सरायपाली। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है छत्तीसगढ़ के सरायपाली विधानसभा सीट की। महासमुंद जिले में आने वाला ये विधानसभा क्षेत्र एससी वर्ग के लिए रिजर्व है। फिलहाल बीजेपी के रामलाल चौहान यहां से विधायक हैं। चौहान का दावा है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में काफी विकास कराया है। लेकिन जमीनी हकिकत की बात करें तो क्षेत्र में आज भी समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। कई ऐसे मुद्दे हैं जिसे लेकर लोगों में आक्रोश हैं। विकास न होने और मांगें पूरी नही होने से लोगों में विधायक के प्रति नाराजगी साफ नजर आती है। जो अगले विधानसभा में डिसाइडिंग फैक्टर साबित होगा।
सरायपाली में दूसरी चुनावी पारी खेलने की तैयारी में जुटे बीजेपी विधायक रामलाल चौहान के लिए लोगों की नाराजगी संकेत है कि अभी देर नहीं हुई है और वक्त रहते अगर वो इन जनता की नाराजगी को दूर कर लेते हैं तो आगामी चुनाव में उनकी राह थोड़ी आसान जरूर हो जाएगी। दरअसल सरायपाली में सत्ताधारी दल का विधायक होने के बाद भी वो विकास नजर नहीं आया जो जिसकी जनता ने उम्मीद की थी। वहीं आगामी चुनाव में एक बार फिर सरायपाली को जिला बनाने की मांग का गूंजना तय है।
दूसरे चुनावी मुद्दों की बात की जाए तो बरगढ़ से बागबहरा तक रेल लाइन की मांग लंबे समय से लंबित पड़ी हुई है, जिसका सर्वे का काम 1962 में ही पूरा हो गया था। इसके अलावा जम्हारी इलाके में सडक निर्माण के लिए सीएम ने 33 करोड़ की स्वीकृति दी थी जो कि अब तक नही बन पाई है। लिहाजा लोग इस बात से बेहद नाराज हैं। इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भी लोगों में काफी शिकायते हैं। सरायपाली में बिजली कटौती और पानी की किल्लत भी जस की तस बनी हुई है। जाहिर है इन मुद्दों को लेकर अब सियासत और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। हालांकि बीजेपी विधायक इन आरोपों के इतर अपने कार्यकाल में बेहतर विकास का दावा करते हैं।
बीजेपी विधायक लाख दावे करें कि उनके कार्यकाल में पूरे विधानसभा क्षेत्र का समुचित विकास हुआ है और केंद्र के साथ राज्य सरकार की योजनाओं का बेहतर लाभ लोगों को मिला है। लेकिन विधायकजी के इन दावों की पोल ग्रामीण इलाकों में पहुंचते ही खुल गई, जब हम सच्चाई जानने के लिए बैदपाली गांव पहुंचे। इस गांव को हाइप्रोफाइल गांव में शामिल किया जाता है। दरअसल ये गांव बीजेपी से ही पूर्व विधायक रहे नरसिंह प्रधान का गांव है और एक समय पूरे विधानसभा क्षेत्र की राजनीति इसी गांव से चलती थी। जब हम यहां पहुंचे तो लोगों ने शिकायतों की झड़ी लगा दी।
सरायपाली में हमारी टीम ने हाइवे से लेकर उड़ीसा की सीमा के दूर दराज के गांवों तक सिसासी नब्ज टटोली। यहां किसका परचम फहराएगा ये कहना तो जल्दीबाजी होगी लेकिन इतना तय है कि वोट बिजली और पानी जैसे बुनियादी मुद्दों पर ही पड़ेंगे।
सरायपाली के सियासी समीकरण की बात की जाए तो इस सीट को लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। हालांकि बीते पंद्रह सालों से इस सीट पर कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के प्रत्याशी को जीत मिलती आई है। इस विधानसभा सीट की सबसे बडी खासियत ये है कि इस सीट से जीतने के बाद कोई भी विधायक दोबारा चुनकर नहीं आय़ा। यानि कि ये तय है कि यहां का वोटर पार्टी और विकास के मुद्दों के साथ ही साथ प्रत्याशी की छवि देखकर भी मौका देती है। मैदान में फुटबॉल खेलते बच्चे जिस तरह फुटबॉल पर नियंत्रण कर गोल पोस्ट पर किक लगाने की की प्रैक्टिस कर रहे हैं। ठीक उसी तरह इन दिनों सरायपाली में सियासी पार्टियां नए-नए लुभावने वादों के साथ वोटरों को लुभाने की जुगत में लगे हैं।
वैसे कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही इस सीट को अविभाजित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल का चुनाव क्षेत्र होने का भी गौरव प्राप्त है। हालांकि इस समय यहां बीजेपी का कब्जा है। ओडिशा सीमा पर स्थित सरायपाली की संस्कृति पर वहां का असर साफ महसूस किया जा सकता है। सरायपाली के सियासी इतिहास की बात की जाए तो सीट पर अब तक 10 बार कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया है, जबकि बीजेपी केवल तीन बार ही कांग्रेस के इस गढ़ को ढहाने में कामयाब हो पाई है। कांग्रेस के टिकट पर यहां राजपरिवार से जुड़े महेंद्र बहादुर और देवेंद्र बहादुर जीतते रहे हैं। लेकिन राज्य बनने के बाद 2003 के चुनाव में यहां बीजेपी के त्रिलोचन पटेल ने कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर को हरा कर कांग्रेस के बड़ा झटका दिया।
