क्या आपने सुनी है बस्तर के झिटकू-मिटकी की प्रेम गाथा.. जो आदिवासियों की पूजा परंपरा का हिस्सा रही है

क्या आपने सुनी है बस्तर के झिटकू-मिटकी की प्रेम गाथा.. जो आदिवासियों की पूजा परंपरा का हिस्सा रही है

  •  
  • Publish Date - February 14, 2020 / 07:02 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:05 PM IST

रायपुर। बात प्रेम की हो, प्यार की हो और जिक्र बस्तर का न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। बस्तर में आदिकाल से प्रेम की गाथा आदिवासियों की पूजा परंपरा का हिस्सा रही है। ऐसी ही कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं झिटकू-मिटकी की।

पढ़ें- ‘7 ग्रामीणों की हत्या और 95 घरों में आग लगाने का दोषी प्रशासन’

बस्तर.. जो अपने प्रेम में कर दे सबको तरबतर, जी हां, ऐसा है बस्तर। इस बस्तर में गोलियों के शोर से परे, प्रेम में डूबी प्रकृति का स्नेह भरा कलरव आपको अपने सुरूर में बहा ले जाता है। इसलिए तो बस्तर को प्रेम का प्रतीक भी कहा जाता है और ये प्रतीक बने है झिटकू-मिटकी। ये जो कलाकृति आप देख रहे है। जाहिर तौर आप इसे मूर्तिकला का नायाब नमूना कहेंगे और तारीफ भी करेंगे।

पढ़ें- MLA ने ट्रेनी IPS अफसर को कहा- औकात में रहो.. दोनों में जमकर बहस.. ..

लेकिन इस मूर्ति के पीछे की कहानी, प्यार की कहानी है। ये कहानी है झिटकू-मिटकी की। कोंडागांव के बड़ेराजपुर के विश्रामपुरी के पेंड्रावन की मिटकी, सात भाईओं की एकलौती बहन थी। भाईओं ने आजीवन मिटकी को अपने पास ही रखने के लिए झिटकु नाम के शख्स को अपन घर जमाई बना लिया। सातों भाई और झिटकु तालाब में बांध बनाने की हर दिन कोशिश करते थे। लेकिन सफल नहीं हो पाते थे। उनमें से एक भाई ने सपना देखा कि नरबलि देने से बांध बनेगा तो भाईओं ने अपने दामाद झिटकु की बलि दे दी। उसके बाद क्या हुआ..गांव के प्रमुख से ही जानिए।

पढ़ें- छात्रा पर चाकू से वार, युवक की प्रेमिका से हुआ था विवाद

मिटकी के सती होने के बाद से ही पेंड्रावन में पेंड्रावडीन माई के रुप में झिटकू-मिटकी की पूजा की जाती है ताकि किसी की प्रेम कहानी अधूरी न रहे। बस्तर में इस क्षेत्र की और झिटकू-मिटकी की मान्यता की अपनी परंपरा है। जिसकी गूंज पूरे देश में है। झिटकू-मिटकी की ये मूर्ति राष्ट्रपति भवन की भी शोभा बढ़ा रही है।