Gariaband News: आज़ादी के 78 साल बाद भी यहां न बिजली न सड़क, मरीजों को कांवड़ पर अस्पताल पहुंचाते हैं परिजन… बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहे ग्रामीण
मैनपुर विकासखण्ड का डुमरघाट गांव आज भी सड़क, बिजली और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। ग्रामीण अब सामूहिक रूप से जिला मुख्यालय जाकर अपनी व्यथा रखने की तैयारी में हैं। आइये जानते हैं क्या ही पूरा मामला।
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- 12 साल बाद भी गांव में बिजली नहीं पहुंची।
- चार बार सर्वे के बावजूद सड़क निर्माण शुरू नहीं हुआ।
- स्कूल और आंगनबाड़ी भवन की हालत खराब स्थिति में।
Gariaband News: छत्तीसगढ़ में गरियाबंद जिले के मैनपुर विकासखण्ड का ग्राम डुमरघाट जो मुख्यालय से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आज भी आज़ादी के 75 वर्षों बाद मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जूझ रहा है। ये गांव बरदुला से लगभग 7 किलोमीटर दुर्गम पहाड़ी मार्ग के पार स्थित है जहां सड़क नाम की कोई व्यवस्था नहीं है। बरसात के मौसम में ये रास्ता दलदल और फिसलन से भर जाता है, जिससे ग्रामीणों को आवागमन में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
बीमार और गर्भवती महिलाओं की परेशानी
गांव की सबसे बड़ी समस्या है सड़क और स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, क्योंकि आज भी यहाँ जब कोई बीमार पड़ता है या कोई गर्भवती महिला पीड़ा में होती है तो ग्रामीणों को मजबूरन उसे कांवर या खटिया में लादकर मीलों पैदल अस्पताल ले जाना पड़ता है।
चार बार सर्वे फिर भी सड़क अधूरी
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में चार बार सर्वे हो चुका है लेकिन सड़क निर्माण कार्य अब तक शुरू नहीं हुआ। हर बार अधिकारी आते हैं और नापजोख करते हैं लेकिन परिणाम में कुछ नहीं होता। गांव वाले ये भी बताते हैं कि गांव में बिजली आज तक नहीं पहुंची है। 12 वर्ष पूर्व बिजली पहुंचाने की घोषणा की गई थी पर ये अब तक केवल कागजों में ही सीमित है। सरकार की ओर से लगाए गए सौर ऊर्जा सिस्टम भी बेअसर साबित हो चुके हैं। रात के अंधेरे में बच्चे पढ़ नहीं पाते और महिलाएं अब भी मिट्टी के दीए या लालटेन की रोशनी में घर का काम करती हैं।
स्कूल और आंगनबाड़ी की हालत भी चिंताजनक
Gariaband News: शिक्षा व्यवस्था की हालत भी बेहद ख़राब और चिंताजनक है। गांव का प्राथमिक स्कूल और आंगनबाड़ी भवन जर्जर हो चुके हैं। नया स्कूल भवन निर्माणाधीन था लेकिन उसको भी आधा अधूरा छोड़ दिया गया। नतीजा ये है कि बच्चों को आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ती है क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने नाराज़गी जताते हुए बताया कि जनप्रतिनिधि और अधिकारी कभी गांव का रुख नहीं करते। गांव के बुजुर्ग और महिलाएं पेंशन, राशन कार्ड या सरकारी योजनाओं की राशि के लिए मैनपुर तक पैदल जाते हैं।
कलेक्टर से न्याय की उम्मीद
गांव के लोगों ने सामूहिक रूप से कलेक्टर भगवान सिंह उइके से गुहार लगाई है कि सड़क और बिजली की समस्या का शीघ्र समाधान किया जाए। उनका कहना है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं की गई तो वो जिला मुख्यालय पहुंचकर धरना और ज्ञापन सौपेंगे।
डुमरघाट की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं बल्कि उन सैकड़ों गांवों की झलक है जो विकास की दौड़ में पीछे छूट गए हैं।

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