Bastar Naxal Challenge, image source: ibc24
जगदलपुर: Bastar Naxal Challenge, देश से नक्सलवाद मिटाने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि 31 मार्च 2026 तक ‘लाल आतंक’ का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। लेकिन इस जंग का सबसे कठिन मोर्चा अब भी छत्तीसगढ़ का बस्तर बना हुआ है। वही इलाका जिसे रेड कॉरिडोर का दिल कहा जाता है। सुरक्षाबलों के अनुसार, आज भी लगभग 300 सशस्त्र नक्सली बस्तर के घने जंगलों में सक्रिय हैं। इनमें चार बड़े कमांडर देवजी, पापाराव, हिडमा और गणेश उइके सबसे खतरनाक माने जाते हैं। इन चारों पर एक-एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित है और यही चार चेहरे मिशन 2026 की सबसे बड़ी चुनौती हैं।
बस्तर का रेड कॉरिडोर दो हिस्सों में बंटा है—उत्तर सब-जोनल ब्यूरो, जहां अधिकांश नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है, और दक्षिण सब-जोनल ब्यूरो, जो अब भी हिंसा का केंद्र बना हुआ है। पश्चिम और दक्षिण बस्तर के साथ-साथ दरभा की पहाड़ियों में यही चार कमांडर अपने गुरिल्ला दस्तों के साथ डटे हुए हैं।
बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि करीब 300 नक्सली और कुछ स्थानीय मिलिशिया अब भी जंगलों में सक्रिय हैं। अगर वे आत्मसमर्पण करें तो स्वागत है, नहीं तो ऑपरेशन जारी रहेगा। आमने-सामने होंगे तो जवाब ज़रूर मिलेगा।
इस बीच, नक्सली संगठन के भीतर बगावत ने जोर पकड़ लिया है। 17 अक्टूबर 2025 को बस्तर में अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ—210 माओवादी अपने 175 हथियारों के साथ सरेंडर कर गए। इनमें सेंट्रल कमेटी का सदस्य रूपेश भी शामिल था। यह घटना नक्सल विरोधी अभियान के लिए बड़ी सफलता मानी गई, लेकिन इसके बाद संगठन के भीतर अंदरूनी संघर्ष छिड़ गया।
वरिष्ठ नेता अभय ने आत्मसमर्पण करने वालों को गद्दार कहा, तो रूपेश ने पलटवार करते हुए दावा किया कि पार्टी महासचिव बसवराजू ने ही उसे संघर्ष विराम की पहल में शामिल होने को कहा था। अब यह जंग सिर्फ सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच नहीं, बल्कि नक्सल संगठन के भीतर भी छिड़ चुकी है, जहां बंदूकें अब अपने ही साथियों की ओर मुड़ रही हैं।
मुख्यधारा में लौटे नक्सली अब एक नई चुनौती का सामना कर रहे हैं। जंगल छोड़कर जब वे अपने गांव लौटते हैं, तो अपने ही पुराने साथियों के निशाने पर आने का खतरा बना रहता है। आईजी सुंदरराज पी. ने कहा है कि जो हमारे ऊपर भरोसा कर समाज की मुख्यधारा में लौटे हैं, उनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। उनके सामान्य जीवन के लिए हर संभव सहायता दी जा रही है।
छत्तीसगढ़ इस समय अपनी स्थापना के 25 वर्ष मना रहा है। लेकिन इन 25 सालों में राज्य ने नक्सल हिंसा की सबसे गहरी चोट झेली है। आंकड़े बताते हैं कि अब 3,404 मुठभेड़ें हुई, जिनमें 1,541 नक्सली मारे गए, 1,315 जवान शहीद हुए, 1,817 निर्दोष नागरिकों की जान गई। 7,826 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया 13,416 गिरफ्तार किए गए। हर आंकड़ा किसी घर की बर्बादी, किसी मां की आंखों के आंसू और किसी बच्चे की टूटी उम्मीद की कहानी कहता है।
मिशन 2026 अपने लक्ष्य तक पहुंच भी जाए, तब भी सवाल यही रहेगा, क्या बस्तर को वाकई शांति मिलेगी? बीस सालों से चली यह खूनी लड़ाई जंगलों, नदियों और गांवों के साथ-साथ उम्मीदों को भी झुलसा चुकी है।कभी आदिवासी अधिकारों और समानता की आवाज़ बनकर शुरू हुआ यह आंदोलन अब भय और प्रतिशोध की राजनीति में बदल गया है। बस्तर अब केवल जंगल नहीं, यह एक थकी हुई आत्मा है, जो बस एक किरण शांति की तलाश में है।