Chhattisgarh first Sanskrit university: रायपुर। छत्तीसगढ़ में संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के लिए एक बड़ी खबर निकलकर सामने आयी है। इन दिनों छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। जहां हर रोज अलग अलग विभागों की अनुदान मांगों पर चर्चा हो रही है। इसी बीच आज पूर्व मंत्री और कुरुद विधायक अजय चंद्राकर ने आज विधानसभा में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर एक अशासकीय संकल्प पेश किया जो कि विधानसभा में पारित हो गया है। जिसके बाद अब जल्द ही प्रदेश में पहले संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हो सकेगी।
दरअसल, पूर्व मंत्री और विधायक अजय चंद्राकर के अथक प्रयासों से आज शासकीय दूधाधारी राजश्री महंत वैष्णव दास स्नाकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय, रायपुर को विश्वविद्यालय में अपग्रेड करने का अशासकीय संकल्प विधानसभा में पारित हो गया है। अब रायपुर स्थित संस्कृत महाविद्यालय छत्तीसगढ़ का पहला संस्कृत विश्वविद्यालय कहलाएगा।
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Chhattisgarh first Sanskrit university: आपको बता दें कि रायपुर में स्थित संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना वर्ष 1955 में हुई थी। भवन का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। महाविद्यालय की स्थापना के लिए रायपुर स्थित दूधाधारी मठ के महंत वैष्णव दास ने उदारतापूर्वक दान दी थी। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामा चरण शुक्ल की भी इसमें प्रेरणा रही। महंत वैष्णव दास ने न केवल महाविद्यालय स्थापित किया बल्कि छात्र-छात्राओं को संस्कृत का अध्ययन करने के लिए विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की।
Government Dudhadhari Shri Vaishnav Postgraduate College वर्तमान में शासकीय दूधाधारी श्री वैष्णव स्नातकोत्तर महाविद्यालय पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से संलग्न है। वेद, ज्योतिष, व्याकरण, धर्म, दर्शन के साथ-साथ अंग्रेजी, हिन्दी, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास का भी अध्ययन-अध्यापन और शोध होता है। संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार, संवर्धन व विकास कॉलेज का मुख्य उद्देश्य है।
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कॉलेज में सर्वाधिक समय तक प्राचार्य रहने का श्रेय स्व. रामनिहाल शर्मा को है। वे लगभग 18 वर्षों तक यहां प्राचार्य रहे। इसके पश्चात डॉ. रामकुमार बेहार पांच वर्षों तक प्राचार्य रहे। यहां एक समृद्ध पुस्तकालय है, जिसमें लगभग एक हजार पांडुलिपि है। संस्कृत साहित्य, धर्म, दर्शन, वेद की दुर्लभ पुस्तकें यहां संग्रहित हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति पर शोध कार्य करने वालों के लिए विपुल सामग्री उपलब्ध है। यहां मेधा नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन भी अनियमित रूप से हो रहा है। शिक्षाकर्मियों के लिए पृथक से संस्कृत विषय के शिक्षकों की मांग होने से महाविद्यालय में छात्रों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि हुई है।
दूधाधारी श्री वैष्णव न्यास निधि समिति 5 सितंबर 1955 से रजिस्टर्ड है। इस समिति के अध्यक्ष रायपुर कलेक्टर होते हैं। न्यास निधि के पास छेरकापुर गांव तहसील बलौदा बाजार में 60 एकड़ से अधिक भूमि है। इसे ठेके पर देकर लगभग एक लाख रुपए से अधिक सालाना प्राप्त किया जाता है।