विदेशी बाजारों में मामूली सुधार के बावजूद ज्यादातर तेल-तिलहन के भाव स्थिर

विदेशी बाजारों में मामूली सुधार के बावजूद ज्यादातर तेल-तिलहन के भाव स्थिर

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  • Publish Date - May 2, 2024 / 09:41 PM IST,
    Updated On - May 2, 2024 / 09:41 PM IST

नयी दिल्ली, दो मई (भाषा) विदेशी बाजारों में मामूली सुधार के बावजूद देश के बाजारों में बृहस्पतिवार को सरसों, मूंगफली तेल-तिलहन सहित कच्चे पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल के थोक भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए जबकि सोयाबीन तेल-तिलहन तथा बिनौला तेल की थोक कीमतों में मामूली सुधार दिखा।

मलेशिया और शिकॉगो एक्सचेंज में मामूली सुधार है।

बाजार सूत्रों ने कहा कि हाजिर बाजार में खाद्य तेल तिलहनों की कमी को देखते हुए आने वाले दिनों में आयात बढ़ने की उम्मीदों के बीच अधिकांश खाद्य तेलों के भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए।

शिकॉगो एक्सचेंज में सुधार के बीच यहां सोयाबीन तेल-तिलहन के दाम भी मामूली सुधार के साथ बंद हुए। लेकिन सोयाबीन की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर होना जारी है। आगामी खरीफ बुवाई के समय इन बातों का सोयाबीन के साथ-साथ मूंगफली जैसी फसलों की बुवाई पर विपरीत असर होने की आशंका जताई जा रही है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा खाद्य तेल की कमी की समस्या तात्कालिक है और जल्द ही स्थिति में बदलाव आयेगा। सूत्रों ने कहा कि ऐसे कुछ विशेषज्ञ ही कभी सही जानकारी सामने नहीं लाते कि तेल-तिलहन उद्योग, किसान, पेराई मिलों, उपभोक्ताओं की असली समस्या कहां है। जबकि देश के तेल-तिलहन उद्योग के समक्ष यह समस्या लगभग 25 वर्षो से चल रही है जहां तेल के दाम बांधे रखने की मुहिम चलती रहती है। वास्तवितकता यह है कि दूध के मुकाबले प्रति व्यक्ति खाद्य तेलों की खपत काफी कम है लेकिन पिछले दिनों दूध के दाम कई बार बढ़ने के बावजूद उसमें महंगाई नजर नहीं आती।

उन्होंने कहा कि 1998-99 में सूरजमुखी तिलहन का उत्पादन 26.76 लाख टन का होता था लेकिन अनिश्चित आयात नीति के कारण धीरे-धीरे किसानों को इसकी खेती में फायदा मिलना बंद हुआ और वे इसकी खेती को कम करते गये। मौजूदा समय में सूरजमुखी तिलहन का उत्पादन सिमटकर 70-80 हजार टन रह गया है और सूरजमुखी तेल के लिए देश लगभग आयात पर निर्भर हो चला है। इसी प्रकार वर्ष 1987-88 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मूंगफली का इतना अधिक उत्पादन होता था कि गुजरात में वर्ष 1987 में जब सूखा पड़ा था तो उस समय इन राज्यों ने मूंगफली तेल की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में की, जिससे मूंगफली तेल के दाम आधे रह गये थे। अनिश्चित आयात नीति की वजह से अब इन राज्यों से मूंगफली तेल- तिलहन की खेती लगभग समाप्त हो चली है।

सूत्रों ने कहा कि नकली बिनौला खल के कारण बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया। जब असली बिनौला खल बाजार में नकली खल की वजह से नहीं बिकते तो उसकी कमी को तेल के दाम बढ़ाकर पूरा करना मुश्किल हो जाता है। कपास (जिससे बिनौला निकाला जाता है) की खेती, किसान इसलिए करते हैं क्योंकि इसमें अधिक बिनौला खल निकलता है, जिसे बेचकर उन्हें फायदा होता है। लेकिन जब नकली खल 25-26 रुपये किलो बिके तो 32 रुपये किलो वाले असली बिनौला खल को कौन खरीदेगा। इस कारण किसान भी मंडियों में अपनी उपज कम ला रहे हैं।

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 5,275-5,315 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,075-6,350 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 14,550 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,210-2,475 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 10,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,710-1,810 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,710-1,825 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 9,850 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 9,550 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,260 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,625 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,750 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,850 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,900 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 4,750-4,770 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,550-4,590 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,075 रुपये प्रति क्विंटल।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय