मस्तूरी के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए

मस्तूरी के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए

मस्तूरी के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए
Modified Date: November 29, 2022 / 08:01 pm IST
Published Date: June 14, 2018 1:30 pm IST

बिलासपुर। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है छत्तीसगढ़ की मस्तूरी विधानसभा सीट कीबिलासपुर जिले में आने वाली इस सीट के सियासी मूड को भांपना आसान नहीं है122 किलोमीटर के इलाके में फैले इस चुनाव क्षेत्र के सियासी समीकरण बदलते रहे हैंइतिहास की धरोहरों और भविष्य के सपनों को अपने में समेटे इस इलाके के अपने कुछ दर्द भी हैं बीजेपी जहां इस सीट को एक बार फिर हासिल करने की तैयारी में जुट गई है तो वहीं कांग्रेस के सामने चुनौती है कि 2013 की जीत को दोहराए

बिलासपुर जिले की मस्तूरी सीट, ये प्रदेश का संभवतः सबसे लंबा विधानसभा क्षेत्र है। बिलासपुर-जांजगीर मार्ग पर विधानसभा मुख्यालय मस्तूरी है और ये जोंधरा से लेकर खोंदरा तक फैला हुआ है। इस विधानसभा के सरहदी दो गांवों के बीच 122 किलोमीटर का फासला है।

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अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व ये सीट फिलहाल कांग्रेस के कब्जे में है। प्रसिद्ध लोक गायक दिलीप लहरिया यहां के विधायक हैं। भौगोलिक नजरिए से देखें तों ये विधानसभा शहरी और ग्रामीण इलाकों को अपने में समेटे हुए है। घने जंगलों में बसे गांव और मस्तूरी, जयरामनगर जैसे शहरी इलाके दोनों यहां हैं। मतदाताओं की बात करें तो उनकी संख्या 2 लाख 61 हज़ार 104 है। यहां कुल 331 मतदान केंद्र हैं। मुख्यतः खेती-किसानी वाले इस इलाके की सीमा जांजगीर जिले से मिलती है। यहां से होकर लीलागर और अरपा नदी बहती है, लेकिन इन नदियों का लाभ यहां सिंचाई के लिए नहीं लिया जा रहा है।

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मस्तूरी के गांवों में सिंचाई का मुख्य जरिया है खूंटाघाट बांध से निकली नहरें, पहले यहां मेन और माइनर नहरों से बड़े पैमाने पर खेतों की सिंचाई हो जाती थीलेकिन अब बांध में पानी कम होने के कारण नहरों में पानी नहीं छोड़ा जाताइसलिए सिंचाई की बड़ी समस्या है। यहां मल्हार जैसा विश्वप्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र हैजो अपने पुरातात्विक महत्व और यहां मिलने वाली दुर्लभ प्रतिमाओं के लिए जाना जाता है। यहां से देश में सबसे प्राचीन समझे जाने वाली गणेश प्रतिमाओं के साथसाथ सदियों पुरानी मूर्तियां, वास्तु कला का भंडार मौजूद है। यहां सदियों पुराने सोने-चांदी के सिक्के मिले भी हैं और केंद्रीय पुरातत्व विभाग के शोध कार्यक्रम भी यहां चलते रहे हैं। देश विदेश से हजारों पुरातत्वविद और इतिहास में रुचि रखने वाले लोग यहां आते रहते हैं। मल्हार की डिंडेश्वेरी देवी और पातालेश्वर महादेव मंदिर यहां आस्था के केंद्र हैं। चूना पत्थर की खदानें भी इस इलाके में बड़ी संख्या में मौजूद हैं, इसलिए कुछ कंपनियों ने यहां सीमेंट फैक्ट्रियां लगाने में रुचि दिखाई है। यहां निकट का रेलवे स्टेशन जयरामनगर है।

