अटल बिहारी वाजपेयी जयंती विशेषः पत्रकार से प्रधानमंत्री बनने की कहानी, प्रमुख भाषण और कविताएं..यहां पढ़िए | Atal Bihari Vajpayee Jayanti Special: Story from journalist to prime minister… read here

अटल बिहारी वाजपेयी जयंती विशेषः पत्रकार से प्रधानमंत्री बनने की कहानी, प्रमुख भाषण और कविताएं..यहां पढ़िए

अटल बिहारी वाजपेयी जयंती विशेषः पत्रकार से प्रधानमंत्री बनने की कहानी, प्रमुख भाषण और कविताएं..यहां पढ़िए

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:15 PM IST, Published Date : December 25, 2020/6:33 am IST

रायपुर । आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। वह तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे। साल 1996 में वे पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे, हालांकि इस दौरान उनका कार्यकाल काफी छोटा यानी 13 दिनों का था। इसके बाद उनका दूसरा कार्यकाल 13 महीने का था और फिर 1999 में जब वह पीएम बने तो उन्होंने 2004 तक पांच साल का अपना कार्यकाल किया। अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता बनने से पहले एक पत्रकार थे। वह देश-समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा से पत्रकारिता में आए थे। अटल बिहारी राजनीति में कैसे आए, इसके पीछे एक प्रेरणादायक कहानी है।

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एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए अटल बिहारी वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफर आसान नहीं था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे अखबारों-पत्रिकाओं का संपादन किया।

वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और इस संगठन की विचारधारा के असर से ही उनमें देश के प्रति कुछ करने, सामाजिक कार्य करने की भावना मजबूत हुई। इसके लिए उन्हें पत्रकारिता एक बेहतर रास्ता समझ में आया और वे पत्रकार बन गए। उनके पत्रकार से राजनेता बनने का जो जीवन में मोड़ आया, वह एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है। इसके बारे में खुद अटल बिहारी ने वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह को एक इंटरव्यू में बताया था।

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इस इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी ने बताया था कि वे बतौर पत्रकारिता अपना काम बखूबी कर रहे थे। 1953 की बात है, भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे। जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए डॉ. मुखर्जी श्रीनगर चले गए। परमिट सिस्टम के मुताबिक किसी भी भारतीय को जम्मू-कश्मीर राज्य में बसने की इजाजत नहीं थी। यही नहीं, दूसरे राज्य के किसी भी व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए अपने साथ एक पहचान पत्र लेकर जाना अनिवार्य था। डॉ. मुखर्जी इसका विरोध कर रहे थे। वे परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर पहुंच गए थे। इस घटना को एक पत्रकार के रूप में कवर करने के लिए वाजपेयी भी उनके साथ गए।

वाजपेयी ने इंटरव्यू में बताया कि , ‘पत्रकार के रूप में मैं उनके साथ था। वे गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन हम लोग वापस आ गए।’ डॉ. मुखर्जी ने मुझसे कहा कि वाजपेयी जाओ और दुनिया को बता दो कि मैं कश्मीर में आ गया हूं, बिना किसी परमिट के।’ इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नजरबंदी में रहने वाले डॉ. मुखर्जी की बीमारी की वजह से मौत हो गई। इस घटना से वाजपेयी काफी आहत हुए। वह इंटरव्यू में कहते हैं, ‘मुझे लगा कि डॉ. मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाना चाहिए।’ इसके बाद वाजपेयी राजनीति में आ गए। वह साल 1957 में वह पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे थे।

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जब कार छोड़कर रिक्शे से ही चल दिए

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की विपक्षी दलों के नेता भी कद्र करते हैं। बात 1998 की है, लोकसभा चुनाव से पहले जब अटल बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कंपनीबाग में जनसभा करने आए थे। ट्रेन समय से आ गई, मगर तब तक उनको लेने आने वाली कार नहीं आई थी। उनके सिपहसलार किशन लाल सिक्का उनको रिसीव करने रेलवे स्टेशन पहुंचे। कार पहुंचने में देर हो गई तो वह रिक्शे से ही चल दिए। उन्होंने उस वक्त कहा-चलो कार से नहीं… आज रिक्शे से सफर किया जाए। रास्ते भर वह व्यंग्य विनोद से हंसाते हुए लाए।

