प्रतापपुर। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है छत्तीसगढ़ के प्रतापपुर विधानसभा सीट की। परिसीमन के बाद 2008 में कभी घोर नक्सल प्रभावित इलाके रहे वाड्रफ नगर और प्रतापपुर को मिलाकर ये नई सीट बनाई गई। कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर यूं तो कई मुद्दे हैं। लेकिन यहां सबसे बड़ा मुद्दा वो विवाद है जो नए जिलों के गठन के बाद खड़ा हुआ है। दरअसल नए जिलों के गठन के बाद इस विधानसभा क्षेत्र में आने वाले वाड्रफनगर को बलरामपुर जिले में शामिल किया गया है, जबकि प्रतापपुर अब सूरजरपुर जिले में आ गया है और इन दोनों ही जगह के लोग इस व्यवस्था से खुश नहीं है।
प्रतापपुर विधानसभा सूरजपुर जिले का प्रतापपुर ब्लाक और बलरामपुर जिले का वाड्रफनगर ब्लाक से मिलकर बना है। प्रतापपुर और वाड्रफनगर मुख्यालय शहर की शक्ल ले चुके हैं, जबकि इनके अंदरुनी इलाके अभी भी पिछड़े हुए हैं। वाड्रफनगर और प्रतापपुर विकासखंडों के साथ जुड़े उनके जिले का नाम ही यहां चुनावी मुद्दा बन गया है। दरअसल प्रतापपुर में पेयजल और सड़क की समस्या गंभीर बनी हुई है, जिसे लेकर विधायकजी आने वाले चुनाव में घिरते हुए नजर आते हैं। सबसे बड़ा आरोप ये है कि विधायक रामसेवक पैकरा प्रतापपुर ब्लाक के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं। स्थानीय लोगों का साफ कहना है कि विधायकजी मंत्री बनने के बाद प्रतापपुर ब्लाक को छोड़कर अब सिर्फ वाड्रफनगर पर ध्यान दे रहे हैं।
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वहीं वाड्रफनगर की बात करें तो जिला मुख्यालय के अंतिम छोर के साथ-साथ मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। यहां दो दर्जन के करीब नदी और नाले हैं जो ग्रामीणों के आवागमन में रूकावट पैदा करती थी। उन नदियों और नालों पर पुल-पुलिया बनवा कर विधायक इसे अपनी सफलता के रूप में दिखाते हैं।
प्रतापपुर विधानसभा से आठ बार चुनाव लड़ने वाले और पूर्व विधायक डॉ प्रेमसाय वर्तमान विधायक पर आरोपों की जमकर बौछार करते हैं। उनका आरोप है कि रामसेवक पैकरा पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और जनता की उनको फिक्र नहीं है।
कुल मिलाकर प्रतापपुर विधानसभा में समस्याओं की कोई कमी नहीं है। स्वास्थ्य को लेकर बेहतर सुविधाएं नहीं हैं। बीजेपी विधायक का दावा था कि वो प्रतापपुर के सारासोर नदी का पानी शहर तक लाएंगे, बलरामपुर के पिंगला नदी का पानी गोविंदपुर तक लाएंगे और रकसगंडा का पानी रघुनाथनगर तक लाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यहां तक कि कई पुल–पुलिए बारिश में बह गए, लेकिन इन्हें भी दुरुस्त नहीं किया जा रहा है। इन सभी मुद्दों के लिए कांग्रेस और बीजेपी एक–दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। अब यहां जो सबसे अहम है वो है मतदाता तक कौन अपनी बात पहुंचा पाता है
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वैसे प्रतापपुर के सियासी मिजाज और इतिहास की बात की जाए तो 2008 में पिलखा सीट को विलोपित कर वाड्रफनगर और प्रतापपुर को मिला कर इस नए विधानसभा क्षेत्र को बनाया गया। पहले इस विधानसभा का आधा हिस्सा पाल और आधा हिस्सा सूरजपुर विधानसभा के अंतर्गत आता था। जब से ये सीट आरक्षित हुई है तब से यहां कांग्रेस का एक ही चेहरा मैदान में हैं और बीजेपी ने भी सिर्फ दो चेहरों को ही मौका दिया है।
पहाड़ियों से घिरे और जंगलों के बीच छोटे–छोटे गांवों में फैले प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र की तासीर समझना आसान नहीं है। सूरजपुर और बलरामपुर जिले में बंटी इस विधानसभा सीट के सियासी समीकरण अभी तक राजनीतिक पंडित भी ठीक से नहीं समझ पाए हैं। ये इलाका कभी घोर नक्सल प्रभावित रहे दो ब्लाक वाड्रफनगर और प्रतापपुर से मिलाकर बनाया गया है।