मस्तूरी विधानसभा के सियासी इतिहास की बात करें तो कभी ये सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ हुआ करता थालेकिन बीच-बीच में बीजेपी ने इसमें सेंध लगाई 2013 में दिलीप लहरिया ने सीट पर कांग्रेस की वापसी कराईअब जब चुनाव नजदीक है तो मस्तूरी का मैदान मारने के लिए सियासत के खिलाड़ी मुस्तैदी से तैयारी में जुट गए हैंबीजेपी जहां राज्य सरकार के काम काज गिना कर अपने पक्ष में महौल बनाने में जुटी हैतो वहीं कांग्रेस अपने इतिहास की याद दिला कर लोगों को रिझाने में लगी हैजहां तक टिकट दावेदारों का सवाल है तो सबसे लंबी लाइन बीजेपी में ही नजर आती है

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है मस्तूरी। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही ये सीट महत्वपूर्ण रही है। कांग्रेस के वर्चस्व वाली इस सीट से गणेश राम अनंत, बंशीलाल धृतलहरे जैसे बड़े लीडर चुनाव जीतते रहे और मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री भी बनते रहे। 1998 में पहली बार ये सीट बीजेपी के कब्जे में आई, तब मदन सिंह डहरिया यहां से चुनाव जीते थे, लेकिन 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए। 2003 में मदन सिंह डहरिया को बीजेपी प्रत्याशी डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी ने हराया और वे छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बने। 2008 में भी बांधी चुनाव जीते, लेकिन उन्हें इस बार सरकार में शामिल नहीं किया गया। 2013 में उन्हें भाजपा ने फिर मस्तूरी से टिकिट दिया लेकिन इस बार अजीत जोगी के समर्थक और स्थानीय लोक कलाकार दिलीप लहरिया ने उन्हें हरा दिया। अनुसूचित जाति बहुल इस आरक्षित सीट पर बहुजन समाज और कम्युनिस्ट पार्टी का भी प्रभाव रहा है। बसपा को पिछले तीन इलेक्शन से यहां औसतन 20 हजार वोट मिलते रहे हैं।

आने वाले चुनाव की बात करें तो तीनों पार्टियों के अलग-अलग नेता टिकट के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। कांग्रेस में पहला नाम मौजूदा विधायक दिलीप लहरिया का है लहरिया अजीत जोगी के समर्थक थे, लेकिन उनके अलग होने के बाद वो कांग्रेस में ही रह गए, इसलिए ये माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार भी उन पर भरोसा जता सकती है। हालांकि सतनामी समाज के एक नेता राजकुमार अंचल भी कांग्रेस से टिकिट चाह रहे हैं।

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भारतीय जनता पार्टी में प्रमुखता से चार नाम सामने आ रहे हैं। पूर्व विधायक और मंत्री डाक्टर कृष्णमूर्ति बांधी, जो इस समय अनुसूचित जाति मोर्चा के पदाधिकारी हैं और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से संपर्क में हैं। दूसरा नाम चांदनी भारद्वाज का है, वे मस्तूरी जनपद की अध्यक्ष हैं और भाजपा की जांजगीर सांसद कमला पाटले की बेटी हैं। चांदनी लोकल पॉलिटिक्स में सक्रिय हैं और महिला होने का लाभ भी उन्हें टिकिट वितरण के दौरान मिल सकता है। लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके चंद्र प्रकाश सूर्या भी टिकट के लिए कतार में है। सूर्या को अमर अग्रवाल समर्थक माना जाता है।

प्रदेश की तीसरी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जिन स्थानों पर मजबूत है, उनमें से एक सीट है मस्तूरी। यहां जोगी कांग्रेस के पक्ष में अच्छा माहौल दिखाई दे रहा है। जोगी परिवार की बहू ऋचा लगातार यहां दौरे पर रहती हैं और उनकी सभाओं में बड़ी भीड़ उमड़ती है। एक कयास ये भी है कि ऋचा जोगी यहां से चुनाव लड़ सकती हैं। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के दूसरे दावेदार हैं राजेश्वर भार्गव। इस इलाके से जिला पंचायत सदस्य चुने गए भार्गव लगातार सक्रिय भी हैं और गांवों में अच्छी पकड़ रखते हैं।

ऐसे में यहां त्रिकोणीय मुकाबला तय दिख रहा है । सियासी पंडितों का आकलन है कि अगर बहुजन समाज पार्टी के वोट जोगी कांग्रेस की ओर जाते हैं तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी मुसीबत हो सकती है ।

