Municipal Elections
Municipal Elections: रायपुर। छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव से ऐन पहले मौजूदा सरकार ने एक बार फिर पिछली सरकार के फैसले को पलट दिया, जिसपर सियासत गरमा गई है। छग में अब से नगर पालिका अध्यक्षों के पास वित्तीय आहरण के अधिकार नहीं होंगे। यानी किसी भी प्रोजेक्ट पर बजट के लिए उन्हें निकाय के CEO की ओर देखना पड़ेगा। इसे निकाय चुनाव से पहले सरकार का नया दांव माना जा रहा है। चूंकि इस वक्त प्रदेश के अधिकांश निकायों में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं। तो क्या चुनावी दौर में उनके लोकलुभावन खर्चों पर लगाम कसने ऐसा किया गया, क्या सरकार ऐसा कर वित्तीय दुरूपयोग रोकना चाहती है, या फिर ये फैसला किसी चुनावी लाभ के लिए लिया गया है ?
छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय निकायों में अब से सभी वित्तीय अधिकार CMO के पास होंगे। यानि, वो ही नगर पालिकाओं या नगर पंचायतों में चेक काटकर राशि आहरित करने में सक्षम होंगे, उन्हीं के साइन से फाइलों को फंड मिलेगा। ये अधिकार अब नगर निकायों के अध्यक्षों के पास से छिन गया है। दरअसल, इस वक्त ज्यादातर नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं में कांग्रेस के अध्यक्ष और सभापति काबिज हैं। पिछली कांग्रेस सरकार ने निकायों में सभी वित्तीय अधिकार चुने हुए निकाय अध्यक्षों को दिए थे। नगर पालिका-नगर पंचायत अध्यक्ष ही सभी चेक साइन किया करते थे। वो ही सभी अहम दस्तावेजों के अवलोकन का अधिकार रखते थे। लेकिन, अब प्रदेश की साय सरकार ने इस अधिकार को वापस ले लिया है।
अब से निकाय के मुखिया यानि अध्यक्ष-सभापति को वित्तीय मामलों की सूचना मात्र दी जाएगी। इस फैसले पर के पीछे प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव का दावा है कि निकायों में कामकाज को बेहतर संचालित करने के लिए ही ये फैसला किया गया। इससे जनप्रतिनिधियों को विकास कार्यों पर ध्यान देने का ज्यादा वक्त मिलेगा। लेकिन, विपक्ष सरकार के इन तर्कों को खारिज करता है। पीसीसी चीफ दीपक बैज ने निकायों में अध्यक्षों के अधिकारों में कटौती के फैसले को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।
जाहिर है इस फैसले से प्रदेशभर में सभी नगरीय निकायों के अध्यक्ष-सभापतियों को जोरदार झटका लगा है। खासकर कांग्रेस को क्योंकि ज्यादातकर निकायों में फिलहाल कांग्रेस के अध्यक्ष काबिज हैं। ये झटका इसीलिए भी जोर का है क्योंकि इसी साल बस कुछ ही महीनों में प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव हैं। ऐसे में अध्यक्षों के अधिकार में कटौती कर सरकार ने बड़ा दांव चला है, जिससे प्रदेश का सियासी पारा हाई है सवाल है क्या इसका बड़ा असर निकायों के कामकाज, आगामी निकाय चुनाव के नतीजों पर भी दिखेगा ?