पुणे, 29 दिुसंबर (भाषा) राष्ट्रीय सहकारी चीनी मिल महासंघ (एनएफसीएसएफ) के चेयरमैन हर्षवर्धन पाटिल ने चीनी को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताए जाने की बढ़ती धारणा पर चिंता जताते हुए सोमवार को कहा कि यदि यह सोच व्यापक रूप से मजबूत होती है तो इससे चीनी उद्योग को गंभीर नुकसान हो सकता है।
पाटिल ने कहा कि उद्योग की लगभग 90 प्रतिशत आय चीनी बिक्री से आती है और ऐसे में मांग पर असर पूरे क्षेत्र के लिए चुनौती बन सकता है।
पुणे स्थित वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट की वार्षिक आम बैठक को संबोधित करते हुए पाटिल ने कहा कि कुछ इलाकों में चीनी को सिगरेट पैकेट पर दिए जाने वाले वैधानिक स्वास्थ्य चेतावनियों की तरह “स्वास्थ्य के लिए जहर” के रूप में पेश किया जा रहा है।
उन्होंने चेताया कि अगर यह धारणा तेजी से फैलती है तो उद्योग के सामने गंभीर संकट खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि चीनी से इतर इसके उप-उत्पादों से केवल 10–15 प्रतिशत आय होती है, जो राजस्व संतुलन के लिए पर्याप्त नहीं है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि वैश्विक स्तर पर चीनी-आधारित पेय पदार्थों की खपत में गिरावट देखी जा रही है।
पाटिल ने कहा, ‘बहुराष्ट्रीय कंपनियों से बातचीत में यह सामने आया है कि उपभोक्ता अब तेजी से जीरो शुगर और डाइट विकल्पों की तरफ झुक रहे हैं। लोग अब चीनी मिलाए गए पेय खरीदने को तैयार नहीं हैं।”
उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता, खासकर मधुमेह रोगियों के बीच, को स्वीकार करते हुए कहा कि इसके उलट चीनी उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जिससे मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा हो रहा है।
पाटिल ने कहा कि यह स्थिति चीनी मिलों, किसानों और श्रमिकों—तीनों के लिए चिंता का विषय है।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
रमण