मुंबई, 20 अप्रैल (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस महीने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में कहा था कि पिछले एक साल में मौद्रिक नीति को लेकर जो कदम उठाये गये हैं, उसका असर अब भी जारी है और उसपर करीब से नजर रखने की जरूरत है। बृहस्पतिवार को जारी एमपीसी की बैठक के ब्योरे में यह कहा गया है।
दास ने एमपीसी के पांच अन्य सदस्यों के साथ नीतिगत दर को यथावत रखने का फैसला किया था।
केंद्रीय बैंक ने इस महीने की शुरुआत में पेश मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा।
इससे पहले, आरबीआई ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये पिछले साल मई से लेकर कुल छह बार में रेपो दर में 2.50 प्रतिशत की वृद्धि की थी।
बैठक के ब्योरे के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति की तीन से छह अप्रैल को हुई बैठक में दास ने कहा था, ‘‘पिछले एक साल में मौद्रिक नीति को लेकर जो कदम उठाये गये हैं, उसका असर अब भी जारी है और उसपर करीब से नजर रखने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 में मुद्रास्फीति के नरम होने का अनुमान है। लेकिन इसके लक्ष्य के दायरे में आने की अवधि धीमी और लंबी हो सकती है। 2023-24 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति के कम होकर 5.2 प्रतिशत आने का अनुमान है जो अब भी लक्ष्य से ज्यादा है।
आरबीआई को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।
दास ने कहा, ‘‘इसीलिए इस समय हमारा जोर मुद्रास्फीति को टिकाऊ रूप से नीचे लाने पर है और दूसरी तरफ हमने जो पूर्व में कदम उठाये हैं, उसके प्रभाव को देखने के लिये स्वयं को कुछ समय देने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसीलिए, मेरा मानना है कि हमने एमपीसी की इस बैठक में रेपो दर को बरकरार रखने को लेकर सोच-विचारकर कदम उठाया गया है।’’
एमपीसी के सदस्य और आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने कहा कि मुद्रास्फीति को लक्ष्य के दायरे में वापस लाने की प्रक्रिया धीरे-धीरे और असमान हो सकती है। लेकिन मौद्रिक नीति का लक्ष्य अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव को कम करते हुए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है।
उल्लेखनीय है कि खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में घटकर 15 महीने के निचले स्तर 5.66 प्रतिशत पर आ गई है।
भाषा
रमण अजय
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