Independence day 2024 : आजाद हिंदुस्तान के गुमनाम नायक, अपना सर्वस्व न्यौछावर कर जिन्होंने देश को दिलाई आजादी, आधुनिक युग में धुंधली पड़ी पहचान

Independence day 2024 : आजाद हिंदुस्तान के गुमनाम नायक, अपना सर्वस्व न्यौछावर कर जिन्होंने देश को दिलाई आजादी, आधुनिक युग में धुंधली पड़ी पहचान

Independence day 2024 : आजाद हिंदुस्तान के गुमनाम नायक, अपना सर्वस्व न्यौछावर कर जिन्होंने देश को दिलाई आजादी, आधुनिक युग में धुंधली पड़ी पहचान

Independence day 2024

Modified Date: August 4, 2024 / 09:43 pm IST
Published Date: August 4, 2024 9:43 pm IST

Independence day 2024 :  भारत के इतिहास में और हर भारतीय नागरिक के जीवन में 15 अगस्त सबसे महत्वपूर्ण दिन है। यही वह दिन है जब भारत को 200 सालों की अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली थी। 15 अगस्त 1947 के दिन हमारा देश गुलामी की बेड़ियों को काटकर ब्रिटिश शासन के चंगुल से आजाद हुआ था। इसके बाद यह दिन भारत के स्वर्णिम इतिहास में अंकित हो गया।

वहीं हर भारतीय 15 अगस्त के इस खास दिन को स्वतंत्रता दिवस के तौर पर बड़ी धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाता आ रहा है। वहीं अंग्रेजों के साथ लड़ाई में कई ऐसे नायक भी हुए हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। हालांकि इन नायकों की कहानियां समय के साथ थोड़ी धुंधली हो गई हैं। या ये कहा जा सकता है कि अब बीतते समय के साथ इन्हें भूला दिया गया है।

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जगमोहन मंडल

जगमोहन मंडल का जन्म सन् 1910 में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा पटना विद्यापीठ में की थी। पटना में ही वे आंदोलनकारियों के सानिध्य में आए तथा आजादी के महासंग्राम में कूद गये। इस दौरान उन्होंने पूर्णिया जिले के विभिन्न अनुमंडलों कटिहार, अररिया, फारबिसगंज, कुरसेला रूपौली में अलग-अलग शाखा निर्माण कर नवयुवकों को महासंग्राम में जोड़ने का काम किया। जिसके बाद वे अंग्रेजों की नजर में आ गए। जब वे नील की खेती का विरोध कर रहे थे तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार किया और इतनी पिटाई की कि वे गंभीर रूप से जख्मी हो गए। बावजूद वे निरंतर सहयोगियों के साथ घुड़सवारी से महासंग्राम में जुटे रहे।

दुर्गावती देवी

दुर्गावती देवी, जिन्हें दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है, उनका जन्म 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद के एक गुजराती परिवार में हुआ था। ग्यारह साल की उम्र में उनका विवाह भगवती चरण वोहरा से हुआ था। उन्होंने हिंदी में ऑनर्स की परीक्षा पास की और एक स्कूल में हिंदी की शिक्षिका बन गई। अंग्रेज सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह की पत्नी बनकर लाहौर से भागने में मदद की। अपने पति की शहादत के बाद, उन्होंने खुद क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया। यहां तक कि बॉम्बे में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को भी गोली मार दी। उन्होंने लखनऊ में शहीद स्मारक की स्थापना की और वहां एक मोंटेसरी स्कूल खोला और 15 अक्टूबर 1999 को 92 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

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केशव प्रसाद

बिहार के गया के रहने वाले केशव प्रसाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्य थे। उन्हें गया में विस्फोटक और हथियार जब्ती की घटना के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। गया षडयंत्र मामले में उन पर मुकदमा चलाया गया और 1933 में उन्हें सात साल जेल की सजा सुनाई गई। इसके बाद वे अंडमान में 37 दिनों तक चली भूख हड़ताल में शामिल हुए 1938 में केशव प्रसाद को रिहा कर दिया गया। 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान वह फिर गिरफ्तार हो गए।

अजायब सिंह

अजायब सिंह अमृतसर जिले के नंदपुर गांव के रहने वाले थे। वह ब्रिटिश भारतीय सेना की 21 कैवलरी के सदस्य थे। अजैब सिंह की रेजिमेंट द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने से पहले मेरठ में तैनात थी। बता दें कि उनका दिमाग कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित थे और उनमें से कुछ ब्रिटिश शासन के मुखर विरोधी बन गए। नवम्बर 1939 में रेजिमेंट को सिकंदराबाद जाने का आदेश दिया गया। इसके बाद अजायब सिंह पर सशस्त्र बलों के विद्रोह को उकसाने का आरोप लगाया गया और मौत की सजा सुनाई गई। 6 सितंबर 1940 को उन्हें सिकंदराबाद जेल में फांसी दे दी गई।

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मीर कादिर अली

मीर कादिर अली का जन्म 28 फरवरी 1822 उत्तर प्रदेश के कालपी में हुआ था। उन्हें अंग्रेज सैनिकों की हत्या का दोषी ठहराया गया था और जालौन में उनके सहयोगियों के साथ गिरफ्तार किया गया था। 07 जनवरी 1858 को उन सभी को उपायुक्त टर्नर की अदालत में पेश होना पड़ा। 10 मार्च 1858 को उन्हें कालापानी की सजा दी गई वह कालपी से कालापानी आने वाले पहले विद्रोही थे। कालपी में मीर कादिर अली की संपत्ति तुरंत जब्त कर ली गई।

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