा इस्तेमाल किया।
bhupesh baghel in himachal election