उर्जित पटेल के समय रुख से पलटने का आदी था रिजर्व बैंक: पूर्व वित्त सचिव गर्ग

उर्जित पटेल के समय रुख से पलटने का आदी था रिजर्व बैंक: पूर्व वित्त सचिव गर्ग

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  • Publish Date - September 27, 2023 / 05:49 PM IST

नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल की अगुवाई में केंद्रीय बैंक बार-बार अपना रुख बदलने का आदी हो गया था। चुनावी बॉन्ड और डिजिटल भुगतान सहित विभिन्न मामलों में यह देखने को मिला। यह बात पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने अपनी नई किताब में लिखी है।

उन्होंने किताब में तत्कालीन आरबीआई गवर्नर पटेल के रुख में बदलाव का उदाहरण देते हुए लिखा है आरबीआई ने चुनावी बॉन्ड मुद्दे और भुगतान नियामक बोर्ड (पीआरबी) की स्थापना के मामले में रुख बदला था।

गर्ग ने अपनी किताब ‘वी ऑल्सो मेक पॉलिसी: एन इनसाइडर्स अकाउंट ऑफ हाऊ द फाइनेंस मिनिस्ट्री फंक्शंस’ में लिखा है कि आरबीआई ने भुगतान प्रणाली में भागीदारी के लिये आंकड़ों के स्थानीय स्तर पर भंडारण का आदेश देने जैसे एकतरफा फैसले भी किए। यह पुस्तक एक अक्टूबर को बाजार में आएगी।

उन्होंने लिखा है, ‘‘हमने विनम्रता के साथ आरबीआई को बताया कि पीआरबी पर रिपोर्ट को लेकर सभी की सहमति थी। यदि कोई असहमति थी, तो इसे रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले बताया जाना चाहिए था। हम खुशी-खुशी असहमति नोट को रिपोर्ट के हिस्से के रूप में शामिल करते और आरबीआई की तरफ से उठाये गये बिंदुओं पर जवाब देते।’’

गर्ग कहते हैं, ‘‘हालांकि, यह गलत कहा गया कि उसके प्रतिनिधि ने समिति की कुछ सिफारिशों पर एक असहमति नोट दिया था। इसके उलट, आरबीआई ने 19 अक्टूबर, 2018 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से अपनी वेबसाइट पर एक असहमति नोट डाला।’’

वर्ष 2007 में बने भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम (पीएसएस) में कोई संशोधन नहीं हो पाया। सरकार ने अभी तक वित्त अधिनियम 2017 के जरिये बने पीआरबी को अधिसूचित नहीं किया है।

पुस्तक में लिखा गया है, ‘‘सरकार ने अंतर-मंत्रालयी समूह की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की। इस समूह की अध्यक्षता मैं कर रहा था। इन सिफारिशों में देश में भुगतान व्यवस्था, बुनियादी ढांचे और संस्थागत व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव लाने की क्षमता थी। हालाांकि, आरबीआई उस समय की कुछ सिफारिशों पर काम कर रहा है, लेकिन देश अब भी एक अच्छे प्रायोगिक नियामकीय ‘सैंडबॉक्स’ को संस्थागत रूप नहीं दे पाया है।’’

इसमें कहा गया है कि हाल ही में आरबीआई ने जारी एक रिपोर्ट में कहा कि उसने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) और अन्य निजी संस्थानों के लिये भुगतान सुविधा शुरू करने का प्रस्ताव रखा है।

किताब में लिखा गया है कि पटेल केंद्रीय बैंक के पास पड़ी आरक्षित निधि को भारत सरकार को हस्तांतरित करने को इच्छुक नहीं थे। इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी तुलना ‘रुपये के ढेर पर कुंडली मारकर पर बैठे सांप’ से की थी।

गर्ग 21 जून, 2017 से 25 जुलाई, 2019 के बीच आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव थे। उन्होंने वित्त सचिव की भी भूमिका निभायी। उनके कार्यकाल में किसानों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने, चुनावी बॉन्ड पेश करने, बैंकों में पूंजी डालने और छह हवाई अड्डों को बाजार पर चढ़ाने जैसे राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण निर्णय हुए।

हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान सबसे विवादास्पद और चर्चित मुद्दा आरबीआई और वित्त मंत्रालय के दफ्तर नॉर्थ ब्लॉक के बीच का संबंध था।

किताब के मुताबिक, सितंबर, 2018 में कठिन आर्थिक हालात के बीच प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के लिये एक बैठक बुलाई थी।

गर्ग लिखते हैं, ‘‘बैठक के दौरान सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच काफी तनाव देखा गया और प्रधानमंत्री मोदी तो पटेल पर अपना आपा खो बैठे थे और उनकी तुलना ‘रुपये के ढेर पर कुंडली मारकर बैठे सांप’ से की थी।

गर्ग ने पुस्तक में लिखा है, ‘‘मैंने उन्हें पहली बार इतने गुस्से में देखा था। उन्होंने गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के समाधान पर आरबीआई के रुख और समाधान खोजने के प्रति उसके अड़ियल तथा अव्यवहारिक रवैये पर कड़ी नाराजगी जतायी। उन्होंने एलटीसीजी कर को वापस लेने का प्रस्ताव देने के लिये भी गवर्नर पटेल की आलोचना की…।’’

गर्ग कहते हैं, ‘‘उन्होंने (मोदी) आरबीआई के संचित भंडार को किसी भी उपयोग में लेने के लिये इच्छुक नहीं होने के लिये पटेल की तुलना रुपये के ढेर पर कुंडली मारकर बैठे सांप से की।’’

प्रधानमंत्री मोदी को गवर्नर उर्जित पटेल की बैठक बुलाने की अनिच्छा के बारे में भी बताया गया था। आठ अगस्त, 2018 को हुई निदेशक मंडल की बैठक में इसपर सहमति जतायी गयी थी। लेकिन इसके बावजूद पटेल केंद्रीय निदेशक मंडल की विशेष बैठक बुलाने को इच्छुक नहीं थे।

हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित संस्मरण में कहा गया है कि गर्ग ने 30 या 31 अगस्त को विशेष बैठक बुलाने पर सहमति जतायी थी। लेकिन यह इस बात पर निर्भर था कि सभी निदेशक इसमें शामिल हों।

भाषा

रमण अजय

अजय