Bejod Bastar: पीढ़ियों के लिए विरासत का संरक्षण! बस्तर की कला-संस्कृति को संजोए रखने में शैक्षिक संस्थाओं का अहम योगदान |

Bejod Bastar: पीढ़ियों के लिए विरासत का संरक्षण! बस्तर की कला-संस्कृति को संजोए रखने में शैक्षिक संस्थाओं का अहम योगदान

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन पर प्राथमिकता के साथ काम करना शुरू किया है और इसी सोच का नतीजा है कि बस्तर में यहां शैक्षिक संस्थान द्वारा कला संस्कृति का संरक्षण किया जा रहा है।

Edited By :   Modified Date:  January 25, 2023 / 03:56 PM IST, Published Date : January 23, 2023/4:52 pm IST

जगदलपुर। बस्तर देश ही नहीं दुनिया में अपनी अनूठी सममोहक संस्कृति के लिए पहचाना जाता है। छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भूभाग में अभी प्राचीन आदिम संस्कृति अपने मूल स्वरूप में मौजूद है। विशेष रूप से यहां के लोकगीत, लोक नृत्य, स्थानीय भाषा, शिल्प एवं लोक कला में अपनी अलग पहचान संजोए रखी है। परंतु आधुनिकता के प्रभाव में वर्षों पुरानी संस्कृति को बचाए रखना महत्वपूर्ण हो जाता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन पर प्राथमिकता के साथ काम करना शुरू किया है और इसी सोच का नतीजा है कि बस्तर में यहां शैक्षिक संस्थान द्वारा कला संस्कृति का संरक्षण किया जा रहा है।

यहां शैक्षिक संस्थान लोक कला की संस्कृति के विभिन्न आयामों को संरक्षण एवं संवर्धन पर काम कर रहे हैं। जिससे आने वाली पीढ़ी को यह अपने मूल स्वरूप में हस्तांतरित की जा सके। बस्तर की संस्कृति को संजोए रखने में यह एक शैक्षिक संस्थान अपनी तरह का अनूठा प्रयोग बन गया है। वर्तमान में खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से संबद्धता के साथ में 5 विषयों की कक्षाएं भी संचालित की जा रही हैं। जिसमें गायन, तबला, लोक संगीत, स्थानीय बोली, भाषा, जैसे विषय शामिल हैं।

यहां पर 6 प्रभाग संचालित हैं, जिसमें लोक गीत, लोक नृत्य, लोक साहित्य प्रभाग, बस्तर शिल्प कला प्रभाग, लोक संगीत डिप्लोमा कोर्स। ‘बादल’ एकेडमी में बस्तर के सभी लोक गीत, लोक नृत्य और गीतों का संकलन ध्वन्याकंन—फिल्मांकन प्रदर्शन एवं नई पीढ़ी को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बस्तर के सभी समाज के धार्मिक रीति रिवाज, सामाजिक ताना-बाना, त्यौहार, कविता, मुहावरा आदि का संकलन एवं लिपिबद्ध कर इसे जन-जन तक पहुंचाने की दिशा में काम शुरू किया जा चुका है। हल्बी और गोंडी जैसी महत्वपूर्ण स्थानीय बोलियों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

इसके साथ ही बस्तर संभाग के स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन पर आधारित नाटकों का मंचन संस्था द्वारा किया जा रहा है, जिसे जनजातीय समुदाय में इन वीर शहीदों की स्मृतियां स्थाई रह सकें। बस्तर की सेल पर कलाओं में काष्ठ कला, धातु कला, बास कला, सूत कला, तुंबा कला आदि का प्रदर्शन प्रशिक्षण एवं निर्माण सिखाया जाता है। यह शैक्षिक संस्थान बस्तर के साहित्य और कला संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बनकर तैयार हो रहे हैं। जो आने वाली पीढ़ी के लिए विरासत साबित होंगे।

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