बस्तर का एक गांव ऐसा भी, जहां पुराने कलेक्टर की याद में लगता है मेला, संविधान को पूजते हैं आदिवासी
There is also a village in Bastar, where a fair is held in memory of the old collector, बस्तर का एक गांव ऐसा भी, जहां पुराने कलेक्टर की याद में लगता है मेला
बस्तर: बस्तर का एक गांव जहां पुराने कलेक्टर की याद में आदिवासी मनाते है मेला, करते है भारतीय संविधान की पूजा पूरे प्रदेश में जहां आदिवासियों से जुड़े आरक्षण और पेशा कानून को लेकर चर्चा है। वहीं दूसरी तरफ आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करने बस्तर के मावली भाटा गांव से स्थानीय लोगों ने खास पहल की है और यह पहल है। डोकरा (बजुर्ग) मेले की, इस मेले में आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक करने का काम खुद आदिवासी कर रहे हैं गौरतलब है। कि मावली भाटा कि ही वह जगह थी।
इस कलेक्टर की याद में होता है मेला
जहां आदिवासियों ने सबसे पहले डाइकेन और मुकुंद आयरन नामक कंपनियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था और इन उद्योगों के लिए जमीन नहीं दी थी। इसी से लगे छेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ( 9 मई 2014) अल्ट्रामेगा स्टील प्लांट लगाने की भी घोषणा की थी। जिसकी शुरुआत भी नहीं हो सकी इस गांव में सबसे पहले पूर्व कलेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता ब्रह्मदेव शर्मा ने आदिवासियों को उनकी जमीन और संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक किया था। जिन्हें गांव के लोग डोकरा कहते है ओर इसी वजह से इस मेले का नाम डोकरा मेला रखा गया है।
1992 में हुई थी शुरुआत
1992 से गांव में इस आयोजन की शुरुआत की गई है पहले से मिली कि पहले नहीं दी गई थी धीरे-धीरे लोग और गांव के लोग जुड़ते गए और आदिवासी समाज से जुड़े लोगों ने ने इसे डोकरा मेला का नाम दीया वर्ष 1992 से लगातार संविधान दिवस के अवसर पर दो दिवसीय इस मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें संविधान पर चर्चा के साथ आदिवासियों के अधिकारों को लेकर लोगों को जानकारी दी जाती है।

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