जब वह पीएम बने तो सिक्का को दो गनर मिले थे। पुराना वाकया याद करके सिक्का कहते हैं कि अटल जी की सादगी उनकी पहचान थी। तब वह कुमार कुंज मेरे आवास तक आए और दाल मुरादाबादी का स्वाद लिया। किशन लाल सिक्का आज भी वो दिन याद करते हैं। वह कहते हैं कि उस जनसभा में काफी भीड़ उमड़ी थी। प्रत्याशी विजय बंसल के लिए अटल जी ने चुनावी जनसभा की थी पर विजय बंसल जीत नहीं सके। वह रनर रहे थे। उस जनसभा में अटल के भाषणों की याद करके सिक्का भावुक हो जाते हैं।

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शादी से इनकार कर अटल ने गंवा दी थी बलरामपुर लोकसभा

बेबाक भाषण शैली के लिए मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘अविवाहित हूं, लेकिन कुंवारा नहीं’ कहकर विस्मित कर दिया था। उनकी शादी से जुड़ा एक और किस्सा सामने आया है। 1962 में कांग्रेस की दो बार की सांसद रहीं सुभद्रा जोशी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव न मानने पर बलरामपुर लोकसभा हराने की धमकी दी। लोकतांत्रिक और सैद्धांतिक मूल्यों की राजनीति करने वाले अटल ने शादी से इनकार करते हुए हार को अपने गले लगा लिया।

विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथी रहे आरएसएस के पूर्व प्रचारक राजेंद्र सिंह पंकज ने अटल जी से जुड़ी यादों को साझा किया। उन्होंने कहा कि 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से चुनाव हार चुके थे। 1957 में अटल जी को लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया था। लखनऊ से दूसरे और मथुरा में अटल जी चौथे नंबर पर रहे। बलरामपुर सीट पर करपात्री महाराज के सहयोग से कांग्रेस के हैदर हुसैन को हराकर उन्होंने जीत दर्ज की थी।

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1962 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर सीट से मैदान में थे। इसी दौरान कांग्रेस सांसद सुभद्रा जोशी ने अटल जी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। सुभद्रा जोशी भी अविवाहित थीं। जिस पर अटल ने कहा कि वह आरएसएस की धरोहर हैं। व्यस्तम समय में शादी के लिए वक्त नहीं है। इस बात पर सुभद्रा जोशी काफी नाराज हुईं। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव हराने की धमकी दे डाली। पूर्व प्रधानमंत्री ने उनकी धमकी को सहजता से स्वीकार कर लिया।

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंबाला और करनाल से सांसद रह चुकीं सुभद्रा जोशी को बलरामपुर सीट से अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले मैदान में उतार दिया। ‘दो बीघा जमीन’ फिल्म से चर्चा में आए बलराज साहनी ने सुभद्रा जोशी के समर्थन में प्रचार प्रसार किया, जिसकी वजह से 2052 वोटों से सुभद्रा जोशी ने अटल जी को चुनाव हरा दिया। भाजपा के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय अटल बिहारी वाजपेयी को संसद भेजना चाहते थे। 2 अप्रैल 1962 को वाजपेयी राज्यसभा के जरिये संसद पहुंचे। इसके बाद 1967 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने सुभद्रा जोशी को 32 हजार वोटों से हराया।

राशन कम मिला, इसलिए भाषण कम देगें

अटल जी हमेशा अपनी गंभीर से गंभीर बात को भी सहजतापूर्वक और चुटीले अंदाज में कह देते थे। बात साल 1982 की है। सघन संगठन अभियान के तहत 3 अप्रैल 1982 को वाजपेयी जी सीतामढ़ी आए थे। सीतामढ़ी की सभा में अपना भाषण शुरू करने से पहले उन्होंने कहा था, ’राशन कम मिला है, इसलिए भाषण कम देंगे’। उस समय पार्टी के तत्कालीन जिला संगठन मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रामछबीला ठाकुर वाजपेयी जी के सहयोगी थे। श्री ठाकुर बताते हैं कि सघन संगठन अभियान के तहत 3 अप्रैल 1982 को वाजपेयी जी सीतामढ़ी आए थे। प्रदेश नेतृत्व से कहा गया था वाजपेयी जी वहीं जाएंगे, जहां पार्टी मद में एक लाख रुपए दिए जाएंगे।

