Bilaspur High Court News: बिलासपुर मेयर पद के आरक्षण के खिलाफ दायर याचिका ख़ारिज.. हाईकोर्ट ने कहा, ‘चुनाव प्रक्रिया शुरू, नहीं कर सकते हस्तक्षेप’

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि अधिसूचना में कोई अवैधता नहीं है और आरक्षण प्रक्रिया न्यायसंगत है। इसी आधार पर अदालत ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया।

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  • Publish Date - February 3, 2025 / 08:26 PM IST,
    Updated On - February 3, 2025 / 08:26 PM IST

Bilaspur High Court's decision on reservation for mayor post || Image- Live Law

Bilaspur High Court’s decision on reservation for mayor post : बिलासपुर: हाईकोर्ट ने नगरीय निकाय चुनाव में मेयर पद के आरक्षण को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस बिभू दत्त गुरु की एकलपीठ ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अधिसूचना में किसी प्रकार की अवैधता या अनियमितता नहीं पाई गई है। कोर्ट ने इसे निष्पक्ष एवं उचित ठहराते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद उसमें न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। इसलिए याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया गया।

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15 जनवरी 2025 को जारी हुई थी अधिसूचना

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 15 जनवरी 2025 को मेयर पद के आरक्षण से संबंधित अधिसूचना जारी की थी। इसमें आरक्षण और अन्य प्रावधान तय किए गए थे। लेकिन एवज देवांगन, डोमेश सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने प्रदेश के नगर निगमों में मेयर पद के आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। उनका आरोप था कि आरक्षण प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया गया और इसमें अनियमितताएं हुई हैं। याचिकाकर्ताओं ने अधिसूचना की संपूर्ण कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

Bilaspur High Court’s decision on reservation for mayor post : याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में आरक्षण प्रक्रिया को मनमाना, अनुचित, भेदभावपूर्ण और अवैध बताया। उनका कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत सीटों का आरक्षण तय किया जाता है और 2011 की जनगणना के आधार पर नगर निगमों में मेयर के पद को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाना चाहिए – ओबीसी, ओबीसी महिला, अनारक्षित एवं अनारक्षित महिला।

वहीं, राज्य सरकार ने अपने जवाब में इन आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि याचिका में भ्रमपूर्ण जानकारी दी गई है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति (SC) के उम्मीदवारों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया गया है और ओबीसी के लिए अधिकतम 50% सीटें आरक्षित की गई हैं। साथ ही, महिला एसटी, महिला एससी और ओबीसी महिला के लिए क्षैतिज आरक्षण की प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ, लॉटरी निकालकर और नेताओं की उपस्थिति में पूरी की गई है।

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Bilaspur High Court’s decision on reservation for mayor post : सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि अधिसूचना में कोई अवैधता नहीं है और आरक्षण प्रक्रिया न्यायसंगत है। इसी आधार पर अदालत ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया।

1. याचिकाकर्ताओं ने मेयर पद के आरक्षण प्रक्रिया को क्यों चुनौती दी थी?

याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि आरक्षण प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया गया और इसमें अनियमितताएं हुई हैं। उन्होंने अधिसूचना की संपूर्ण कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

2. राज्य सरकार ने अपने जवाब में क्या कहा?

सरकार ने आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि याचिका में भ्रमपूर्ण जानकारी दी गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति (SC) के उम्मीदवारों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया गया है और ओबीसी के लिए अधिकतम 50% सीटें आरक्षित की गई हैं। साथ ही, महिला एसटी, महिला एससी और ओबीसी महिला के लिए क्षैतिज आरक्षण की प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ, लॉटरी निकालकर और नेताओं की उपस्थिति में पूरी की गई है।

3. हाईकोर्ट का निर्णय क्या रहा?

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अधिसूचना में कोई अवैधता नहीं है और आरक्षण प्रक्रिया न्यायसंगत है। इसी आधार पर अदालत ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया।

4. क्या चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद न्यायिक हस्तक्षेप संभव है?

अदालत ने स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद उसमें न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।