नयी दिल्ली, 28 अगस्त (भाषा) भारत में कृत्रिम मेधा (एआई) का बाजार अभूतपूर्व तेजी से बढ़ रहा है और वर्ष 2025 तक इसके 28.8 अरब डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है। लेकिन इसे कुशल पेशेवरों की भारी किल्लत के रूप में एक गंभीर समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। एक पेशेवर रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है।
टीमलीज डिजिटल की बृहस्पतिवार को जारी नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में जनरेटिव यानी सृजन से जुड़े एआई (जेनएआई) के क्षेत्र में स्वीकृत हर 10 पदों के लिए सिर्फ एक काबिल इंजीनियर ही मिल पा रहा है।
अगर ऐसी ही स्थिति रही तो 2026 तक एआई के क्षेत्र में 53 प्रतिशत तक प्रतिभाओं की कमी हो सकती है। वहीं, क्लाउड कंप्यूटिंग में यह अंतर 55-60 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग, एलएलएम सेफ्टी, एआई ऑर्केस्ट्रेशन और एआई अनुपालन जैसी विशेषज्ञ भूमिकाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) में वरिष्ठ जनरेटिव एआई इंजीनियरों के वेतन 58-60 लाख रुपये प्रति वर्ष तक पहुंच रहे हैं।
रिपोर्ट कहती है कि भारत का डिजिटल परिवेश तेजी से एआई और क्लाउड की ओर बढ़ रहा है। लेकिन अगर कौशल में सुधार और प्रशिक्षण के कार्यक्रम नहीं बढ़ाए गए तो कंपनियों की वृद्धि के सपनों को बड़ा झटका लग सकता है।
वहीं, जीसीसी भारत के डिजिटल परिवर्तन में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। वर्ष 2027 तक देश में 2,100 से अधिक वैश्विक क्षमता केंद्रों की स्थापना की संभावना है, जो 30 लाख से अधिक पेशेवरों को रोजगार देंगे। सिर्फ 2025 में ही 1.3 से 1.4 लाख नए स्नातकों की भर्ती की जाएगी।
प्रौद्योगिकी कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ रही है, जहां शीर्ष 20 जीसीसी के कर्मचारियों में 40 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो उद्योग के औसत से डेढ़ गुना अधिक है।
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि एआई का प्रभाव आने वाले वर्षों में वैश्विक नौकरियों के 40 प्रतिशत हिस्से को प्रभावित कर सकता है। खासकर आईटी सेवाएं, स्वास्थ्य देखभाल, ग्राहक सेवा और वित्तीय क्षेत्रों में इसकी अधिक मार पड़ने की आशंका है।
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प्रेम रमण
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