प्रतापपुर के सियासी इतिहास की बात की जाए तो पहले ये सीट पिलखा विधानसभा के नाम से जानी जाती थी। 1977 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर जनता पार्टी के नरनारायण सिंह चुनाव जीते। इसके बाद 1980 में कांग्रेस के टिकट पर डॉ प्रेमसाय सिंह को पहली बार मौका मिला। उन्होंने बीजेपी के मुरारीलाल सिंह को हराया। 1985 में एक बार फिर दोनों का आमना-सामना हुआ। इस बार फिर प्रेमसाय ने बाजी मारी। लेकिन 1990 में मुरारीलाल सिंह ने प्रेमसाय सिंह को शिकस्त देकर बदला ले लिया। 1993 में बीजेपी की टिकट पर पहली बार रामसेवक पैकरा चुनाव मैदान में उतरे। लेकिन उन्हें प्रेमसाय के हाथों हार मिली। 1998 के विधानसभा चुनाव में भी यही नतीजा रहा। 2003 में बीजेपी के रामसेवक पैकरा ने कांग्रेस के प्रेमसाय सिंह को 20 हजार से ज्यादा वोटों से मात देकर पिछली दो हार का बदला लिया।
इसके बाद 2008 में हुए परिसीमन में पिलखा सीट के विलोपित होने के बाद प्रतापपुर सीट अस्तित्व में आई। एक बार फिर डॉ प्रेमसाय सिंह और रामसेवक पैकरा में सियासी भिड़ंत हुई। इस बार प्रेमसाय ने बाजी मार ली और 4000 वोटों से रामसेवक पैकरा को हरा दिया। 2013 में बीजेपी–कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी नहीं बदले। इस बार कांग्रेस के प्रेमसाय सिंह को रामसेवक पैकरा ने लगभग 8000 वोटों से शिकस्त दी।
जाति समीकरण की बात की जाए तो एसटी के लिए आरक्षित इस विधानसभा क्षेत्र में 65 फीसदी अनुसूचित जाति, 4 फीसदी अनुसूचित जनजाति और बाकी अन्य वर्गों के मतदाता हैं। प्रतापपुर विधान सभा में कुल दो लाख चार सौ उनतालिस मतदाता हैं जो इस बार विधायक की कुर्सी का फैसला करेंगे।
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प्रतापपुर का सियासी इतिहास काफी दिलचस्प है। यहां कांग्रेस का एक ही प्रत्याशी पिछले 40 वर्षों से चुनाव लड़ते आ रहा है। वहीं बीजेपी भी इससे पीछे नहीं है। मौजूदा विधायक रामसेवक पैकरा बीते 27 सालों से यहां बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि वर्तमान में परिस्थितियां बदली हैं और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने भी अपनी तरफ से सेंध लगानी शुरू कर दी है। लेकिन अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो डॉ प्रेमसाय सिंह और रामसेवक पैकरा की बीच एक बार फिर सियासी भिड़ंत होनी तय है।
प्रतापपुर के मुद्दे और सियासी गणित खासे दिलचस्प हैं। यहां इस समय बीजेपी का कब्जा है। लेकिन यहां बीजेपी के दो दिग्गजों के बीच खींचतान हमेशा मची रहती है, जिसका फायदा कांग्रेस को मिलता रहा है। इस इलाके में राज्यसभा सांसद राम विचार नेताम और गृह मंत्री रामसेवक पैकरा के बीच टिकट के लिए टकराव की खबरें आती रहती हैं। फिलहाल प्रतापपुर से रामसेवक पैकरा का दावा टिकट के लिए पूरी तरह से मजबूत नजर आता है। नेताजी का भी कहना है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में क्षेत्र में किए गए कापी विकास कार्य करवाए हैं।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो 1980 से लगातार आठ चुनाव लड़ चुके पूर्व मंत्री डॉ प्रेमसाय सिंह एक बार फिर यहां से टिकट की दावेदारी करते नजर आ रहे हैं। आदिवासी सीट घोषित होने के बाद डॉ प्रेमसाय यहां कांग्रेस की पहली पसंद भी हैं। लेकिन इस बार प्रतापपुर विधानसभा में डॉ प्रेमसाय को युवा नेताओं से भी चुनौती मिल रही है। कई युवा नेता टिकट मांग कर रहे हैं। इनके मुताबिक अब समय बदल गया है और 20वीं सदी के नेताओं को बाहर कर नई पीढी को मौका देने की बारी है। इस लिस्ट में जगत आयाम नाम का ये चेहरा कांग्रेस की तरफ से लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है और खुद जगत आयाम का भी मानना है कि जनता अब युवा चेहरों को कुर्सी पर बिठाना चाहती है।
वर्तमान विधायक रामसेवक पैकरा और कांग्रेस के डॉ प्रेमसाय सिंह अभी तक पांच बार आमने सामने चुनाव लड़ चुके हैं। इसमें तीन बार प्रेमसाय ने जीत हासिल की है, जबकि दो बार रामसेवक पैकरा विधायक चुने गए हैं। लेकिन इस बार स्थितियां काफी बदली हुई हैं और यही वजह है कि हर कोई आने वाले चुनाव को कड़ी चुनौती मान रहा है।
वेब डेस्क, IBC24