नयी दिल्ली, 22 मई (भाषा) विमानन सुरक्षा के लिए ‘अभूतपूर्व’ खतरे को देखते हुए बिना किसी चेतावनी के तुर्किये की सेलेबी कंपनी को दी गई सुरक्षा मंजूरी रद्द की गई। केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को उच्च न्यायालय में अपने फैसले का बचाव करते हुए यह दलील दी।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ के समक्ष केंद्र का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘अभूतपूर्व समय में कार्रवाई करने से पहले सुनवाई या कारण बताने से उद्देश्य नष्ट हो जाता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में, या तो हम कुछ करते हैं या नहीं करते हैं, लेकिन बीच में कुछ नहीं है।’’
सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और सेलेबी दिल्ली कार्गो टर्मिनल मैनेजमेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने केंद्र के कदम के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) ने 15 मई को सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी थी। इससे कुछ दिन पहले तुर्किये ने पाकिस्तान का समर्थन किया था और पड़ोसी देश में आतंकवादी शिविरों पर भारत के हमलों की निंदा की थी।
मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता जमीनी और कार्गो संचालन में शामिल थे, तथा कई हवाई अड्डों पर विमानों तक उनकी पहुंच थी और कार्गो की जांच भी करती थी, जो वीआईपी आवागमन को भी संभालते थे, जिसके कारण अधिकारियों को कार्रवाई करने के लिए संबंधित कानून के तहत अपनी ‘पूर्ण शक्तियों’ का प्रयोग करना पड़ा।
मेहता ने कहा, ‘‘न्यायालय एक ऐसी अनोखी स्थिति से निपट रहा है, जहां विभिन्न हवाई अड्डों पर देश की नागरिक उड्डयन सुरक्षा को संभावित खतरा है… जब देश को कभी-कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, जो इतनी अभूतपूर्व होती हैं कि न तो सुनवाई का अवसर संभव होता है, क्योंकि देरी से ही कार्रवाई का उद्देश्य विफल हो सकता है और न ही कार्रवाई के लिए कारण बताना संभव होता है, क्योंकि इससे फिर से कार्रवाई का उद्देश्य विफल हो जाता है, तब पूर्ण शक्तियां आती हैं।’’
उन्होंने कहा,‘‘सुरक्षा मंजूरी देते समय पूर्ण शक्ति बरकरार रखी जाती है। जमीनी संचालन अनुबंध किसी भी समय रद्द किया जा सकता है।’’
मेहता ने कहा कि पक्षों के बीच हुए समझौते में अधिकारियों को सुरक्षा मंजूरी रद्द करने का अधिकार दिया गया था और याचिकाकर्ताओं ने इसे स्वीकार किया था।
केंद्र द्वारा सीलबंद लिफाफे में अदालत को कुछ ‘सूचनाएं’ उपलब्ध कराने पर याचिकाकर्ताओं की आपत्ति के संबंध में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताएं जानने के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
केंद्र ने हालांकि, अदालत को इस मामले में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के ‘पर्याप्त अनुपालन’ का आश्वासन दिया और कहा कि उसने कंपनियों की आपत्तियों पर विचार किया है।
उन्होंने कहा कि यह निर्णय कोई ‘पूर्णाधिकार’ या ‘ब्रह्मास्त्र’ नहीं है, क्योंकि यह न्यायालय की न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
मेहता ने कहा कि यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि प्राधिकारियों ने अपनी शक्ति का प्रयोग लापरवाही से किया है, तो वह हस्तक्षेप कर सकता है।
अदालत 23 मई को इस मामले पर सुनवाई जारी रखेगी।
केंद्र ने 19 मई को कहा कि मंजूरी रद्द करने का निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में लिया गया है, क्योंकि ऐसी जानकारी मिली थी कि वर्तमान परिदृश्य में याचिकाकर्ता कंपनियों की सेवाएं जारी रखना खतरनाक होगा।
भाषा धीरज प्रशांत
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