बस्तर। लंबे समय से खामोश बैठे माओवादी फिर एक बार सक्रिय हो गए हैं। इस बार स्माल एक्शन टीम के जरिये माओवादियों ने हमले शुरू किए हैं। गर्मियों के दौरान मौसम खुल जाने पर जंगल में जवानों के लिए ऑपरेशन करना आसान हो जाता है। इसे ही ध्यान में रखते हुए माओवादी पहले से ही टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन शुरू करते हैं। अब यह टीसीओसी फरवरी महीने से ही शुरू हो जाती है। इसका असर भी दिखाई देने लगा है। पिछले दिनों में जिस तरह से माओवादियों ने सिलसिलेवार स्थानीय जनप्रतिनिधियों की हत्याएं की हैं, उससे माओवादियों ने फिर से एक बार गांव में दहशत बढ़ाई है।
READ MORE: Raisen news: इस वजह से खतरनाक श्रेणी में पहुंचा ये डेम..! ग्रामीणों में बन रही घबराहट की स्थिति
माओवादी गर्मियों के दौरान जब सबसे बेहतर मौका पुलिस को नक्सलियों के खिलाफ मिलता है, तब खुद को बचाए रखने और पुलिस से निपटने इस तकनीक का इस्तेमाल माओवादी करते हैं। गुरिल्ला युद्ध की यह तकनीक टीसीओसी कहलाती है, यानी टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन एक ऐसा तेज अभियान जो पुलिस के नक्सल विरोधी अभियान को भटका दे। गौर करें तो फरवरी महीने में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की गई हत्या भी यही दर्शाती है कि किस तरह माओवादियों ने पुलिस की ऑपरेशन को जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा और अपनी स्माल एक्शन टीम के आकस्मिक हमलों की तरफ मोड़ दिया है।
पुलिस भी निपटने की तैयारी में जुटी
बीते 2 सालों में माओवादियों की तरफ से बड़े हमले नहीं हुए हैं। पिछले कुछ सालों में पुलिस की तकनीकी दक्षता और गोरिल्ला युद्ध की तकनीक में भी इजाफा हुआ है, जिसकी वजह से अब माओवादी बड़े हमले कर कैंपों को लूटने या जवानों को नुकसान पहुंचाने के मंसूबे में कामयाब नहीं हो रहे हैं। बीजापुर के टेकलगुड़ा को छोड़ दें तो उसके बाद से कोई बड़ी वारदात नहीं हुई, पर यह वारदात भी उस समय की टीसीओसी तकनीक का ही नतीजा थी, जिसमें जवान का अपहरण भी किया गया और गर्मियों के 3 महीने पुलिस की तैयारियों को माओवादियों ने रोके रखा। पुलिस का दावा है टीसीओसी से निपटने पुलिस ने भी तैयारी कर रखी है।