CG Politics | Photo Credit: IBC24
रायपुर: CG Politics कोल ब्लॉक पर रह-रहकर सियासत गर्माती रही है। एक बार फिर केंद्रीय मंत्री ने यहां कोल खनन पर कुछ ऐसा कहा कि राजनीति उफान पर है। केंद्रीय मंत्री का सीधा आरोप है कि पहले कांग्रेस सरकारों के दौर में नियमों को परे रखकर कोल खदानों का आबंटन हो जाता था। जबकि मौजूदा सरकार पूरी पारदर्शिता के साथ खनन लाइसेंस देती है। हालांकि कांग्रेस ने भी बीजेपी सरकार की कार्यशैली को लेकर पेड़ कटाई पर आमजन के विरोध के बहाने आईना दिखा दिया। मंत्री जी ने भी दो टूक जवाब दिया कि देश को बिजली और बिजली के लिए कोयला चाहिए और इसके लिए पेड़ तो काटने ही होंगे। सवाल है, आखिर कोल खदान के इर्द-गिर्द इतना सियासी शोर क्यों है?
CG Politics वन, वनोपज और खनिज की बहुतायत वाले प्रदेश में खनिजों की बंदरबांट के आरोप नए नहीं हैं। छत्तीसगढ़ दौरे पर आए केंद्रीय राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने प्रदेश की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को लेकर जुबानी वार में कहा कि, केंद्र में कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान बड़ा कोल स्कैम हुआ तो इधर छग में कोल ब्लॉक्स का आवंटन सिगरेट की डिब्बी के छोटे से पन्ने पर हो जाता था। जबकि अब मोदी सरकार के दौरान देश की खनिज संपदा का आवंटन ‘जेम’ के जरिए होता है। एक और सवाल कि बीजेपी सरकार प्रदेश के जंगल उद्योगपति दोस्त के लिए कटवा रही है। पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जंगल से पेड़ नहीं कटेगा तो कोल कैसे निकलेगा। इधऱ, इस दोहरे वार पर PCC चीफ दीपक बैज ने पलटवार में बीजेपी सरकार से सवालों की झड़ी लगा दी। पूछा कि क्या 5-वीं अनुसूची वाले बरस्तर-सरगुजा जहां पेसा एक्ट लागू है ? क्या पेड़ काटने- ग्राम सभाओं ने सहमति दी? क्या वहां सरकार नियमों का पालन कर रही है? बैज ने कहा कि जहां लोगों पेड़ काटने के विरोध में डटकर खड़े हैं तो वहां आप पेड़ कैसे काट सकते हैं?
वैसे खनिज संपदा पूरे देश की है, उसके आवंटन के लिए नीति, प्रक्रिया और हिस्सा निर्धारण का अधिकार केंद्र का है लेकिन ये भी जरूरी है कि जिस प्रदेश में वन को खोदकर खनिज खाली किए जा रहे हों, वहां सहमति के साथ पारदर्शिता, संतुलन और नियमों के तहत का पालन हो। सवाल ये है कि क्या ऐसा नहीं हो रहा है, विरोध करने का अधिकार किसका है से ज्यादा जरूरी ये सवाल कि क्या विरोध जायज है, अगर हां तो फिर इसे नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है?