Sukma News: नक्सलगढ़ के बच्चों ने रचा इतिहास, 46 छात्रों ने पास की NEET-JEE, आत्मसमर्पित नक्सली की बेटी बनी क्वालिफायर
Sukma News: नक्सलगढ़ के बच्चों ने रचा इतिहास, 46 छात्रों ने पास की NEET-JEE, आत्मसमर्पित नक्सली की बेटी बनी क्वालिफायर
Sukma News | Image Source | IBC24
- सुकमा के बच्चों ने रचा इतिहास,
- नक्सली क्षेत्र से 46 छात्रों ने पास की NEET-JEE,
- आत्मसमर्पित नक्सली की बेटी ने भी पास किया NEET,
सुकमा: Sukma News: छत्तीसगढ़ का सुकमा ज़िला जिसे कभी देश के सबसे ख़तरनाक नक्सल प्रभावित इलाक़ों में गिना जाता था अब एक नई पहचान गढ़ रहा है। सुकमा प्रशासन की पहल से एक आत्मसमर्पित नक्सली की बेटी ने NEET परीक्षा पास की है। कभी शिक्षा से वंचित रहे इस आदिवासी ज़िले के बच्चों ने अब मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे सबसे कठिन रास्तों को पार करना शुरू कर दिया है।
Sukma News: इस साल सुकमा के 46 आदिवासी छात्रों ने NEET और JEE परीक्षाएँ पास की हैं। इनमें से 43 छात्रों ने NEET और 3 ने JEE में सफलता पाई है। ये सभी छात्र ज़िला प्रशासन द्वारा संचालित ‘क्षितिज कोचिंग सेंटर’ में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। सुकमा जैसे ज़िले में जहाँ अभी भी कई इलाक़ों तक सड़क और मोबाइल नेटवर्क की सुविधा पूरी तरह नहीं है वहाँ बच्चों का इस मुकाम तक पहुँचना किसी चमत्कार से कम नहीं है। रीना द्वारि जो लगातार दूसरी बार NEET परीक्षा में बैठीं इस बार 259 अंक लेकर पास हुईं। वे कहती हैं की पिछली बार मुझे 235 अंक मिले थे लेकिन चयन नहीं हुआ। मैंने हार नहीं मानी। प्रशासन ने फिर से तैयारी का अवसर दिया और इस बार मेरा सपना सच होता दिख रहा है।
Sukma News: इस सूची में एक नाम बेहद ख़ास है संध्या कुंजाम है जिनके पिता रमेश कुंजाम एक समय नक्सली थे। साल 2002 में उन्होंने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। अब उनकी बेटी डॉक्टर बनने जा रही है। रमेश बताते हैं की सरकार ने मेरा जीवन बदला और अब मेरी बेटी का भविष्य भी संवर रहा है। सुकमा में जो पहले कभी नहीं हो सकता था आज वो हो रहा है। सावन नेगी जो सुकमा ज़िले के छिंदगढ़ ब्लॉक के कांजीपानी गाँव से हैं कहते हैं कि वे MBBS करने के बाद सुकमा लौटकर अपने लोगों की सेवा करेंगे। यहाँ अंदरूनी गाँवों में इलाज के अभाव में लोगों की जान जाती है। अब जब पढ़ाई पूरी होगी तो मैं यहीं रहकर लोगों की मदद करना चाहता हूँ।
Sukma News: सुकमा के कलेक्टर देवेश कुमार ध्रुव बताते हैं कि यह केवल परीक्षा पास करने की खबर नहीं है, यह एक सामाजिक आंदोलन है। जिन इलाक़ों में बच्चे स्कूल नहीं जाते थे वहाँ अब बच्चे डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना देख रहे हैं। शासन की मंशा है कि हर बच्चे को शिक्षा और रोज़गार से जोड़ा जाए।

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