प्रदेश नेतृत्व की बातों को सीतामढ़ी जिला ने स्वीकार किया और वाजपेयी जी बुलाने की आग्रह किया। कार्यकर्ताओं के अथक प्रयास के बावजूद महज 51 हजार रुपए जुटाए जा सके। तत्कालीन जिलाध्यक्ष बद्रीप्रसाद चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित जनसंपर्क अभियान में वाजपेयी जी को 51 हजार रुपए का चेक तत्कालीन कोषाध्यक्ष ने दिया। वाजपेयी जी ने भाषण शुरू करने से पहले कहा ’राशन कम मिला है, इसलिए भाषण कम देंगे’।

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यहां पढ़ें अटल जी के ऐसे ही भाषण…

1998 में परमाणु परीक्षण पर संसद में संबोधन – ’’पोखरण-2 कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था, कोई पुरुषार्थ के प्रकटीकरण के लिए नहीं था। लेकिन हमारी नीति है, और मैं समझता हूं कि देश की नीति है यह कि न्यूनतम अवरोध (डेटरेंट) होना चाहिए। वो विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसलिए परीक्षण का फैसला किया गया।

मई 2003 – संसद में – ’’आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं।

23 जून 2003 – पेकिंग यूनिवर्सिटी में – ’’कोई इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता कि अच्छे पड़ोसियों के बीच सही मायने में भाईचारा कायम करने से पहले उन्हें अपनी बाड़ ठीक करने चाहिए।

1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए – यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा।

जनवरी 2004 – इस्लामाबाद स्थित दक्षेस शिखर सम्मेलन में दक्षिण एशिया पर बातचीत करते हुए – ’’परस्पर संदेह और तुच्छ प्रतिद्वंद्विताएं हमें भयभीत करती रही हैं। नतीजतन, हमारे क्षेत्र को शांति का लाभ नहीं मिल सका है। इतिहास हमें याद दिला सकता है, हमारा मार्गदर्शन कर सकता है, हमें शिक्षित कर सकता है या चेतावनी दे सकता है….इसे हमें बेड़ियों में नहीं जकड़ना चाहिए। हमें अब समग्र दृष्टि से आगे देखना होगा।

31 जनवरी 2004 – शांति एवं अहिंसा पर वैश्विक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन – ’’हमें भारत में विरासत के तौर पर एक महान सभ्यता मिली है, जिसका जीवन मंत्र ’शांति’ और ’भाईचारा रहा है। भारत अपने लंबे इतिहास में कभी आक्रांता राष्ट्र, औपनिवेशिक या वर्चस्ववादी नहीं रहा है। आधुनिक समय में हम अपने क्षेत्र एवं दुनिया भर में शांति, मित्रता एवं सहयोग में योगदान के अपने दायित्व के प्रति सजग हैं।

13 सितंबर 2003 – ’दि हिंदू अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर – ’’प्रेस की आजादी भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। इसे संविधान द्वारा संरक्षण मिला है। यह हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति से ज्यादा मौलिक तरीके से सुरक्षित है। यह राष्ट्रीय संस्कृति न केवल विचारों एवं अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करती है, बल्कि नजरियों की विविधता का भी पोषण किया है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता।

23 अप्रैल 2003 – जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर संसद में – ’’बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती, पर भाईचारा कर सकता है। यदि हम इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के तीन सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आगे बढ़ें तो मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं।

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कविताओं में झलकता अटल का व्यक्तित्व

‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यह मशहूर कविता आज भी लोगों की जुबान पर रहती है। बीजेपी के फाउंडर मेंबर के साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक शानदार कवि भी थे और उनकी कई कविताएं मशहूर हुईं। वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे। आज भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती के खास मौके पर यहां हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी की 5 कविताओं के बारे में बता रहे हैं जो काफी लोकप्रिय हैं।  

मशहूर कविताएं-

1: दो अनुभूतियां

-पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं 
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

-दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं

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2- कदम मिलाकर चलना होगा

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.

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3- दूध में दरार पड़ गई

खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.

खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.

अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.

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4. मौत से ठन गई

ठन गई, मौत से ठन गई.

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई

मौत से ठन गई

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5- मस्तक नहीं झुकने दूंगा 

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता
त्याग, तेज, तप, बल से ‍रक्षित यह स्वतंत्रता
प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता।  
   
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से
कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है।
 
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो
आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ।
 
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्‍त में मिली न कीमत गई चुकाई
अंगरेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करते तुमको लाज न आई।

अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो
दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली
बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो।
 
धमकी, जेहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे, यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का भाल झुका लोगे, यह मत समझो।
जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन, यौवन अशेष।
 
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध
कश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।

 
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