इसके बाद 2008 में ये सीट एससी के लिए आरक्षित हो गई तब कांग्रेस ने यहां वापसी की और उसके उम्मीदवार डॉक्टर हरिदास भारद्वाज ने बीजेपी की नीरा चौहान को शिकस्त दी। लेकिन 2013 में जनता ने फिर से बीजेपी को चुना। बीजेपी के टिकट पर रामलाल चौहान ने कांग्रेस के डॉ हरिदास भारद्वाज को शिकस्त दी। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 82064..वोट मिले। वहीं कांग्रेस 53232 वोट ले सकी। इस तरह जीत का अंतर 28832 वोटों का रहा।
सरायपाली का जाति समीकरण भी दिलचस्प है। यहां पर 24 फीसदी एसटी, 11 फीसदी एससी, 18 फीसदी अघरिया और 16 फीसदी वोटर कोलता समाज से हैं। इसके अलावा सामान्य के 2 फीसदी और अल्पसंख्यक वोटर 2 फीसदी हैं, यही चुनाव के नतीजों को तय करते हैं। हालांकि सियासी जानकारों के मुताबिक इस सीट पर मुद्दों के साथ-साथ चेहरे को देखकर भी जनता वोट करती है। सरायपाली विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता 1लाख 94 हजार 997 है जिसमें 97 हजार 808 महिला और 97 हजार 189 पुरुष मतदाता शामिल हैं, जो इस बार नेताओँ के किस्मत का फैसला करेंगे। 93 वर्ग किमी में फैले इस विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी कांग्रेस और बीजेपी में मुख्य मुकाबला होने की पूरी उम्मीद है। हालांकि जेसीसीजे और आप के मैदान में उतरने से दोनों सियासी दलों को कठिन चुनौती मिलनी भी तय है।
अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित सरायपाली विधानसभा सीट में जहां बीजेपी से मौजूदा विधायक रामलाल चौहान दूसरी पारी खेलने की तैयारी कर रहे हैं। तो वहीं सरायपाली में हर विधानसभा चुनावों में चेहरे बदलने के मिथक के चलते कांग्रेस के साथ ही साथ सत्ताधारी दल बीजेपी से भी दावेदारों की कमी नहीं है। बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही दलों से इस सीट पर दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। खास बात ये है कि इस सीट पर राजनीति में सीधे दखल रखने वालों के साथ ही साथ शासकीय सेवा में पदस्थ लोगों की भी दावेदारी है। यानी चुनावी जंग से पहले यहां नेताओं में टिकट के लिए घमासान मचना तय है।
सरायपाली का महल सालों से इस इलाके की सियासी किस्मत लिखता रहा है। इस राजपरिवार के सदस्यों ने लंबे समय तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। हालांकि जब से ये सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हुई है। तब से सरायपाली की सियासत पर इस महल का असर लगभग नहीं के बराबर हो गया है। हालांकि जिस महल और राजपरिवार के दम पर कांग्रेस ने यहां वर्षों तक राज किया, अब वो भी इसके असर से बाहर निकल चुकी है। सरायपाली में कई नेता हैं जो सीट से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
हालांकि सियासी गलियारों मे ये भी चर्चा है कि कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष शिव डहरिया यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। इसके अलावा पूर्व जनपद सदस्य और गाड़ा समाज से आने वाले महेंद्र बाघ का नाम दावेदारों की लिस्ट में शामिल है। अन्य दावेदारों की बात करें तो राधेश्याम विभार, केएल नंद, रामपाल नंद, डोलामणि मिरी सहित कई नामों की चर्चा है। रामपाल नंद शिक्षाकर्मी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आना चाहते हैं, जबकि डोलामणि मिरी कांग्रेस सेवादल के ब्लॉक अध्यक्ष हैं।
वहीं बीजेपी की बात की जाए तो यहां भी दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। हालांकि सीटिंग एमएलए रामलाल चौहान क्षेत्र में हुए विकास कार्यों के बलबूते एक बार फिर से इस सीट पर अपना भाग्य आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। रामलाल चौहान के साथ बीजेपी से जिला पंचायत सदस्य श्यामलाल टांडी की भी दावेदारी है। श्यामलाल टांडी अनुसूचित जाति मोर्चा के जिलाध्यक्ष हैं। उनकी पहचान क्षेत्र में सक्रिय जनप्रतिनिधि के रुप में है।
बीजेपी से अन्य दावेदारों की बात करें तो प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष सरला कोसरिया, जनपद अध्यक्ष जयंती चौहान और पुष्पलता चौहान का नाम भी शामिल हैं। पुष्पलता चौहान जहां महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं तो वहीं महिला मोर्चा की मंडल महामंत्री भी हैं। लिहाजा उनकी दावेदारी पुख्ता हैं। बीजेपी कांग्रेस के अलावा इस बार सरायपाली में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव में उतरने की तैयारी की है। जनता कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं जबकि आप ने पूर्व सीबीआई मजिस्ट्रेट प्रभाकर ग्वाल को अपना प्रत्याशी तय कर दिया है। कुल मिलाकर सरायपाली सीट पर जिस तरह से प्रत्याशियों की लंबी फेहरिस्त नजर आ रही है उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि सीट पर इस बार घमासान मचना तय है।