रांची, 25 दिसंबर (भाषा) झारखंड करीब 45,000 हेक्टेयर खनन भूमि का पुन: उपयोग करके, पारंपरिक ऊर्जा संपत्तियों का लाभ उठाकर और कम कार्बन उत्सर्जन वाले औद्योगिक मार्गों को बढ़ावा देकर भारत के शुद्ध शून्य लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
दिल्ली स्थित शोध संस्थान ‘इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी’ (आईफॉरेस्ट) द्वारा किए गए अध्ययन में कोयला खनन एवं बिजली, इस्पात, मोटर वाहन तथा अन्य प्रमुख उद्योगों में राज्य के परिवर्तन की संभावनाओं का व्यापक आकलन प्रस्तुत किया गया है।
इसमें कहा गया है, ‘‘ बंद एवं गैर-संचालित कोयला खदानों से 11,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि तुरंत उपलब्ध है। कुल मिलाकर, अगले पांच से 10 वर्ष में करीब 45,000 हेक्टेयर भूमि के पुनः उपयोग की योजना बनाई जा सकती है। इससे नवीकरणीय ऊर्जा, हरित विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स एवं संबंधित गतिविधियों जैसे हरित निवेश के लिए खनन भूमि के पुनः उपयोग का बड़ा अवसर मिलेगा जो कोयला-निर्भर जिलों में आर्थिक विविधीकरण और रोजगार सृजन को समर्थन देगा। ’’
अध्ययन के अनुसार, जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) में संचय के रूप में 16,977 करोड़ रुपये की राशि के साथ झारखंड के पास कोयला बहुल जिलों में आजीविका विविधीकरण, कौशल विकास एवं अन्य कल्याणकारी गतिविधियों सहित संतुलित बदलाव के अनुरूप निवेश को प्रारंभिक चरणों में वित्तपोषित करने का एक बड़ा अवसर है।
अध्ययन में भारत के निम्न-कार्बन विकास मार्ग में राज्य के रणनीतिक महत्व को रेखांकित किया गया। साथ ही इसमें कहा गया कि यदि समय रहते योजना बनाई जाए तो कोयला परिवर्तन हरित निवेश और रोजगार सृजन के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है।
इसमें कहा गया, ‘‘ खनन योग्य भंडार के समाप्त होने और आर्थिक व्यवहार्यता घटने के कारण करीब 60 प्रतिशत खदानें अपने मौजूदा खनन चरण के अंत की ओर बढ़ रही हैं। ऐसे में अगले एक दशक में इन खदानों से जुड़ी भूमि का सुनियोजित पुनरुपयोग करने से विशेषकर धनबाद, बोकारो और रामगढ़ जैसे जिलों में बड़े अतिरिक्त भूमि क्षेत्र उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
अध्ययन में कहा गया कि झारखंड में नवीकरणीय ऊर्जा की अनुमानित 77 गीगावाट क्षमता है और इसमें पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार विस्तार की सिफारिश की गई है। इसमें पुन: उपयोग की गई खनन भूमि, औद्योगिक बंजर भूमि और जल निकायों का उपयोग ‘फ्लोटिंग सोलर’ के लिए किया जाएगा जिसे डीवीसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की उपयोगिताओं द्वारा समर्थित किया जाएगा, खासकर पुराने कोयला क्षेत्रों में।
इसमें कहा गया है कि इस्पात क्षेत्र तथा उसकी मूल्य श्रृंखला भी एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है। भारत की कुल कच्चे इस्पात उत्पादन क्षमता का करीब 12 प्रतिशत झारखंड में होने के कारण राज्य हरित इस्पात और हरित हाइड्रोजन को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाने की बेहतर स्थिति में है।
आईफॉरेस्ट में संतुलित बदलाव एवं जलवायु परिवर्तन की निदेशक स्रेष्ठा बनर्जी ने कहा, ‘‘ भूमि और ऊर्जा परिसंपत्तियों के पुनः उपयोग के जरिये राज्य हरित निवेश आकर्षित कर सकता है और बदलाव वाले जिलों में रोजगार सृजित कर सकता है, ताकि स्थानीय समुदाय इस बदलाव से लाभान्वित हो सकें। राज्य पहले से ही सरलीकृत अनुमति प्रक्रियाओं के माध्यम से उद्योग निवेश को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर रहा है।”
राज्य के वन एवं पर्यावरण सचिव अबूबकर सिद्दीक ने कहा कि भूमि किसी भी आर्थिक विकास के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन है।
उन्होंने कहा, ‘‘ झारखंड के लिए खनन भूमि के पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण के जरिये इसे समर्थन देने का यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। हरित विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ हमें विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में जलवायु एवं संतुलित बदलाव से जुड़े पहलुओं को मुख्यधारा में लाना होगा और उसी के अनुरूप राज्य बजट का आवंटन भी करना होगा। ’’
सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक नीलेंदु कुमार सिंह ने कहा कि अगले 30–40 वर्ष में खनन बंद होने वाला नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इसलिए हमारे पास योजना बनाने के लिए समय है। यह योजना स्थानीय अवसरों, ज्ञान व कौशल के आधार पर भूमि के पुन: उपयोग के जरिये सही विकल्प तैयार करने वाली होनी चाहिए ताकि लोग स्वाभाविक रूप से बदलाव की ओर बढ़ सकें। कोयला उद्योग के लिए यह भी जरूरी है कि स्वच्छ कोयले का उपयोग किया जाए और उत्सर्जन कम करने के लिए हरित खनन एवं परिवहन पद्धतियों की ओर बढ़ा जाए। ’’
राज्य के श्रम सचिव जितेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि ऊर्जा परिवर्तन वास्तव में आजीविका का बदलाव है और झारखंड इस दिशा में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और कौशल विकास सोसायटी के माध्यम से कदम उठा रहा है।
अध्ययन में अगले एक दशक के दौरान धनबाद, बोकारो, रामगढ़, चतरा, हजारीबाग, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम को बदलाव के प्रमुख केंद्र (हॉटस्पॉट) के रूप में चिह्नित किया गया है।
इसमें कहा गया कि झारखंड के राजस्व का करीब 32 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से आता है, इसलिए इसका असर काफी बड़ा होगा।
राज्य सतत संतुलित बदलाव कार्यबल के चेयरपर्सन अजय कुमार रस्तोगी ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों एवं व्यापक परिवेशी तंत्र को बदलाव की ओर ले जाने की है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इसके लिए शिक्षा और वैकल्पिक आजीविका की जरूरत होगी।’’
भाषा निहारिका मनीषा
मनीषा