गर्भपात: उच्चतम न्यायालय ने भ्रूण की स्थिति पर एम्स के चिकित्सकीय बोर्ड से मांगी रिपोर्ट |

गर्भपात: उच्चतम न्यायालय ने भ्रूण की स्थिति पर एम्स के चिकित्सकीय बोर्ड से मांगी रिपोर्ट

गर्भपात: उच्चतम न्यायालय ने भ्रूण की स्थिति पर एम्स के चिकित्सकीय बोर्ड से मांगी रिपोर्ट

:   Modified Date:  October 13, 2023 / 03:49 PM IST, Published Date : October 13, 2023/3:49 pm IST

नयी दिल्ली, 13 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सकीय बोर्ड से एक विवाहित महिला के 26 सप्ताह के भ्रूण के संबंध में शुक्रवार को यह रिपोर्ट देने को कहा कि क्या वह (भ्रूण) किसी विकृति से ग्रस्त है। महिला ने न्यायालय से गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ दो बच्चों की मां को 26-सप्ताह का गर्भ समाप्त करने के शीर्ष अदालत के नौ अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की केन्द्र सरकार की याचिका पर जिरह सुन रही थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि एम्स की ओर से पेश की गई पहले की रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण सामान्य है, लेकिन मामले को किसी भी संदेह से परे रखने के लिए हम अनुरोध करते हैं कि उपरोक्त पहलू पर रिपोर्ट सौंपी जाए।’’

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की इस बात पर गौर किया कि महिला का पिछले वर्ष से ‘प्रसवोत्तर मनोविकृति’ का इलाज जारी है।

पीठ ने चिकित्सकीय बोर्ड को शीर्ष अदालत को यह भी अवगत कराने को कहा कि क्या कोई ऐसा साक्ष्य है जिससे संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था उसे कथित तौर पर उस अवस्था के लिए दी जा रही दवाइयों से खतरे में पड़ सकती है जिससे वह पीड़ित बताई गई है।

पीठ ने एम्स के चिकित्सकों को इस बात की छूट है कि वे याचिकाकर्ता के मानसिक तथा शारीरिक अवस्था का स्वतंत्र मूल्यांकन कर सकते हैं।

पीठ ने कहा,‘‘ ऐसा करते वक्त हम चिकित्सकों से इस अदालत को यह भी जानकारी देने का अनुरोध करते है कि क्या याचिकाकर्ता प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित पाई गई है…।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह जांच दिन में की जा सकती है और चिकित्सकीय बोर्ड की रिपोर्ट सुनवाई की अगली तारीख 16 अक्टूबर को उसके समक्ष रखी जाए।

गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा विवाहित महिलाओं और बलात्कार पीड़िताओं सहित विशेष श्रेणियों और विकलांग तथा नाबालिगों के लिए 24 सप्ताह है।

पीठ ने बृहस्पतिवार को इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कहा था,‘‘हम बच्चे को नहीं मार सकते।’’ साथ ही पीठ ने कहा था कि एक अजन्मे बच्चे के अधिकारों तथा स्वास्थ्य के आधार पर उसकी मां के स्वायत्त निर्णय लेने के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की जरूरत है।

यह मुद्दा उस वक्त उठा जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मेडिकल बोर्ड के एक चिकित्सक ने 10 अक्टूबर को एक ई-मेल भेजा था, जिसमें कहा गया था कि इस चरण पर गर्भ समाप्त करने पर भ्रूण के जीवित रहने की प्रबल संभावना है। इससे पहले बोर्ड ने महिला की जांच की थी और छह अक्टूबर को शीर्ष अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

यह मामला न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष उस वक्त आया जब बुधवार को दो न्यायाधीशों की पीठ ने महिला को 26-सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने के अपने नौ अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की केंद्र की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया।

शीर्ष अदालत ने नौ अक्टूबर को महिला को यह ध्यान में रखते हुए गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी थी कि वह अवसाद से पीड़ित है और ‘भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से’ तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है।

भाषा शोभना पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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