मुद्दों की बात की जाए तो 122 किलोमीटर इस क्षेत्र को मोटे तौर पर चार इलाकों मस्तूरी, मल्हार, जयरामनगर और सीपत में बांटा जा सकता हैइन चारों ही इलाकों का अपनाअपना मिजाज है और अपनेअपने मसलेलिहाजा सियासी पार्टियों को मुद्दों के आधार पर इस इलाके को साध पाना आसान नहीं होगा।

गांवों और शहरी इलाके के कांबिनेशन वाले मस्तूरी विधानसभा में समस्याएं भी दोनों तरह की हैं। यहां खोंदरा, जोंधरा, कनई, ओखर जैसे दूरस्थ इलाकों में स्थित गांव हैं, जहां आज भी पहुंच मार्ग की समस्या है। बिजली-पानी की दिक्कतें हैं। मस्तूरी से मल्हार, पचपेड़ी की ओर चलें तो मुख्य सड़क का निर्माण हो रहा है, लेकिन इस सड़क के दोनों तरफ जो गांव फैले हुए हैं वहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है या हैं भी तो बेहद खस्ताहाल। बारिश के दिनों में कई गांवों से अभी भी संपर्क टूट जाता है। अंदर के गांवों के लिए आज भी बड़ा मुद्दा सड़क ही है।

ग्रामीण इलाकों में पानी की कमी भी मस्तूरी का बड़ा मुद्दा है। ये पूरा इलाका मुख्यतः कृषि आधारित है, लेकिन खूंटाघाट डैम में पानी कम होने और नहर में पानी नहीं छोड़े जाने के काऱण यहां की खेती संकट में है नहर में पानी को लेकर ग्रामीण लगातार आंदोलन करते रहे हैं। गर्मियों में जल स्तर नीचे चले जाने से गांवों में पीने के पानी का भी संकट हो जाता है। इस बार भी उनकी यही मांग है कि सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी दिया जाए, पीने के पानी की व्यवस्था की जाए।

सिंचाई का साधन नहीं होने के कारण यहां से बड़े पैमाने पर पलायन होता है। सरकारी रिकॉर्ड में मस्तूरी प्रदेश के ऐसे इलाके में शामिल है जहां से सर्वाधिक पलायन होता है। यहां के ग्रामीण हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, जम्मू कश्मीर तक मजदूरी करने के लिए जाते हैं और फिर वहां बंधक बना लिए जाते हैं। अब भी यहां रोजगार के इतने अवसर मुहैया नहीं हैं, कि पलायन रुक सके।

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इस विधानसभा में अवैध उत्खनन और खनन माफिया का आतंक भी बड़ा मुद्दा हो गया है। दरअसल इस पूरे इलाके में चूना पत्थर की खदानें हैं, इसलिए ठेकेदारों ने खदानें लीज पर लेकर क्रशर प्लांट लगा रखा है। ये ठेकेदार थोड़ी जमीन लीज पर लेकर आसपास के कई एकड़ में अवैध उत्खनन कर रहे हैं। इससे हो रहा प्रदूषण, भारी वाहनों की आवाजाही भी गांवों के लिए मुसीबत बन गई है, लेकिन रसूखदार लोगों की गुंडागर्दी के सामने ग्रामीण बेबस हैं। बिजली की कटौती, ट्रांसफार्मर खराब होना भी ग्रामीणों की समस्या है। निराश्रित पेंशन में बड़ा घोटाला मस्तूरी में हो चुका है, लेकिन कड़ी कार्रवाई नहीं होने के कारण गांवों में अब भी ऐसे घोटाले जारी है। कई-कई महीनों तक पेंशन की राशि नहीं आने की शिकायतें यहां हर गांव में है। मस्तूरी में हैवी ट्रैफिक एक बड़ी समस्या है। यहां बीच बस्ती से तेज भारी वाहन गुजरते हैं जिससे लगातार दुर्घटनाएं होती हैं। धूल के गुबार चारों ओर फैले रहते हैं । इसके साथ ही रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाओं का कमी भी चुनाव में मुद्दे होंगे ।

 

वेब डेस्क, IBC24


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