एनसीयूआई सहकारी समितियों से संबंधित 97वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद्द करने से नाखुश | Unhappy with the cancellation of some provisions of the 97th Amendment relating to NCUI cooperatives

एनसीयूआई सहकारी समितियों से संबंधित 97वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद्द करने से नाखुश

एनसीयूआई सहकारी समितियों से संबंधित 97वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद्द करने से नाखुश

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:08 PM IST, Published Date : July 21, 2021/12:25 pm IST

नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) सहकारी संस्था एनसीयूआई ने बुधवार को सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन और कामकाज से संबंधित 97वें संविधान संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर नाखुशी जताई है।

एक बयान में, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने कहा कि सहकारी संस्था ‘‘आशावादी थी कि नव निर्मित सहकारिता मंत्रालय निश्चित रूप से एक उपाय खोजेगा।’’

उन्होंने यह भी कहा कि सहकारिता पर राष्ट्रीय नीति – जिसमें सुधार किया जाना है – को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्यों में सहकारी कामकाज में एकरूपता हो ताकि पारदर्शिता रहे, और इससे सहकारिता आंदोलन मजबूत होगा।

संघानी ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने 2013 के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा जिसने संवैधानिक संशोधन अधिनियम के कुछ हिस्सों को हटा दिया।

एनसीयूआई सहकारिता आंदोलन का शीर्ष संगठन है।

एनसीयूआई के पूर्व अध्यक्ष जी एच अमीन ने भी इस मुद्दे पर नाखुशी जाहिर की।

उन्होंने कहा कि एनसीयूआई ने 2012 में संविधान संशोधन अधिनियम को पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, प्रक्रियात्मक खामियों के कारण, उच्चतम न्यायालय ने कुछ प्रावधानों को रोक दिया है।’’

सहकारिता की स्वायत्तता को मजबूत करने के लिए, अमीन ने सुझाव दिया कि वर्तमान सरकार को कानूनी प्रावधानों के आधार पर संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया फिर से शुरू करनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने 20 जून को, आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन के अभाव में सहकारी समितियों के कामकाज और प्रभावी प्रबंधन से संबंधित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के कार्यकाल के 97 वें संवैधानिक संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया।

97वां संविधान संशोधन दिसंबर वर्ष 2011 में संसद द्वारा पारित किया गया था और यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

 

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